पवित्र बाइबल

मूसा का संदेश: आशीषें और शाप

**व्यवस्थाविवरण 28: आशीषें और शाप**

एक समय की बात है, जब इस्राएल के लोग यरीहो के मैदानों में डेरे डाले हुए थे। मूसा, परमेश्वर के भक्त और इस्राएल के नेता, ने लोगों को इकट्ठा किया और उन्हें परमेश्वर के वचन सुनाने लगे। उस दिन, सूरज की किरणें जॉर्डन नदी के पानी पर चमक रही थीं, और हवा में एक पवित्र गंभीरता छाई हुई थी।

मूसा ने अपनी दाढ़ी हवा में लहराते हुए ऊँची आवाज़ में कहा, **”हे इस्राएल, सुनो! यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को मानोगे और उसकी व्यवस्था पर चलोगे, तो वह तुम्हें पृथ्वी के सभी देशों से श्रेष्ठ बनाएगा!”**

लोग चुपचाप सुन रहे थे, कुछ ने अपने बच्चों को गोद में ले लिया था, ताकि वे भी इन पवित्र वचनों को सुन सकें। मूसा ने आगे कहा, **”ये हैं वे आशीषें जो तुम पर आएँगी यदि तुम परमेश्वर की सुनोगे:”**

### **आशीषों का वर्णन**

1. **”तुम्हारी नगरों में और खेतों में समृद्धि होगी। तुम्हारी टोकरियाँ और भंडार अनाज से भर जाएँगे।”** मूसा ने अपने हाथ आकाश की ओर उठाते हुए कहा, मानो वह परमेश्वर के द्वारा दिए जाने वाले अनाज की बौछार का वर्णन कर रहे हों।

2. **”तुम्हारे बच्चे, तुम्हारे पशु और तुम्हारी भूमि परमेश्वर के आशीर्वाद से फलेंगे-फूलेंगे। गायों का दूध इतना अधिक होगा कि तुम्हारे बच्चे दही और मक्खन से खेलेंगे!”** लोगों ने एक-दूसरे की ओर देखा, उनकी आँखों में आशा चमक उठी।

3. **”जब तुम युद्ध में जाओगे, तो परमेश्वर तुम्हारे सामने से तुम्हारे शत्रुओं को भगा देगा। एक तुम सौ के सामने भागेंगे, और सौ तुम दस हज़ार के सामने!”** योद्धाओं ने अपनी तलवारें ऊँची कर लीं, मानो वे पहले ही विजय का जश्न मना रहे हों।

4. **”यहोवा तुम्हें अपनी पवित्र प्रजा बनाएगा। सारी पृथ्वी देखेगी कि तुम परमेश्वर के नाम से पुकारे जाते हो!”**

लोगों ने “आमेन!” कहा, और उनके हृदय आनंद से भर गए।

### **शापों की चेतावनी**

किंतु मूसा का चेहरा गंभीर हो गया। उनकी आवाज़ में एक दुःख भरा स्वर उभरा। **”परंतु यदि तुम परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानोगे, यदि तुम उसकी व्यवस्था से मुख मोड़ोगे, तो ये शाप तुम पर आ पड़ेंगे:”**

1. **”तुम्हारे घरों में अभाव होगा। तुम बीज बोओगे, पर दूसरे उसका फल खाएँगे। तुम्हारी स्त्रियाँ गर्भवती होंगी, परंतु उनके बच्चे शत्रुओं के हाथों में पड़ जाएँगे।”** कुछ स्त्रियों ने अपने पेट पर हाथ रख लिया, मानो वे उस दुःख की कल्पना कर रही हों।

2. **”यहोवा तुम्हें अन्य जातियों के सामने तितर-बितर कर देगा। तुम दूर देशों में जाकर ऐसे देवताओं की पूजा करोगे जिन्हें तुम नहीं जानते, वे लकड़ी और पत्थर के बने होंगे!”**

3. **”तुम भूख से व्याकुल होकर अपने ही बच्चों का मांस खाओगे। यहोवा तुम पर ऐसी विपत्ति भेजेगा कि तुम्हारे शत्रु भी तुम पर दया करेंगे!”**

लोगों में सन्नाटा छा गया। किसी ने सिसकी भर ली। मूसा ने अपनी छड़ी ज़मीन पर मारी और कहा, **”ये शाप इसलिए नहीं कि परमेश्वर निर्दयी है, बल्कि इसलिए कि तुमने उसकी प्रतिज्ञाओं को ठुकरा दिया! उसने तुम्हें जीवन और मृत्यु, आशीष और शाप के बीच चुनाव दिया है। अतः जीवन को चुनो!”**

### **निष्कर्ष**

सूरज अस्त हो रहा था, और लोगों के मन में मूसा के वचन गूँज रहे थे। कुछ ने परमेश्वर से क्षमा माँगी, कुछ ने अपने बच्चों को गले लगा लिया। मूसा ने अंत में कहा, **”आज मैंने तुम्हें जीवन और मृत्यु के बीच चुनाव दिया है। यहोवा को चुनो, और जीवित रहो!”**

और इस प्रकार, इस्राएल के सामने एक मार्ग रखा गया—आज्ञाकारिता की आशीषें, या अवज्ञा के शाप। उनकी नियति उनके चुनाव पर निर्भर थी।

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *