**मरकुस 13: महान संकट और मसीह का आगमन**
उस दिन यीशु मसीह यरूशलेम के मन्दिर से बाहर निकल रहे थे। उनके शिष्यों में से एक ने मन्दिर की भव्यता की ओर इशारा करते हुए कहा, “गुरु, देखो ये पत्थर कितने सुन्दर हैं और ये इमारतें कितनी विशाल हैं!”
यीशु ने गंभीरता से उसकी ओर देखा और कहा, “क्या तुम इन विशाल इमारतों को देख रहे हो? मैं तुमसे सच कहता हूँ कि यहाँ एक पत्थर पर दूसरा पत्थर नहीं रह जाएगा। सब गिरा दिया जाएगा।”
शिष्य चौंक गए। उन्होंने यीशु से पूछा, “हमें बताइए, ये सब कब होगा? और इन सबके होने का क्या चिन्ह होगा?”
यीशु ने उन्हें जैतून पहाड़ पर अकेले में बुलाया और विस्तार से समझाना शुरू किया। उनकी आवाज़ में गंभीरता थी, और आँखों में भविष्य की उस भयानक घड़ी की छवि तैर रही थी।
**झूठे मसीह और संकट के दिन**
“सावधान रहो,” यीशु ने कहा, “कई लोग मेरे नाम से आएँगे और कहेंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ,’ और बहुतों को भरमाएँगे। जब तुम युद्धों की बातें सुनो और युद्धों की चर्चा हो, तो घबराना नहीं। ये बातें तो होनी ही हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि अंत आ गया है।”
उन्होंने आगे कहा, “जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा। जगह-जगह भूकम्प आएँगे और अकाल पड़ेंगे। ये सब पीड़ाएँ तो केवल आरम्भ की पीड़ाएँ होंगी।”
**शिष्यों के लिए चेतावनी**
यीशु ने अपने शिष्यों को सावधान किया, “तुम्हें अपने विषय में सावधान रहना होगा। लोग तुम्हें अदालतों में पेश करेंगे और तुम्हें कोड़े मारेंगे। तुम्हें मेरे नाम के कारण राज्यपालों और राजाओं के सामने खड़ा किया जाएगा, ताकि तुम उनके सामने गवाही दो। परन्तु जो अंत तक स्थिर रहेगा, वही उद्धार पाएगा।”
**घृणित उजाड़ने वाली वस्तु**
फिर यीशु ने एक भविष्यवाणी की जिसने सभी को स्तब्ध कर दिया। “जब तुम उस घृणित उजाड़ने वाली वस्तु को देखोगे, जहाँ उसका होना उचित नहीं है (जो पढ़ने वाला समझे), तब यहूदिया के लोग पहाड़ों पर भाग जाएँ। जो छत पर हो, वह नीचे न उतरे और न ही घर में से कुछ लेने जाए। जो खेत में हो, वह अपने चोगे को लेने के लिए पीछे न लौटे। उन दिनों में गर्भवती और दूध पिलाने वाली स्त्रियों के लिए क्या ही दुःख होगा!”
**मनुष्य के पुत्र का महान आगमन**
यीशु ने आकाश की ओर देखते हुए कहा, “उन दिनों के संकट के बाद सूर्य अंधकारमय हो जाएगा, चन्द्रमा अपना प्रकाश न देगा, तारे आकाश से गिरेंगे और आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। तब लोग मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और महिमा के साथ बादलों पर आते देखेंगे। वह अपने दूतों को भेजेगा और वे पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक, चारों दिशाओं से, अपने चुने हुओं को इकट्ठा करेंगे।”
**अंजीर के पेड़ से शिक्षा**
यीशु ने एक दृष्टान्त दिया, “अंजीर के पेड़ से शिक्षा लो। जब उसकी डालियाँ कोमल हो जाती हैं और पत्ते निकल आते हैं, तो तुम जान जाते हो कि गर्मी निकट है। वैसे ही जब तुम इन सब बातों को होते देखोगे, तो जान लेना कि वह समय निकट है, यहाँ तक कि द्वार पर है। मैं तुमसे सच कहता हूँ कि यह पीढ़ी बीतने न पाएगी, जब तक ये सब बातें पूरी न हो जाएँ। आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरे वचन कभी नहीं टलेंगे।”
**अंत के दिनों के लिए तैयार रहो**
अंत में, यीशु ने एक महत्वपूर्ण चेतावनी दी, “परन्तु उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, न पुत्र, केवल पिता जानता है। सावधान रहो, जागते रहो और प्रार्थना करते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आएगा। यह उस मनुष्य के समान है, जो परदेश जाते समय अपने दासों को घर की ज़िम्मेदारी सौंपता है और हर एक को उसका काम बताता है। वह द्वारपाल को आज्ञा देता है कि जागता रहे। इसलिए तुम भी जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि घर का स्वामी कब आएगा—शाम को, आधी रात को, मुर्गे के बाँग देने के समय या प्रभात काल में। वह अचानक आकर तुम्हें सोते हुए न पाए। मैं जो कुछ तुमसे कहता हूँ, वह सबसे कहता हूँ—जागते रहो!”
यीशु के ये वचन सुनकर शिष्यों के हृदय भय और आशा से भर गए। वे जान गए कि अंत के दिनों में विश्वास और सतर्कता ही उनकी रक्षा करेगी।