# **सुलैमान का प्रार्थना और यहोवा के साथ वाचा (2 इतिहास 6)**
## **भव्य मंदिर का समर्पण**
राजा सुलैमान ने यरूशलेम में यहोवा के लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण पूरा कर लिया था। सोने, चाँदी और बहुमूल्य पत्थरों से सजा हुआ वह मंदिर इतना महान था कि उसकी महिमा दूर-दूर तक फैल गई। इस्राएल के सभी गोत्रों के प्रमुख, याजक और लेवीय यरूशलेम में एकत्र हुए थे ताकि वे इस पवित्र स्थान को परमेश्वर के सम्मुख समर्पित कर सकें।
सुलैमान ने सभा के सामने खड़े होकर यहोवा की स्तुति की। उसने अपने हाथ फैलाए और स्वर्ग की ओर देखते हुए प्रार्थना की:
**”हे यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर! आकाश और पृथ्वी में तेरे समान कोई दूसरा परमेश्वर नहीं है। तू अपने दासों के साथ वाचा बनाता है, जो तेरे सामने पूरे मन से चलते हैं। तूने मेरे पिता दाऊद से जो वचन दिया था, आज तूने उसे पूरा किया है।”**
## **परमेश्वर की प्रतिज्ञा की पूर्ति**
सुलैमान ने याद दिलाया कि कैसे यहोवा ने दाऊद से वादा किया था कि उसका पुत्र ही यरूशलेम में मंदिर बनाएगा। और अब, वह दिन आ गया था जब परमेश्वर की महिमा इस स्थान में विराजमान होगी। सुलैमान ने कहा:
**”परन्तु हे यहोवा, क्या वास्तव में परमेश्वर मनुष्यों के बनाए हुए घर में रह सकता है? स्वर्ग भी तेरी महिमा को समा नहीं सकता, फिर यह मंदिर कैसे तुझे धारण कर सकता है? तौभी, हे मेरे परमेश्वर, अपने दास की प्रार्थना पर ध्यान दे।”**
## **मंदिर में प्रार्थना का महत्व**
सुलैमान ने इस्राएल के लोगों के सामने यह घोषणा की कि यह मंदिर केवल एक भवन नहीं, बल्कि वह स्थान है जहाँ परमेश्वर अपने लोगों की पुकार सुनेगा। उसने विस्तार से बताया कि कैसे लोगों की विभिन्न परिस्थितियों में यहोवा उनकी सुनेंगे:
1. **जब कोई पाप करे और शापित हो जाए:** यदि कोई व्यक्ति अपने पापों के कारण दुःख पाए और इस मंदिर की ओर मुड़कर पश्चाताप करे, तो यहोवा उसकी सुनकर उसे क्षमा करेगा।
2. **जब सूखा पड़े:** यदि आकाश बंद हो जाए और वर्षा न हो, तो जब लोग इस स्थान पर प्रार्थना करेंगे, यहोवा उनकी सुनकर उनकी भूमि को आशीष देगा।
3. **जब दुश्मन हमला करें:** यदि शत्रु इस्राएल के विरुद्ध युद्ध छेड़ दें, तो जब वे इस मंदिर की ओर मुड़कर प्रार्थना करेंगे, यहोवा उन्हें विजय देगा।
4. **जब कोई विदेशी आकर प्रार्थना करे:** यदि कोई अन्यजाति इस मंदिर में आकर यहोवा का नाम ले, तो परमेश्वर उसकी भी सुनकर उसे उत्तर देगा, ताकि सारी पृथ्वी जान ले कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है।
## **परमेश्वर से विनती**
अंत में, सुलैमान ने यहोवा से विनती की:
**”हे मेरे परमेश्वर, अब तेरी दृष्टि इस मंदिर पर रात-दिन बनी रहे। जब भी तेरा कोई दास यहाँ प्रार्थना करे, तू उसकी सुन लेना। और यदि तेरी प्रजा पाप करे और तेरा कोप उन पर भड़के, परन्तु वे पश्चाताप करके तेरे नाम का पुकार करें, तो स्वर्ग में से सुनकर उनके पापों को क्षमा कर देना।”**
सुलैमान की प्रार्थना समाप्त होते ही, आकाश से आग उतरी और यहोवा की महिमा ने मंदिर को भर दिया। सभी लोगों ने यह देखकर मुंह के बल गिरकर यहोवा की आराधना की, क्योंकि उन्होंने जान लिया कि परमेश्वर ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली थी।
## **निष्कर्ष**
इस प्रकार, सुलैमान ने यहोवा के सामने इस्राएल के लोगों के लिए एक मध्यस्थ के रूप में प्रार्थना की। उसने सिखाया कि मंदिर केवल एक भवन नहीं, बल्कि परमेश्वर के साथ संवाद का एक पवित्र स्थान है। यहोवा ने अपनी उपस्थिति से उत्तर दिया, यह दिखाते हुए कि वह सच्चाई से पश्चाताप करने वालों की प्रार्थना सुनता है और उन पर दया करता है।
**”हे यहोवा, तू ही हमारा परमेश्वर है, और तेरे सिवा कोई नहीं।”**