**कुरिन्थियों के नाम पौलुस का पत्र: 1 कुरिन्थियों 15 पर आधारित कहानी**
**प्रस्तावना**
एक दिन, कुरिन्थ की कलीसिया के विश्वासियों के बीच गहरी चर्चा छिड़ गई। कुछ लोग मृत्यु के बाद पुनरुत्थान के विषय में संदेह करने लगे थे। उनका मानना था कि मृत्यु के बाद कोई जीवन नहीं है, और मसीह का पुनरुत्थान भी केवल एक प्रतीकात्मक घटना थी। यह बात पौलुस तक पहुँची, जो एफिसुस में थे। उन्होंने तुरंत एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि मसीह का पुनरुत्थान सच्चा है, और यही विश्वास का आधार है।
**पौलुस का उपदेश**
पौलुस ने लिखा, “हे भाइयों और बहनों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार सुनाता हूँ जो तुम्हें पहले दिया गया था, जिसे तुमने स्वीकार किया और जिस पर तुम्हारा विश्वास टिका है। यही सुसमाचार तुम्हें बचाता है, यदि तुम उसे दृढ़ता से थामे रहो। अन्यथा, तुम्हारा विश्वास व्यर्थ होगा।”
उन्होंने विस्तार से बताया कि मसीह पवित्र शास्त्र के अनुसार हमारे पापों के लिए मरे, गाड़े गए, और तीसरे दिन जी उठे। उन्होंने कैफा, बारह चेलों और फिर पाँच सौ से अधिक विश्वासियों को दर्शन दिए। “अधिकांश अभी जीवित हैं,” पौलुस ने लिखा, “कुछ सो गए हैं, परन्तु उन्होंने भी मसीह को देखा।”
**यदि पुनरुत्थान नहीं होता…**
पौलुस ने कड़े शब्दों में कहा, “यदि मसीह जी नहीं उठे, तो हमारा प्रचार व्यर्थ है और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्थ है। हम तो झूठे साक्षी ठहरेंगे, क्योंकि हमने परमेश्वर के विरुद्ध गवाही दी होगी कि उसने मसीह को जिलाया, जबकि वह नहीं जिलाया गया।”
उन्होंने समझाया कि यदि मसीह नहीं जी उठे, तो हमारे पाप अभी भी हम पर हैं। जो मसीह में सो गए हैं, वे सदा के लिए नष्ट हो गए। “यदि हमारी आशा केवल इसी जीवन तक है,” पौलुस ने लिखा, “तो हम सभी मनुष्यों में सबसे अधिक दयनीय हैं।”
**मसीह का पुनरुत्थान: निश्चित विजय**
परन्तु पौलुस ने घोषणा की, “मसीह सचमुच मरे हुओं में से जी उठे हैं, और वह सोए हुओं की पहली फसल हैं।” जैसे आदम के द्वारा पाप और मृत्यु आई, वैसे ही मसीह के द्वारा पुनरुत्थान और जीवन आया। अंत में, मसीह सभी शत्रुओं को अपने पैरों तले कर देंगे, और अंतिम शत्रु—मृत्यु—का भी अंत होगा।
“हे मृत्यु, तेरा डंक कहाँ है? हे अधोलोक, तेरी विजय कहाँ है?” पौलुस ने विजयी स्वर में लिखा। मृत्यु अब विश्वासियों पर अधिकार नहीं रखती, क्योंकि मसीह ने उसे परास्त कर दिया है।
**अंतिम जय और आशा**
पौलुस ने कुरिन्थियों को याद दिलाया कि वे स्थिर और दृढ़ बने रहें, क्योंकि उनका परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है। जब अंतिम तुरही बजेगी, तो सभी विश्वासी पलक झपकते ही बदल जाएँगे। मृत्यु अमरता में बदल जाएगी, और वे सदा के लिए प्रभु के साथ राज्य करेंगे।
“इसलिए, हे मेरे प्रिय भाइयों,” पौलुस ने समाप्त किया, “दृढ़ बने रहो, अटल रहो, और प्रभु के कार्य में सदा बढ़ते रहो, क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।”
**समापन**
कुरिन्थ की कलीसिया ने पौलुस के शब्दों को गंभीरता से लिया। उनका विश्वास फिर से दृढ़ हुआ, और वे पुनरुत्थान की आशा में आनन्दित होने लगे। उन्होंने समझ लिया कि मसीह का जी उठना केवल एक घटना नहीं, बल्कि उनकी विजय और अनन्त जीवन की गारंटी है।
और इस प्रकार, पौलुस के शब्दों ने न केवल कुरिन्थ की कलीसिया को, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रोत्साहित किया कि वे मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान में दृढ़ विश्वास रखें, क्योंकि यही सुसमाचार का मूल है।