पवित्र बाइबल

क्रेते में टीटस की जिम्मेदारी और सच्चाई की जीत

**टीटस 1: एक विस्तृत कथा**

**प्रस्तावना**

क्रेते द्वीप की हवाएँ नमक और समुद्री खुशबू से भरी हुई थीं। सूरज की किरणें पहाड़ियों पर चमक रही थीं, और नीले आकाश के नीचे छोटे-छोटे गाँव बसे हुए थे। यहाँ के लोग मेहनती थे, पर उनमें से कई झूठ और आलस के शिकार भी थे। क्रेते के लोगों के बारे में एक कहावत प्रसिद्ध थी: *”क्रेतियों ने हमेशा झूठ बोला है, दुष्ट जानवर हैं, और आलसी पेटू हैं।”*

इसी द्वीप पर पौलुस के विश्वासपात्र सहयोगी, टीटस, को कलीसिया की व्यवस्था करने के लिए छोड़ा गया था। पौलुस ने टीटस को एक पत्र लिखा था, जिसमें उसे निर्देश दिए गए थे कि वह क्रेते की कलीसियाओं में योग्य अगुवों को कैसे नियुक्त करे।

**अध्याय 1: योग्य अगुवों की नियुक्ति**

टीटस ने पौलुस के पत्र को ध्यान से पढ़ा। उसमें लिखा था: *”मैंने तुझे इसलिए क्रेते में छोड़ दिया कि तू उन कामों को जो बाकी रह गए हैं, व्यवस्थित करे और नगर-नगर में प्राचीनों को नियुक्त करे, जैसा मैंने तुझे आज्ञा दी थी।”*

टीटस जानता था कि यह कार्य आसान नहीं होगा। क्रेते के लोगों में बहुत से ऐसे थे जो सच्चाई से दूर भटक गए थे। उन्हें ऐसे अगुवों की आवश्यकता थी जो न केवल शिक्षा दे सकें, बल्कि अपने जीवन से भी उदाहरण प्रस्तुत कर सकें।

पौलुस के शब्द उसके मन में गूँज रहे थे: *”जो कोई प्राचीन हो, वह निर्दोष हो, एक ही पत्नी का पति हो, और उसके बच्चे विश्वासी हों, जो लोग स्वच्छंदता और अवज्ञा के लिए दोषी न ठहराए जाते हों।”*

टीटस ने सोचा, “क्या क्रेते में ऐसे लोग हैं जो इन मापदंडों पर खरे उतरेंगे?”

**एक योग्य व्यक्ति की खोज**

टीटस ने कई दिनों तक प्रार्थना की और कलीसिया के सदस्यों से मिला। उसने देखा कि कुछ लोग ऐसे थे जो परमेश्वर के वचन में दृढ़ थे। उनमें से एक था **मनोहर**, जो एक समझदार और धैर्यवान व्यक्ति था। वह अपने परिवार और पड़ोसियों के बीच सम्मानित था। उसकी पत्नी, **प्रीति**, भी विश्वास में स्थिर थी, और उनके बच्चे परमेश्वर के मार्ग में चलते थे।

एक दिन, टीटस ने मनोहर से बात की: *”भाई मनोहर, कलीसिया को तुम्हारे जैसे विश्वासयोग्य व्यक्ति की आवश्यकता है। क्या तुम प्राचीन का दायित्व संभालोगे?”*

मनोहर ने विनम्रता से उत्तर दिया: *”यह बड़ा दायित्व है। मैं अपने आप को इसके योग्य नहीं समझता, परन्तु यदि प्रभु चाहें, तो मैं सेवा करने के लिए तैयार हूँ।”*

टीटस ने मुस्कुराते हुए कहा: *”तुम्हारा जीवन ही तुम्हारी योग्यता सिद्ध करता है। तुम निर्दोष हो, विश्वासयोग्य हो, और सत्य का सही ढंग से प्रचार कर सकते हो।”*

**झूठे शिक्षकों का प्रतिरोध**

लेकिन क्रेते में सब कुछ आसान नहीं था। कुछ लोग ऐसे भी थे जो गलत शिक्षाएँ फैला रहे थे। वे यहूदी किंवदंतियों और मनुष्यों की आज्ञाओं को परमेश्वर के वचन से ऊपर रखते थे। उनमें से एक, **दुष्यंत**, जो खुद को धर्मज्ञानी कहता था, लोगों को भ्रमित कर रहा था।

एक सभा में, दुष्यंत ने उपदेश देना शुरू किया: *”परमेश्वर ने हमें अनेक नियम दिए हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है! यदि तुम इनका पालन नहीं करोगे, तो तुम्हारा उद्धार नहीं होगा!”*

टीटस ने उसे रोकते हुए कहा: *”भाई, हमारा उद्धार केवल यीशु मसीह के अनुग्रह से है, न कि मनुष्यों के बनाए नियमों से। तुम लोगों को गलत शिक्षा दे रहे हो!”*

दुष्यंत क्रोधित हो गया: *”तुम कौन होते हो मुझे सच्चाई सिखाने वाले?”*

टीटस ने दृढ़ता से कहा: *”मैं वही सिखाता हूँ जो पौलुस ने सिखाया है और जो परमेश्वर का वचन हमें बताता है। तुम्हारी शिक्षाएँ केवल लोगों को बंधन में डालती हैं।”*

लोगों ने टीटस की बात सुनी और सच्चाई को पहचाना। दुष्यंत को सभा से बाहर जाना पड़ा।

**निष्कर्ष**

टीटस ने क्रेते की कलीसियाओं में योग्य अगुवों को नियुक्त किया, जो सत्य का प्रचार करते थे और झूठ का खंडन करते थे। उसने लोगों को सिखाया कि परमेश्वर की सेवा पवित्रता और सच्चाई से करनी चाहिए।

क्रेते की कलीसिया धीरे-धीरे मजबूत होने लगी, और लोगों ने सच्चे विश्वास की ओर कदम बढ़ाया। टीटस ने पौलुस के शब्दों को साकार किया: *”सुसमाचार के अनुसार, परमेश्वर के वचन की शिक्षा दो, और लोगों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करो।”*

और इस प्रकार, क्रेते में सत्य की ज्योति चमक उठी।

**समाप्त।**

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