**प्रेरितों के काम 16: पौलुस और सीलास की अद्भुत मुक्ति**
फिलिप्पी के नगर में, जो मकदूनिया प्रांत का एक प्रमुख शहर था, पौलुस और सीलास ने सुसमाचार का प्रचार करने का निश्चय किया। वे तीमुथियुस और लूका के साथ यात्रा कर रहे थे। शहर के बाहर एक नदी के किनारे, जहाँ यहूदी प्रार्थना करने के लिए इकट्ठा होते थे, वे बैठकर स्त्रियों से बातें करने लगे। उनमें से एक लुदिया नाम की स्त्री थी, जो बैंजनी कपड़े बेचने वाली थी और थुआथीरा नगर की रहने वाली थी। वह परमेश्वर की उपासक थी। प्रभु ने उसका हृदय खोला, और वह पौलुस की बातों को ग्रहण करने लगी। उसने और उसके घर वालों ने बपतिस्मा लिया और उसने प्रेरितों से विनती की, “यदि तुम मुझे प्रभु में विश्वासयोग्य समझते हो, तो मेरे घर में ठहरो।” और उसने उन्हें बहुत आग्रह से रोक लिया।
कुछ दिनों बाद, जब वे प्रार्थना स्थल की ओर जा रहे थे, तो एक दासी मिली जिसमें भविष्यवाणी करने वाला दुष्टात्मा था। वह अपने मालिकों के लिए भविष्यवाणी करके बहुत धन कमाती थी। वह पौलुस और उसके साथियों के पीछे-पीछे चलकर चिल्लाती रहती, “ये लोग परमप्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो तुम्हें उद्धार का मार्ग बताते हैं!” यह सुनकर पौलुस बहुत व्याकुल हुआ। अंततः वह मुड़ा और उस दुष्टात्मा से कहा, “यीशु मसीह के नाम से मैं तुझे आज्ञा देता हूँ कि इस स्त्री में से निकल जा!” उसी क्षण वह दुष्टात्मा निकल गया।
लेकिन जब उस दासी के मालिकों ने देखा कि उनकी आय का स्रोत समाप्त हो गया है, तो वे क्रोधित हो गए। उन्होंने पौलुस और सीलास को पकड़कर बाजार के चौक में अधिकारियों के सामने खींच लिया। “ये यहूदी हमारे नगर में उपद्रव फैला रहे हैं!” वे चिल्लाए। “ये ऐसी रीतियाँ सिखाते हैं जो रोमी नागरिकों के लिए ग्रहण करने योग्य नहीं हैं!” भीड़ भी उनके विरोध में उठ खड़ी हुई। अधिकारियों ने उनके कपड़े फाड़ डाले और उन्हें कोड़े लगाने की आज्ञा दी। बहुत मार खाने के बाद, उन्हें जेल में डाल दिया गया, और जेलर को आदेश मिला कि वह उन्हें सख्ती से कैद रखे।
उसने उन्हें अंदर की कोठरी में डाल दिया और उनके पैरों को काठ में जकड़ दिया। आधी रात के समय, जब पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और परमेश्वर की स्तुति गा रहे थे, तभी अचानक एक बड़ा भूकंप आया। जेल की नींव हिल उठी, सभी दरवाजे खुल गए, और कैदियों की बेड़ियाँ ढीली हो गईं। जेलर नींद से जागा और जब उसने देखा कि जेल के दरवाजे खुले हैं, तो उसने सोचा कि सभी कैदी भाग गए होंगे। वह तलवार निकालकर आत्महत्या करने ही वाला था कि पौलुस ने ऊँची आवाज़ में कहा, “अपने आप को कोई हानि न पहुँचा! हम सब यहीं हैं!”
जेलर ने दीपक मँगवाया और भीतर दौड़कर पौलुस और सीलास के सामने काँपता हुआ गिर पड़ा। फिर वह उन्हें बाहर ले आया और पूछा, “हे महानुभावों, मुझे क्या करना चाहिए कि मैं उद्धार पाऊँ?” उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।” फिर उन्होंने उसे और उसके घर वालों को प्रभु का वचन सुनाया। उसी घड़ी जेलर ने उन्हें ले जाकर उनके घाव धोए, और वह तुरन्त बपतिस्मा लेने वालों में से हो गया। फिर उसने उन्हें अपने घर में ले जाकर भोजन परोसा, और वह सारे घर समेत परमेश्वर पर विश्वास करके आनन्दित हुआ।
प्रातःकाल अधिकारियों ने सिपाहियों को यह कहला भेजा, “उन मनुष्यों को छोड़ दो।” जेलर ने पौलुस को यह समाचार सुनाया, “अधिकारियों ने तुम्हें छोड़ने का आदेश दिया है। अब तुम निकलकर कुशल से चले जाओ।” परन्तु पौलुस ने कहा, “हमें बिना किसी अपराध के जनता के सामने कोड़े लगवाए गए, रोमी नागरिक होने के नाते, और फिर जेल में डाल दिया गया। अब वे चुपके से हमें निकालना चाहते हैं? नहीं, वे स्वयं आकर हमें बाहर ले जाएँ!”
जब अधिकारियों को यह सूचना मिली कि वे रोमी नागरिक हैं, तो वे डर गए। वे स्वयं आए और उनसे विनती करके नगर से बाहर निकाल दिया। पौलुस और सीलास लुदिया के घर गए, जहाँ भाइयों से मिलकर उन्हें ढाढस बँधाया, और फिर वहाँ से चले गए।
इस प्रकार, परमेश्वर की सामर्थ्य और अनुग्रह ने फिलिप्पी में अपना कार्य किया, और सत्य का प्रकाश अंधकार पर विजयी हुआ।