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होशे 12: विश्वास और पश्चाताप की प्रेरणादायक कहानी (Note: The title is concise, within 100 characters, and removes symbols/asterisks as requested.)

**होशे 12: एक कहानी विश्वास और पश्चाताप की**

प्राचीन काल में, इस्राएल के लोग अपने परमेश्वर यहोवा से दूर हो चुके थे। वे झूठे देवताओं की पूजा करते, अन्याय और धोखे से धन बटोरते, और अपने हृदय में घमंड भर चुके थे। परमेश्वर ने अपने भविष्यवक्ता होशे के माध्यम से उन्हें चेतावनी दी, उनके पापों को उजागर किया, और उन्हें पश्चाताप करने का आह्वान किया।

### **याकूब की याद दिलाता परमेश्वर**

होशे ने लोगों को याद दिलाया कि कैसे उनका पूर्वज याकूब भी अपनी जवानी में धोखेबाज़ था। उसने अपने भाई एसाव को जन्मrights और आशीर्वाद के लिए ठगा था (उत्पत्ति 25:29-34; 27:1-40)। लेकिन जब वह अपने अकेलेपन और डर के समय में था, तब परमेश्वर ने उससे बात की। वही याकूब जिसने धोखा दिया था, अंततः परमेश्वर के सामने झुका और उसने उसकी दया की याचना की।

“उसने परमेश्वर से रो-रोकर प्रार्थना की,” होशे ने घोषणा की, “और बेतेल में उसने उसके साथ संघर्ष किया, और विजयी हुआ” (होशे 12:4)। याकूब ने स्वीकार किया कि उसकी ताकत परमेश्वर पर निर्भर थी, और उसने उसका नाम “इस्राएल” (अर्थात, ‘जो परमेश्वर के साथ संघर्ष करता है’) पाया।

### **इस्राएल का पाप और परमेश्वर की चेतावनी**

लेकिन अब, याकूब के वंशज, इस्राएल के लोग, अपने पूर्वज के विपरीत, परमेश्वर से दूर भाग रहे थे। वे व्यापार में धोखा देते, माप-तौल में कमी करते, और कहते थे, “हम धनवान बन गए हैं, हमारे लिए कुछ भी बुरा नहीं होगा!” (होशे 12:8)। उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं को ताक पर रख दिया था और मूर्तियों की पूजा करने लगे थे।

होशे ने उन्हें डाँटा: “तुम कनान के निवासियों की तरह बन गए हो! तुम्हारे हाथों में धोखा भरा है!” (होशे 12:7)। परमेश्वर ने उन्हें बार-बार चेतावनी दी थी, लेकिन वे नहीं सुन रहे थे।

### **परमेश्वर का न्याय और दया का आह्वान**

परमेश्वर ने होशे के माध्यम से कहा: “मैंने तुम्हें मिस्र से निकाला, तुम्हें मरुभूमि में सुरक्षित रखा, और तुम्हें इस उपजाऊ भूमि में बसाया। फिर भी तुम मुझे भूल गए!” (होशे 12:9, 13)। उनके पापों के कारण, परमेश्वर उन पर न्याय लाने वाला था—शत्रु उन पर आक्रमण करेंगे, और उनकी समृद्धि नष्ट हो जाएगी।

लेकिन परमेश्वर की दया अभी भी उनके लिए थी। होशे ने उन्हें पुकारा: “परमेश्वर के पास लौटो! न्याय करो, दया दिखाओ, और अपने परमेश्वर की बाट जोहो!” (होशे 12:6)। यदि वे पश्चाताप करते, तो परमेश्वर उन्हें क्षमा कर देता और उनकी स्थिति को फिर से सुधार देता।

### **निष्कर्ष: विश्वास और आज्ञाकारिता का पाठ**

होशे 12 की कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर धोखेबाज़ों और पापियों को भी मौका देता है, बशर्ते वे उसके पास विनम्र हृदय से लौटें। याकूब ने अपने जीवन में परिवर्तन किया और परमेश्वर का आशीर्वाद पाया। इस्राएल के लोगों को भी यही करना था।

आज हमारे लिए भी यही संदेश है: **धोखा और अहंकार हमें परमेश्वर से दूर ले जाते हैं, लेकिन पश्चाताप और विनम्रता हमें उसकी दया की ओर लाते हैं।** जैसे याकूब ने परमेश्वर के साथ संघर्ष किया और आशीष पाई, वैसे ही हम भी उस पर भरोसा रखकर जीवन जी सकते हैं।

“तुम अपने परमेश्वर यहोवा की ओर लौटो, क्योंकि तुम्हारा पाप ही तुम्हारे पतन का कारण है।” — होशे 14:1

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