**यशायाह 3: न्याय और अन्याय की कहानी**
यरूशलेम शहर एक समय में परमेश्वर की महिमा से भरपूर था। उसकी गलियाँ धर्म और न्याय से प्रकाशित थीं, और लोग परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार चलते थे। परंतु धीरे-धीरे, लोगों के हृदय अहंकार और पाप से भर गए। उन्होंने परमेश्वर को भुलाकर अपने ही मन की मनमानी करनी शुरू कर दी। धन और सत्ता के लोभ ने उनके विवेक को ढक लिया, और न्याय के स्थान पर अन्याय ने अपना सिंहासन जमा लिया।
### **परमेश्वर का न्याय**
तब यहोवा ने यशायाह भविष्यद्वक्ता के माध्यम से यरूशलेम और यहूदा के लोगों से कहा:
**”देखो, प्रभु यहोवा सर्वशक्तिमान यरूशलेम और यहूदा के सहारे को छीन लेगा। उनके पास जो कुछ भी है—रोटी, पानी, वीर, न्यायी, भविष्यद्वक्ता, बुद्धिमान, कारीगर और समझदार लोग—सब को वह दूर कर देगा।”**
यशायाह ने देखा कि परमेश्वर का कोप उन पर आने वाला था। उसने भविष्यवाणी की कि देश में अराजकता फैल जाएगी। लोग एक-दूसरे के विरुद्ध खड़े होंगे, युवा बुजुर्गों का अपमान करेंगे, और नीच व्यक्ति सम्मानित लोगों पर अहंकार से बोलेंगे।
### **अभिमानी स्त्रियों का दण्ड**
यशायाह ने विशेष रूप से उन अभिमानी स्त्रियों के विरुद्ध चेतावनी दी जो धन और श्रृंगार में डूबी हुई थीं। वे अपने आभूषणों, महंगे वस्त्रों और सुगंधित तेलों पर इतराती थीं, परंतु उनके हृदय में परमेश्वर के प्रति कोई भय नहीं था।
**”उस दिन प्रभु उनके मुकुटों, चंद्रहारों, टखनों के गहनों, मुखओढ़ों, सुगंधित तेलों और जादू की पट्टियों को छीन लेगा। उनके स्थान पर वे धूल और टाट ओढ़ेंगी। उनके सुंदर केश कट जाएँगे, और उनकी सुंदरता लज्जा में बदल जाएगी।”**
यशायाह ने कहा कि ये स्त्रियाँ अपने पापों के कारण विधवा और अनाथ हो जाएँगी। उनके पुरुष युद्ध में मारे जाएँगे, और वे रोते-चिल्लाते हुए प्रभु से दया की भीख माँगेंगी, परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
### **परमेश्वर की चेतावनी और आशा**
इस सबके बावजूद, परमेश्वर ने उन्हें एक मौका दिया। यशायाह ने घोषणा की:
**”हे सिय्योन के पुत्रो, तुम्हारे नेताओं ने तुम्हें भटकाया है। परंतु प्रभु न्याय करने आ रहा है। वह अपने लोगों के अधर्म का हिसाब लेगा। फिर भी, जो धर्मी हैं, वे उसकी शरण में सुरक्षित रहेंगे।”**
अंत में, यशायाह ने लोगों से पश्चाताप करने और परमेश्वर की ओर लौटने का आह्वान किया। उसने कहा कि यदि वे अपने पापों को छोड़कर सच्चे मन से परमेश्वर की खोज करेंगे, तो वह उन पर दया करेगा और उन्हें पुनः स्थापित करेगा।
**”परमेश्वर का न्याय निश्चित है, परंतु उसकी करुणा अनन्त। जो उसकी शरण में आएँगे, वे कभी निराश नहीं होंगे।”**
इस प्रकार, यशायाह अध्याय 3 हमें सिखाता है कि अहंकार और पाप का अंत विनाश है, परंतु पश्चाताप और नम्रता से परमेश्वर की कृपा प्राप्त होती है।