**हबक्कूक 3: परमेश्वर की महिमा और विश्वास की जीत**
हबक्कूक नबी यहूदा के अंधकारमय समय में खड़ा था। उसके चारों ओर अत्याचार, हिंसा और अन्याय फैला हुआ था। लोगों ने परमेश्वर की आज्ञाओं को ताक पर रख दिया था, और धर्मी लोग दुखी होकर पुकार रहे थे। हबक्कूक ने परमेश्वर से प्रश्न किया, “हे प्रभु, तू कब तक मैं पुकारता रहूँगा, और तू नहीं सुनता? मैं तेरे सामने हिंसा की दोहाई देता हूँ, पर तू बचाता क्यों नहीं?” (हबक्कूक 1:2)।
परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनी और उत्तर दिया कि वह कसदियों को उठाएगा, जो एक निर्दयी और शक्तिशाली जाति थी, ताकि वे यहूदा के पापों का न्याय करें। यह सुनकर हबक्कूक और भी विचलित हुआ। उसने पूछा, “हे पवित्र परमेश्वर, तू जो निर्दोषों का संहार नहीं करता, वही इन कसदियों को क्यों सहन करेगा?” (हबक्कूक 1:13)।
तब हबक्कूक ने अपनी चौकी पर खड़े होकर प्रतीक्षा की, कि शायद परमेश्वर उसे कोई और उत्तर दे। और प्रभु ने उसके हृदय में बात रखी। हबक्कूक ने स्वयं को तैयार किया और कहा, “मैं अपनी पहरेदारी पर खड़ा रहूँगा, और गढ़ पर डटा रहूँगा, और देखता रहूँगा कि वह मुझ से क्या कहता है” (हबक्कूक 2:1)।
अंत में, परमेश्वर ने हबक्कूक को एक अद्भुत दर्शन दिया। उसने अपनी आँखों से प्रभु की महिमा को आकाश और पृथ्वी पर छा जाते देखा। उसने एक भविष्यद्वाणी का गीत गाया, जो हबक्कूक 3 में लिखा गया है।
### **परमेश्वर का भयानक प्रकटन**
हबक्कूक ने देखा कि परमेश्वर सिनै पर्वत से आ रहा है। उसकी ज्योति सूर्य के प्रकाश से भी अधिक तेजस्वी है। उसके सामने से महामारी फैलती है, और उसके पाँवों के नीचे से विपत्ति निकलती है। वह खड़ा होता है, और पृथ्वी काँप उठती है। वह दृष्टि डालता है, और जातियाँ तितर-बितर हो जाती हैं।
परमेश्वर नदियों को चीर देता है, समुद्र को अपने बल से पार कर जाता है। पहाड़ उसके सामने काँपते हैं, पुराने पर्वत टूट जाते हैं। उसकी महिमा से आकाश के तारे छिप जाते हैं, और चंद्रमा अपनी जगह छोड़ देता है। परमेश्वर का क्रोध अग्नि के समान फैलता है, और उसके बाण बिजली की तरह चमकते हैं।
हबक्कूक ने देखा कि परमेश्वर अपनी प्रजा के लिए युद्ध करता है। वह दुष्टों को नष्ट करने आता है, परन्तु अपने लोगों को बचाने। उसने अतीत में कैसे मिस्र को दण्ड दिया, और लाल सागर को फाड़कर इस्राएल को पार कराया। वही परमेश्वर अब भी अपनी शक्ति दिखाएगा।
### **हबक्कूक की प्रतिक्रिया: विश्वास की विजय**
इस भयानक दर्शन के बाद, हबक्कूक का हृदय काँप उठा। उसके होठ थरथराए, और उसकी हड्डियाँ बिखर गईं। परन्तु फिर भी, उसने अपने विश्वास को दृढ़ रखा। उसने गाया:
> “यदि अंजीर के वृक्ष में फल न लगें,
> और दाखलताओं में अंगूर न हों,
> यदि जैतून की फसल न हो,
> और खेतों में अन्न न उपजे,
> यदि भेड़-बकरियाँ मर जाएँ,
> और गोशालाओं में पशु न रहें—
> तो भी मैं परमेश्वर में आनन्दित रहूँगा,
> मैं अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर में मगन रहूँगा!” (हबक्कूक 3:17-18)
हबक्कूक ने समझ लिया कि परमेश्वर की योजनाएँ अच्छी हैं, चाहे बाहरी परिस्थितियाँ कितनी भी भयानक क्यों न हों। उसने अपना भरोसा दृढ़ किया कि धर्मी व्यक्ति विश्वास से जीवित रहेगा (हबक्कूक 2:4)।
### **अंत में विजय**
हबक्कूक ने अपनी प्रार्थना समाप्त करते हुए कहा:
> “यहोवा परमेश्वर मेरी शक्ति है,
> वह मेरे पाँव हरिण के समान बनाता है,
> और मुझे ऊँचे स्थानों पर चलाता है!” (हबक्कूक 3:19)
उसने जान लिया कि चाहे संकट आएँ, परमेश्वर उसे स्थिर रखेगा। वह उसे पहाड़ों की ऊँचाइयों पर ले चलेगा, जहाँ शत्रु उस तक नहीं पहुँच सकते।
इस प्रकार, हबक्कूक की कहानी हमें सिखाती है कि अंधकारमय समय में भी, परमेश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। उसकी योजनाएँ हमारी समझ से ऊपर हैं, परन्तु वह सदैव अपने लोगों के लिए लड़ता है। जैसे हबक्कूक ने कहा, “यहोवा में आनन्दित हो,” वैसे ही हमें भी हर परिस्थिति में उसकी स्तुति करनी चाहिए।
**समाप्त।**