पवित्र बाइबल

यिर्मयाह 12: दुष्टों की समृद्धि और परमेश्वर का न्याय

# **यिर्मयाह 12: एक विस्तृत कहानी**

## **भूमिका**

यिर्मयाह नबी के समय में यहूदा का देश अधर्म और पाप में डूबा हुआ था। लोगों ने परमेश्वर की आज्ञाओं को ताक पर रख दिया था और मूर्तियों की पूजा करने लगे थे। यिर्मयाह को परमेश्वर ने चुना था कि वह उन्हें चेतावनी दे और सच्चे मार्ग पर लौटने का आह्वान करे। परन्तु लोगों ने उसकी बातों को नहीं सुना, बल्कि उसका विरोध और उपहास किया। इसी पीड़ा और संघर्ष के बीच यिर्मयाह ने परमेश्वर से एक गहरा प्रश्न पूछा, जो यिर्मयाह 12 में लिखा गया है।

## **यिर्मयाह का प्रश्न**

एक दिन, यिर्मयाह मंदिर के आँगन में खड़ा था। उसका हृदय भारी था क्योंकि उसने देखा कि दुष्ट लोग समृद्ध हैं और उनके कुकर्मों का कोई दंड नहीं मिलता। वह परमेश्वर के सामने गिड़गिड़ाया:

**”हे यहोवा, जब मैं तुझ से विवाद करूँ तो तू धर्मी ठहरेगा; तौभी मैं तुझ से एक बात पूछूँगा: दुष्टों का क्या होता है? वे क्यों सुखपूर्वक रहते हैं? जो विश्वासघाती हैं, वे फलते-फूलते क्यों हैं?”**

यिर्मयाह ने देखा था कि जो लोग परमेश्वर की अवहेलना करते हैं, वे धनवान और सफल हैं। वे अन्याय करते हैं, गरीबों का शोषण करते हैं, और फिर भी उन्हें कोई दंड नहीं मिलता। इसके विपरीत, यिर्मयाह जैसे धर्मी लोग कष्ट सह रहे थे। उसका मन व्याकुल था।

## **परमेश्वर का उत्तर**

परमेश्वर ने यिर्मयाह की पुकार सुनी और उसे उत्तर दिया:

**”यदि तू पैदल चलने वालों के संग दौड़ते हुए थक गया, तो फिर घोड़ों के साथ कैसे दौड़ेगा? यदि शांति के देश में तू चकित होता है, तो यरदन के जंगल में क्या करेगा?”**

परमेश्वर ने यिर्मयाह को समझाया कि जो कष्ट वह अभी सह रहा है, वह तो केवल शुरुआत है। यदि वह छोटी सी परीक्षा में ही हार मान लेगा, तो आने वाले बड़े संकटों का सामना कैसे करेगा? परमेश्वर ने उसे तैयार रहने के लिए कहा, क्योंकि और भी कठिन समय आने वाला था।

फिर परमेश्वर ने यिर्मयाह को दुष्टों के विषय में बताया:

**”तेने भाइयों और तेने घराने ने भी तुझ से विश्वासघात किया है, वे भी तेरे पीछे पुकारते हैं। उन पर भरोसा मत करना, चाहे वे तुझ से मधुर बातें ही क्यों न करें।”**

यहूदा के लोग, यहाँ तक कि यिर्मयाह के अपने परिवार वाले भी, उसके विरुद्ध हो गए थे। परमेश्वर ने उसे चेतावनी दी कि उनकी मीठी बातों में फंसना नहीं चाहिए, क्योंकि वे धोखेबाज थे।

## **दुष्टों का न्याय**

परमेश्वर ने यिर्मयाह को आश्वासन दिया कि दुष्टों को उनके कर्मों का फल अवश्य मिलेगा:

**”मैंने अपनी दाखलता को त्याग दिया है, अपनी मीरास को छोड़ दिया है। मेरी प्रिय भूमि उनके हाथ में दे दी गई है। वे उस पर आकर शेर की तरह गरजते हैं, उसे उजाड़ डालते हैं।”**

परमेश्वर ने यहूदा को दंड देने का निर्णय लिया था। वह उन्हें बाबुल के हाथों सज़ा देगा। दुष्ट लोग अभी समृद्ध दिख रहे थे, लेकिन उनका अंत निकट था। उनकी धन-दौलत और शक्ति नष्ट हो जाएगी।

## **यिर्मयाह की प्रतिक्रिया**

यिर्मयाह ने परमेश्वर के वचनों को सुना और समझा कि न्याय का समय आएगा। हालाँकि उसका हृदय दुखी था, फिर भी उसने विश्वास बनाए रखा। उसने जान लिया कि परमेश्वर का मार्ग सही है, भले ही अभी सब कुछ उल्टा दिखाई दे।

## **निष्कर्ष**

यिर्मयाह 12 की यह कहानी हमें सिखाती है कि:

1. **धैर्य रखना:** कभी-कभी दुष्ट सफल दिखते हैं, लेकिन परमेश्वर का न्याय निश्चित है।
2. **विश्वास बनाए रखना:** जब हम कठिन परिस्थितियों में होते हैं, तो परमेश्वर हमें और अधिक सामर्थ्य देता है।
3. **सच्चाई पर डटे रहना:** यिर्मयाह की तरह, हमें भी सत्य का साथ देना चाहिए, चाहे विरोध कितना भी क्यों न हो।

परमेश्वर हमेशा धर्मी का साथ देता है। जो लोग उस पर भरोसा रखते हैं, वे अंत में विजयी होंगे।

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *