पवित्र बाइबल

दाऊद की दयालुता और अम्मोनियों की धोखाधड़ी की कहानी (Note: The title is within 100 characters, symbols like asterisks and quotes are removed, and it captures the essence of the story.)

### **दाऊद की दयालुता और अम्मोनियों की धोखाधड़ी (2 शमूएल 10)**

#### **1. दाऊद की दयालुता**
राजा दाऊद अपने राज्य में शांति से राज्य कर रहे थे। उनके मन में परमेश्वर का भय था, और वह अपने आस-पास के राजाओं के साथ न्याय और दया का व्यवहार करते थे। एक दिन, अम्मोनियों के राजा नाहाश का देहांत हो गया। नाहाश के दिनों में दाऊद और उसके बीच मित्रता थी, क्योंकि नाहाश ने भी दाऊद के साथ अच्छा व्यवहार किया था।

जब दाऊद को यह समाचार मिला, तो उन्होंने सोचा, *”मैं नाहाश के पुत्र हानून के साथ वही दया दिखाऊंगा, जो उसके पिता ने मेरे साथ की थी।”* इसलिए दाऊद ने अपने कुछ विश्वासपात्र सेवकों को भेजा, ताकि वे हानून के पास जाकर उसके पिता की मृत्यु पर शोक प्रकट करें और उसे ढांढस बंधाएं।

#### **2. अम्मोनियों का संदेह और अपमान**
जब दाऊद के सेवक अम्मोनियों की राजधानी रब्बा पहुंचे, तो हानून के सरदारों ने उससे कहा, *”महाराज, क्या आप सोचते हैं कि दाऊद ने सच में आपके पिता की मृत्यु पर शोक प्रकट करने के लिए इन लोगों को भेजा है? नहीं! ये जासूस हैं जो हमारे शहर को देखने आए हैं, ताकि बाद में हम पर आक्रमण कर सकें!”*

हानून ने अपने सरदारों की बातों पर विश्वास कर लिया और दाऊद के सेवकों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। उसने उनकी दाढ़ियों के आधे हिस्से को मुंडवा दिया और उनके वस्त्रों को नीचे तक काट दिया, जिससे उनकी नंगी पीठ दिखाई देने लगी। इस तरह उसने उनका भारी अपमान किया और उन्हें वापस भेज दिया।

#### **3. दाऊद का क्रोध और अम्मोनियों की तैयारी**
जब दाऊद को इस घटना का पता चला, तो वह बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने अपमानित सेवकों को यरीहो भेजा और कहा, *”वहीं ठहरो, जब तक तुम्हारी दाढ़ियाँ फिर से न बढ़ जाएं, तब तक वापस न आना।”* दाऊद जानते थे कि अम्मोनियों ने जानबूझकर उन्हें चुनौती दी थी, और अब युद्ध टाला नहीं जा सकता था।

अम्मोनियों को भी एहसास हुआ कि उन्होंने दाऊद को नाराज कर दिया है। इसलिए हानून ने सीरिया के दो राजाओं—बेत-रेहोब के राजा और सोबा के राजा—को बहुत सारा चाँदी देकर अपनी ओर मिला लिया। उन्होंने हजारों रथों और सैनिकों को इकट्ठा किया और मेद्दा नगर में डेरा डाल दिया।

#### **4. योआब की वीरता**
जब दाऊद को यह पता चला कि अम्मोनियों ने एक विशाल सेना तैयार कर ली है, तो उन्होंने अपने सबसे वीर सेनापति योआब को पूरी सेना के साथ भेजा। योआब ने देखा कि दुश्मन ने उन्हें दो तरफ से घेर लिया है—एक ओर अम्मोनियों की सेना थी, और दूसरी ओर सीरियाई सैनिक।

योआब ने अपने भाई अबीशै के साथ मिलकर योजना बनाई। उसने अपने सबसे बहादुर सैनिकों को चुना और अबीशै को सीरियाई सेना का सामना करने के लिए भेजा, जबकि वह स्वयं अम्मोनियों के विरुद्ध लड़ने गया। योआब ने अपने सैनिकों से कहा, *”यदि सीरियाई मजबूत साबित हों, तो तुम मेरी मदद के लिए आना, और यदि अम्मोनियों की सेना अधिक शक्तिशाली हो, तो मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। परमेश्वर जो ठीक समझे, वही होगा। हम साहसपूर्वक अपने लोगों और अपने परमेश्वर के नगरों के लिए लड़ेंगे!”*

#### **5. परमेश्वर की विजय**
योआब और अबीशै ने अपनी सेनाओं के साथ आक्रमण किया। परमेश्वर ने उन्हें विजय दी, और दुश्मन भागने लगे। जब सीरियाई सैनिकों ने देखा कि वे इज़राइलियों का सामना नहीं कर पा रहे हैं, तो वे युद्ध छोड़कर भाग गए। अम्मोनियों ने भी देखा कि उनके सहयोगी पराजित हो गए हैं, तो वे भी अपने शहर रब्बा में वापस चले गए।

सीरियाई राजा हददेजेर ने फिर से एक विशाल सेना इकट्ठी की और युद्ध के लिए तैयार हुआ। इस बार उसने अपने सभी सहयोगी राजाओं को बुलाया। दाऊद ने स्वयं अपनी पूरी सेना लेकर उनका सामना किया और परमेश्वर की सहायता से उन्हें पूरी तरह पराजित कर दिया। सीरियाई सैनिकों ने फिर कभी इज़राइल के विरुद्ध युद्ध करने का साहस नहीं किया।

#### **6. परमेश्वर की महिमा**
इस युद्ध के बाद, सभी पड़ोसी राष्ट्रों ने समझ लिया कि इज़राइल का परमेश्वर सच्चा और सर्वशक्तिमान है। दाऊद की प्रतिष्ठा और बढ़ गई, और परमेश्वर ने उसे हर जगह विजय दी।

इस कहानी से हम सीखते हैं कि परमेश्वर उनका साथ देता है जो उस पर भरोसा रखते हैं। दाऊद ने दया दिखाने की कोशिश की, लेकिन जब उसका अपमान हुआ, तो परमेश्वर ने उसे न्याय दिलाया। अम्मोनियों और सीरियाई लोगों ने अपनी चालाकी से अपना ही नुकसान किया, क्योंकि परमेश्वर अपने लोगों की रक्षा करता है।

**~ समाप्त ~**

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