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न्यायियों 2: इस्राएल का विश्वासघात और परमेश्वर का न्याय

**न्यायियों 2 की कहानी: इस्राएल का विश्वासघात और परमेश्वर का न्याय**

उस समय की बात है जब इस्राएल के लोगों ने यहोशua की अगुवाई में कनान देश में प्रवेश किया था। परमेश्वर ने उनके सामने अनेक शक्तिशाली राष्ट्रों को पराजित किया था, और उन्हें वह भूमि दी थी जिसके विषय में उसने उनके पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी। परन्तु जब यहोशua और उस पीढ़ी के सभी लोग स्वर्ग सिधार गए, तो एक नई पीढ़ी उठ खड़ी हुई जो न तो यहोवा को जानती थी और न ही उन महान कार्यों को जो उसने इस्राएल के लिए किए थे।

### **इस्राएल का पाप और परमेश्वर का क्रोध**

धीरे-धीरे, इस्राएल के लोगों ने अपने परमेश्वर यहोवा को भुला दिया। उन्होंने कनानियों के देवताओं की पूजा करनी शुरू कर दी—बाल और अश्तोरेत जैसे मूर्तियों के सामने झुकने लगे। उन्होंने उन पहाड़ियों पर बने मंदिरों में जाकर बलिदान चढ़ाए जहाँ परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से मना किया था। उनका हृदय विश्वासघात से भर गया, और वे अपने पितरों के परमेश्वर से दूर होते चले गए।

यहोवा का कोप उन पर भड़क उठा। उसने कहा, *”क्योंकि इस लोगों ने मेरी वाचा को तोड़ा है जो मैंने उनके पूर्वजों से बाँधी थी, और उन्होंने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है, इसलिए मैं भी उनके सामने से कनानियों को नहीं निकालूँगा। ये लोग उनके साथ रहेंगे, और उनके देवता उनके लिए फन्दा बनेंगे।”*

### **परमेश्वर की दया और न्यायियों का उदय**

परन्तु परमेश्वर की दया अपार थी। जब इस्राएली अपने पापों के कारण दुःख भोगते और शत्रुओं के हाथों पिसते, तो वे कराह उठते और यहोवा की ओर फिरते। तब परमेश्वर उन पर दया करता और उनके लिए न्यायियों को खड़ा करता—वीर योद्धा और धर्मी नेता जो उन्हें शत्रुओं के चंगुल से छुड़ाते।

उन दिनों में, जब भी कोई न्यायी उठता, यहोवा उसके साथ रहता, और इस्राएल शत्रुओं से मुक्ति पाता। परन्तु जैसे ही न्यायी मर जाता, लोग फिर से अपने पुराने पापों में लौट जाते, और दुष्टता करने लगते। वे अपने पूर्वजों से भी अधिक कठोर हृदय बना लेते।

### **परमेश्वर की परीक्षा**

यहोवा ने इस्राएल को परखने का निश्चय किया। उसने कहा, *”मैं उन राष्ट्रों को पूरी तरह नष्ट नहीं करूँगा जिन्हें यहोशua ने छोड़ दिया था। मैं चाहता हूँ कि इस्राएल यह जाने कि क्या वे मेरे मार्गों पर चलेंगे, जैसे उनके पूर्वज चले थे, या नहीं।”*

इसलिए, परमेश्वर ने कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों को उनके बीच रहने दिया। ये राष्ट्र इस्राएल के लिए एक परीक्षा बन गए—क्या वे सच्चे परमेश्वर की आराधना करेंगे, या मूर्तियों के पीछे भटक जाएँगे?

### **इस्राएल का दुःखद चक्र**

इस प्रकार, इस्राएल का इतिहास एक दुःखद चक्र बन गया:
1. वे पाप करते और मूर्तिपूजा में लिप्त हो जाते।
2. यहोवा उन्हें शत्रुओं के हाथों सुपुर्द कर देता।
3. वे पीड़ित होकर परमेश्वर से प्रार्थना करते।
4. यहोवा दया करके उन्हें बचाने के लिए एक न्यायी भेजता।
5. कुछ समय शांति रहती, फिर वे फिर से पाप में गिर जाते।

परमेश्वर ने उन्हें बार-बार चेतावनी दी, परन्तु इस्राएल ने अपने कानों को बंद कर लिया। उनका हृदय कठोर हो गया, और वे अपने मूर्तिपूजक पड़ोसियों के समान होते चले गए।

### **सबक और प्रतिज्ञा**

यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर पवित्र है और पाप को सहन नहीं करता। वह विश्वासघाती को दण्ड देता है, परन्तु जो पश्चाताप करते हैं, उन पर वह दया भी करता है। इस्राएल की गलती यह थी कि उन्होंने परमेश्वर के कार्यों को भुला दिया और उसकी आज्ञाओं को तुच्छ जाना।

आज हमारे लिए यह चेतावनी है कि हम अपने हृदय को स्थिर रखें और केवल यहोवा की उपासना करें। जो कोई उस पर भरोसा रखता है, वह उसे कभी निराश नहीं करेगा।

**इस प्रकार, न्यायियों 2 की कहानी हमें परमेश्वर के न्याय और दया दोनों का स्मरण दिलाती है।**

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