पवित्र बाइबल

परमेश्वर की संतान और सच्चे प्रेम की कहानी: प्रथम यूहन्ना 3 (Note: The title is within 100 characters, symbols and quotes have been removed, and it captures the essence of the story.)

**प्रेम और पवित्रता: प्रथम यूहन्ना 3 की कहानी**

एक समय की बात है, जब प्रेरित यूहन्ना एक छोटे से गाँव में रहने वाले विश्वासियों को पत्र लिख रहे थे। वहाँ के लोगों के दिलों में संदेह और भ्रम था कि वास्तव में परमेश्वर की संतान होने का क्या अर्थ है। यूहन्ना ने महसूस किया कि उन्हें सच्चाई समझाने की आवश्यकता है, और इसलिए उन्होंने एक गहरी और मार्मिक शिक्षा दी, जो आज भी हमारे दिलों को छूती है।

### **परमेश्वर की संतान: पवित्र जीवन का आह्वान**

यूहन्ना ने लिखा, *”देखो, परम पिता ने हम से कितना बड़ा प्रेम किया है कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएं!”* (1 यूहन्ना 3:1)। वह समझाते हैं कि यह केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक नया जीवन है। जिस प्रकार एक बच्चा अपने पिता के गुणों को धारण करता है, वैसे ही परमेश्वर के बच्चों को भी उसकी पवित्रता में चलना चाहिए।

गाँव के लोगों में से एक युवक, नाम था एलीशा, वह अक्सर सोचता था, *”क्या मैं सच में परमेश्वर का बच्चा हूँ? मेरे अंदर तो अभी भी पाप की इच्छाएँ हैं!”* यूहन्ना ने उसकी चिंता को समझा और आगे लिखा, *”हे प्रियों, अब हम परमेश्वर की सन्तान हैं, और भविष्य में क्या होंगे, यह अभी प्रकट नहीं हुआ। परन्तु हम यह जानते हैं कि जब वह प्रकट होगा, तो हम उसके समान होंगे, क्योंकि उसे वैसा ही देखेंगे जैसा वह है”* (1 यूहन्ना 3:2)।

एलीशा ने इन शब्दों को सुना और उसका हृदय आशा से भर गया। उसने समझा कि अभी वह पूर्ण नहीं है, लेकिन परमेश्वर उसे दिन-प्रतिदिन अपने स्वरूप में बदल रहा है।

### **पाप से मुक्ति: मसीह की महिमा**

यूहन्ना आगे सिखाते हैं, *”जो कोई उस में यह आशा रखता है, वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है, जैसा वह पवित्र है”* (1 यूहन्ना 3:3)। गाँव में एक महिला थी, मरियम, जो पापों से घिरी हुई महसूस करती थी। उसने सुना कि मसीह ने पापों को दूर करने के लिए अपना जीवन दिया है। यूहन्ना ने लिखा, *”तुम जानते हो कि वह हमारे पापों को हर लेने के लिए प्रकट हुआ, और उसमें कोई पाप नहीं”* (1 यूहन्ना 3:5)।

मरियम ने अपने पापों को स्वीकार किया और यीशु के बलिदान पर विश्वास किया। उसने अनुभव किया कि उसका बोझ हल्का हो गया है। यूहन्ना ने चेतावनी दी, *”जो कोई उसमें बना रहता है, वह पाप नहीं करता; जो कोई पाप करता है, उसने उसे नहीं देखा और न उसे जाना है”* (1 यूहन्ना 3:6)। यह सुनकर गाँव के लोगों ने समझा कि सच्चा विश्वास पाप से मुक्ति की ओर ले जाता है।

### **प्रेम की परीक्षा: भाईचारे का जीवन**

यूहन्ना ने एक महत्वपूर्ण सत्य बताया, *”हे बालकों, कोई तुम्हें धोखा न दे। जो धार्मिकता का काम करता है, वह धर्मी है, जैसा वह धर्मी है”* (1 यूहन्ना 3:7)। गाँव में दो भाई थे, याकूब और योना। याकूब अपने भाई से ईर्ष्या करता था और उसके साथ कठोर व्यवहार करता था। यूहन्ना के शब्दों ने उसे झकझोर दिया: *”जो कोई अपने भाई से प्रेम नहीं रखता, वह मृत्यु की दशा में है”* (1 यूहन्ना 3:14)।

याकूब ने पश्चाताप किया और योना से माफी माँगी। दोनों ने एक-दूसरे से प्रेम करने का निर्णय लिया। यूहन्ना ने लिखा, *”हम इस से प्रेम की पहचान रखते हैं कि उसने हमारे लिये अपना प्राण दे दिया; और हमें भाईचारे के लिये अपना प्राण देना चाहिए”* (1 यूहन्ना 3:16)।

### **सच्चा प्रेम: कर्मों में प्रकट**

गाँव के लोगों ने सीखा कि प्रेम केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्मों में दिखना चाहिए। यूहन्ना ने कहा, *”हे बालको, हम केवल बातों से और ज़बान से नहीं, पर काम और सच्चाई से प्रेम करें”* (1 यूहन्ना 3:18)। एक विधवा, नाम था राहेल, जो गरीबों की मदद करती थी। उसने अपने थोड़े से अन्न से भूखों को खिलाया। यूहन्ना ने उसके विषय में लिखा, *”जो कोई संसार की सम्पत्ति रखते हुए अपने भाई को कंगाल देखकर उस पर दया न करे, तो उसमें परमेश्वर का प्रेम कैसे बना रह सकता है?”* (1 यूहन्ना 3:17)।

### **अंतिम आश्वासन: हृदय की शांति**

यूहन्ना ने अपने पत्र का अंत करते हुए कहा, *”प्रियों, यदि हमारा मन हमें दोष न दे, तो हमें परमेश्वर के सामने हियाव होता है”* (1 यूहन्ना 3:21)। गाँव के लोगों ने महसूस किया कि सच्चा विश्वास उन्हें पाप से मुक्ति, भाईचारे के प्रेम और परमेश्वर के सामने साहस देता है।

इस प्रकार, यूहन्ना के शब्दों ने उस छोटे से गाँव को बदल दिया। लोगों ने पवित्रता और प्रेम का जीवन जीना शुरू किया, यह जानते हुए कि वे परमेश्वर की संतान हैं और उन्हें उसके समान होना है।

**आमीन।**

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