पवित्र बाइबल

प्रभु को समर्पित जीवन की कहानी

**कहानी: प्रभु के लिए समर्पित जीवन**

एक समय की बात है, जब इस्राएल के लोग सीनै के जंगल में यात्रा कर रहे थे और परमेश्वर के नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत कर रहे थे। मूसा ने लोगों को परमेश्वर की व्यवस्था सिखाई थी, और उन्होंने यह जान लिया था कि उनका जीवन पूरी तरह से प्रभु को समर्पित होना चाहिए।

एक दिन, मूसा ने लोगों को इकट्ठा किया और उनसे कहा, **”हे इस्राएल के लोगो, परमेश्वर ने तुम्हारे लिए एक विशेष आज्ञा दी है। यदि कोई व्यक्ति प्रभु के लिए कोई विशेष मन्नत मानता है, तो उसे उस मन्नत का मूल्य चुकाना होगा, क्योंकि प्रभु के नाम में दिया गया हर वचन पवित्र है।”**

लोगों ने ध्यान से सुना, और कुछ लोगों के मन में प्रश्न उठे। एक बुजुर्ग व्यक्ति, एलीशाफा, जो कि लेवीय गोत्र से था, ने पूछा, **”मूसा, यदि कोई व्यक्ति अपने आप को प्रभु के लिए समर्पित करना चाहे, तो उसका मूल्य क्या होगा?”**

मूसा ने उत्तर दिया, **”परमेश्वर ने हमें स्पष्ट निर्देश दिए हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने आप को प्रभु के लिए अर्पित करता है, तो उसका मूल्य उसकी आयु और लिंग के अनुसार निर्धारित किया जाएगा।”**

फिर मूसा ने विस्तार से समझाया:

**”यदि कोई व्यक्ति बीस से साठ वर्ष के बीच का है, तो उसका मूल्य पचास शेकेल चांदी होगा। यदि कोई स्त्री है, तो उसका मूल्य तीस शेकेल होगा। यदि कोई पांच से बीस वर्ष का है, तो लड़के का मूल्य बीस शेकेल और लड़की का दस शेकेल होगा। यदि कोई एक महीने से पांच वर्ष तक का है, तो लड़के का मूल्य पांच शेकेल और लड़की का तीन शेकेल होगा। और यदि कोई साठ वर्ष से अधिक उम्र का है, तो पुरुष का मूल्य पंद्रह शेकेल और स्त्री का दस शेकेल होगा।”**

लोगों ने यह सुनकर प्रभु की बुद्धि की स्तुति की। उन्होंने समझ लिया कि परमेश्वर ने हर व्यक्ति के जीवन का मूल्य निर्धारित किया है, और कोई भी उपेक्षित नहीं है।

तभी एक युवक, योनातान, जिसने अपने जीवन को प्रभु के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया था, आगे आया और बोला, **”मैं अपने आप को प्रभु की सेवा में देना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ कि मेरा मूल्य पचास शेकेल है, और मैं इसे पवित्र धन के रूप में मंदिर के कोष में दूंगा।”**

मूसा ने उसकी भक्ति देखकर प्रसन्न होकर कहा, **”प्रभु तुम्हारे समर्पण को स्वीकार करेंगे। याद रखो, जो कुछ भी प्रभु को दिया जाता है, वह पवित्र है और उसे वापस नहीं लिया जा सकता।”**

फिर एक औरत, रूत, ने पूछा, **”यदि कोई अपने पशु को प्रभु के लिए अर्पित करना चाहे, तो क्या होगा?”**

मूसा ने उत्तर दिया, **”यदि कोई पशु शुद्ध है, जैसे गाय, भेड़, या बकरी, तो वह प्रभु के लिए स्वीकार्य होगा। उसे बदला नहीं जा सकता, न ही उसे किसी और पशु से बदला जा सकता है। यदि कोई ऐसा करता है, तो दोनों पशु पवित्र माने जाएंगे।”**

लोगों ने यह सीखा कि परमेश्वर के प्रति वचनबद्धता गंभीर है। उन्होंने समझ लिया कि मन्नत मानने का अर्थ है कि वे अपने वादे को पूरा करें, चाहे कुछ भी हो।

अंत में, मूसा ने सबको याद दिलाया, **”प्रभु पवित्र है, और उसके नाम में दिया गया हर वचन पवित्र है। इसलिए, जो कुछ भी तुम प्रभु को देते हो, उसे पूरे मन से दो, क्योंकि वह तुम्हारी निष्ठा को देखता है।”**

इस तरह, इस्राएल के लोगों ने सीखा कि परमेश्वर के प्रति समर्पण केवल बाहरी कर्म नहीं, बल्कि हृदय की गहरी निष्ठा है। और वे प्रभु के मार्ग पर चलते रहे, उसकी आज्ञाओं का पालन करते हुए।

**॥ शुभ समाप्ति ॥**

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