पवित्र बाइबल

यहेजकेल का महान मंदिर दर्शन और भविष्य की आशा

**यहेजकेल 40: महान मन्दिर का दर्शन**

यहेजकेल नबी बाबुल की नदी के किनारे बैठे हुए थे, जहाँ परमेश्वर की उपस्थिति उन पर प्रगट हुई। यह उस समय की बात है जब यहूदा का देश उजड़ चुका था और यरूशलेम का मन्दिर नष्ट हो गया था। परमेश्वर के लोग बंधुआई में थे, और उनके मन में निराशा छाई हुई थी। तब यहोवा ने यहेजकेल को एक अद्भुत दर्शन दिखाया, जो आने वाले समय में उनकी आशा और पुनर्निर्माण का प्रतीक था।

एक दिन, परमेश्वर की आत्मा यहेजकेल को उठाकर एक ऊँचे पहाड़ पर ले गई। वहाँ उन्होंने देखा कि एक विशाल और भव्य मन्दिर का निर्माण हुआ था, जिसकी संरचना अत्यंत सुनियोजित और पवित्र थी। मन्दिर के चारों ओर एक ऊँची दीवार थी, जो उसकी पवित्रता की रक्षा करती थी। यहेजकेल ने देखा कि एक व्यक्ति, जिसका स्वरूप पीतल जैसा चमकदार था, हाथ में मापने का डोर और सरकण्डा लिए खड़ा था। वह परमेश्वर का दूत था, जो यहेजकेल को मन्दिर के सभी माप और विवरण बताने वाला था।

दूत ने यहेजकेल से कहा, **”मनुष्य के सन्तान, जो कुछ तू देखे, उसे ध्यान से देख और सुन, क्योंकि मैं तुझे यह सब दिखाने के लिए यहाँ लाया हूँ। इन बातों को इस्राएल के घराने को बता देना।”**

यहेजकेल ने देखा कि मन्दिर का पूर्वी द्वार बहुत ही सुन्दर और विशाल था। द्वार के स्तम्भों पर नक्काशी की गई थी, और उसके अंदर कई कोठरियाँ बनी हुई थीं, जहाँ पुजारी और सेवक रुक सकते थे। द्वार की चौड़ाई, ऊँचाई और गहराई सब कुछ सटीक थी, जो परमेश्वर की पूर्ण योजना को दर्शाती थी। दूत ने हर एक भाग को नापा और यहेजकेल को बताया कि यह सब पवित्र है और परमेश्वर की महिमा के लिए बनाया गया है।

फिर वे आँगन में पहुँचे, जहाँ यहेजकेल ने देखा कि चारों ओर कमरे बने हुए थे, जहाँ भेंट चढ़ाने वाले लोग और पुजारी तैयारी कर सकते थे। आँगन का फर्श पत्थरों से बना था, और उस पर जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी। मन्दिर के मध्य भाग में वेदी थी, जहाँ परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ाए जाते थे। सब कुछ इतना सुन्दर और पवित्र था कि यहेजकेल का मन आनन्द से भर गया।

दूत ने यहेजकेल को मन्दिर के भीतरी भाग में ले जाया, जहाँ पवित्र स्थान और अतिपवित्र स्थान था। वहाँ की दीवारों पर करूबों की आकृतियाँ बनी हुई थीं, और सब कुछ सोने से मढ़ा हुआ था। यहेजकेल समझ गए कि यह मन्दिर परमेश्वर की महिमा का निवास स्थान था, जहाँ से वह अपने लोगों के बीच रहकर उनका मार्गदर्शन करेगा।

अंत में, दूत ने यहेजकेल से कहा, **”यह मन्दिर इस्राएल के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञा का प्रतीक है। जिस प्रकार इसकी हर नाप और संरचना सही है, उसी प्रकार परमेश्वर अपने लोगों को पुनर्स्थापित करेगा और उनके जीवन को नया करेगा। यह दर्शन उनके लिए आशा है कि परमेश्वर उन्हें कभी नहीं छोड़ेगा।”**

यहेजकेल ने इस दर्शन को गहराई से अपने हृदय में संजो लिया और इस्राएल के लोगों को यह सन्देश सुनाया कि परमेश्वर उनके भविष्य को सुन्दर बनाएगा और उन्हें फिर से अपनी महिमा से भर देगा।

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *