पवित्र बाइबल

Here’s a concise and engaging Hindi title for your Bible story within 100 characters: **राजा सुलैमान की बुद्धिमानी: ज्ञान और परमेश्वर का भय** (Count: 59 characters, including spaces) This title captures the essence of the story—Solomon’s wisdom, divine reverence, and the moral lesson—while staying within the limit. Let me know if you’d like any adjustments!

**बुद्धिमानी की पुकार**

एक समय की बात है, जब सुलैमान राजा, जिसे परमेश्वर ने असीम बुद्धि प्रदान की थी, अपने महल के बाहर विशाल चबूतरे पर खड़ा होकर लोगों को शिक्षा दे रहा था। उस दिन सूर्य की स्वर्णिम किरणें पहाड़ियों पर बिखरी हुई थीं, और यरूशलेम के बाज़ारों में लोगों की चहल-पहल शुरू हो चुकी थी। सुलैमान ने अपने हाथ में एक सुनहरी कलम पकड़ी हुई थी, और उसकी आँखों में गहरी समझदारी झलक रही थी। उसने गहरी साँस ली और अपने शब्दों को सावधानी से चुना:

**”हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा को मान, और अपनी माता की शिक्षा को न छोड़ना।”**

उसकी आवाज़ में मिठास और दृढ़ता थी, जैसे कोई पिता अपने बच्चे को जीवन का मार्ग दिखा रहा हो। उसने कहा, **”क्योंकि यह तेरे सिर पर सुंदर मुकुट के समान होगा, और तेरे गले में हार के समान।”**

चारों ओर खड़े लोग चुपचाप सुन रहे थे। कुछ युवकों ने अपने कान खुले रखे, जबकि कुछ बुजुर्गों ने सिर हिलाकर उसकी बातों की पुष्टि की। सुलैमान ने आगे कहा, **”हे मेरे पुत्र, यदि पापी तुझे फुसलाएँ, तो तू उनकी बात न मानना।”**

उसने एक गहरी नज़र से भीड़ को देखा, मानो वह उनकी आत्माओं तक पहुँच रहा हो। **”यदि वे कहें, ‘हमारे साथ चल, हम तेरे खून के प्यासे हैं, हम निर्दोषों को बिना कारण घात में छिपकर मारेंगे!'”**

भीड़ में से एक युवक ने डर से अपनी आँखें झुका लीं, जैसे वह उन पापियों की क्रूरता को अपनी आँखों के सामने देख रहा हो। सुलैमान ने अपनी आवाज़ को और गंभीर करते हुए कहा, **”हे मेरे पुत्र, उनके मार्ग पर न चलना, उनके पथ से अपने पैर को रोक लेना। क्योंकि वे अपने ही खून के पीछे दौड़ते हैं, और अपने ही प्राणों के लिए घातक जाल बिछाते हैं।”**

भीड़ में सन्नाटा छा गया। सुलैमान ने अपनी बात जारी रखी, **”जो कोई लोभ से धन एकत्र करता है, वह अंत में अपने ही प्राणों का शत्रु बन जाता है।”**

तभी दूर से एक बुद्धिमान वृद्ध ने अपनी लाठी को ज़मीन पर टिकाते हुए कहा, **”राजा, आपकी बातें हमारे हृदय को छू रही हैं। पर हमें और समझाइए।”**

सुलैमान ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, **”बुद्धिमानी सड़कों पर, गलियों में, और नगर के द्वारों पर पुकारती है। वह कहती है, ‘हे मूर्खो, तुम कब तक मूर्खता से प्रेम करोगे? और ठट्ठा करनेवाले ठट्ठों में आनन्द, और मूढ़ ज्ञान से बैर कब तक रखेंगे?'”**

उसकी आवाज़ में करुणा थी, जैसे वह हर एक व्यक्ति को चेतावनी दे रहा हो। **”मेरी डाँट को सुनो! देखो, मैं तुम्हें अपनी आत्मा की बातें बताऊँगी, और तुम्हें अपने शब्दों से ज्ञान दूँगी।”**

भीड़ में से एक युवती ने धीरे से पूछा, **”पर हे राजा, यदि हम बुद्धिमानी की पुकार को नहीं सुनेंगे, तो क्या होगा?”**

सुलैमान ने गंभीर होकर उत्तर दिया, **”तब जब विपत्ति तुम पर आ पड़ेगी, और विनाश तुम्हें आ घेरेगा, तब तुम मुझे पुकारोगे, पर मैं उत्तर न दूँगी। तुम मुझे खोजोगे, परन्तु मुझे न पाओगे।”**

लोगों के चेहरे पर भय की छाया दौड़ गई। सुलैमान ने आगे कहा, **”क्योंकि तुमने ज्ञान को तुच्छ जाना, और परमेश्वर के भय को नहीं अपनाया। इसलिए तुम अपनी ही करनी का फल खाओगे, और अपनी युक्तियों से तृप्त होंगे।”**

एक किसान, जो पीछे खड़ा था, ने अपने हाथ जोड़कर पूछा, **”तो फिर हमें क्या करना चाहिए, हे राजा?”**

सुलैमान ने उसकी ओर देखकर कहा, **”जो कोई मेरी बात सुनता है, वह निर्भय रहेगा। वह विपत्ति के भय से मुक्त होकर चैन से निवास करेगा।”**

उसकी बातें सुनकर लोगों के हृदय में शांति छा गई। उन्होंने समझ लिया कि बुद्धिमानी का मार्ग ही सुरक्षित है, और परमेश्वर का भय मानने से ही सच्चा ज्ञान मिलता है।

और इस प्रकार, सुलैमान की शिक्षाएँ लोगों के दिलों में उतर गईं, जैसे वसंत की कोमल वर्षा धरती को सींचती है। उस दिन के बाद से, अनेक लोगों ने मूर्खता का मार्ग छोड़कर बुद्धिमानी को अपनाया, और परमेश्वर की आशीषों से भरपूर जीवन जीने लगे।

**”क्योंकि परमेश्वर का भय ही ज्ञान का आरंभ है, और पवित्र ज्ञान को मूर्ख तुच्छ जानते हैं।”** (नीतिवचन 1:7)

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