**भजन संहिता 55 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “विश्वासघात और परमेश्वर में शरण”**
यरूशलेम नगर में एक समय की बात है, जब राजा दाऊद गहरे संकट में थे। उनके अपने ही एक करीबी मित्र ने उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचा था। दाऊद का हृदय विषाद से भर गया था, और वे परमेश्वर की शरण में जाने के अलावा और कुछ नहीं सोच पा रहे थे।
उस समय यरूशलेम में अशांति फैली हुई थी। शहर के गलियारों में अफवाहें उड़ रही थीं, और दाऊद के विरोधी उनके पीछे पड़े हुए थे। एक दिन, जब वे अपने महल की छत पर टहल रहे थे, तो उनकी आँखों के सामने पूरा नगर विपत्ति से घिरा हुआ प्रतीत हो रहा था। उन्होंने देखा कि जिस व्यक्ति पर उन्होंने सबसे अधिक विश्वास किया था, वही अब उनका शत्रु बन चुका था।
दाऊद का मन व्याकुल हो उठा। उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना की, **”हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुन! मेरी दुःखभरी पुकार से मुंह न मोड़। मेरी व्यथा सुनकर मेरी सहायता कर, क्योंकि मैं बेचैन हूँ और विलाप करता हूँ।”**
उनके मन में पीड़ा थी कि उनका अपना ही मित्र, जिसके साथ वे शांति से रहते थे, जिसके साथ उन्होंने परमेश्वर के भवन में साथ-साथ उपासना की थी, आज उनके खिलाफ खड़ा हो गया था। वह व्यक्ति जिसके साथ उन्होंने भोजन किया था, अब उनके पैरों के नीचे जाल बिछा रहा था।
दाऊद ने अपनी पीड़ा को शब्दों में ढाला: **”यदि मेरा शत्रु मुझे ताने देता, तो मैं सह लेता। यदि मेरा विरोधी मुझ पर अभिमान करता, तो मैं छिप जाता। परन्तु तू ही तो है, हे मेरे समान मनुष्य, मेरा परिचित, मेरा अभिन्न मित्र!”**
उनका हृदय टूट गया था। वे चाहते थे कि परमेश्वर उन्हें इस संकट से बचाए। उन्होंने कहा, **”हे परमेश्वर, भोर होते ही मैं तुझे पुकारूंगा, और तू मेरी सुनवाई करेगा। मैं तेरे पास अपना सारा बोझ डालता हूँ, क्योंकि तू ही मेरा सहारा है।”**
दाऊद जानते थे कि परमेश्वर न्यायी है। वे विश्वास करते थे कि उनके शत्रु अपने कर्मों का फल पाएँगे। उन्होंने भजन में लिखा, **”वे अपने ही मुँह के अधर्म में फंसेंगे, क्योंकि उनके शब्द उनके अपने ही विरुद्ध गवाही देंगे। परन्तु मैं तुझ पर भरोसा रखूंगा, हे परमेश्वर, क्योंकि तू ही सच्चा और स्थिर है।”**
अंत में, दाऊद ने अपना सारा भार परमेश्वर पर डाल दिया। उन्होंने कहा, **”हे यहोवा, तू मेरा न्याय करेगा। तू मुझे बचाएगा और मेरे शत्रुओं को उनके अधर्म के अनुसार दण्ड देगा। मैं तेरे प्रेम में सुरक्षित हूँ, क्योंकि तू सदैव विश्वासयोग्य है।”**
इस प्रकार, दाऊद ने अपनी पीड़ा और विश्वासघात की पीड़ा को परमेश्वर के सामने रखा। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि जब मनुष्य हमें धोखा दे, तब भी परमेश्वर हमारा सहारा बना रहता है। वह हमारी पुकार सुनता है और हमें संकट से उबारता है।
**”परमेश्वर पर भरोसा रखो, क्योंकि वही सच्चा आश्रय है।”**