पवित्र बाइबल

याकूब का पनुएल में दिव्य संघर्ष और आशीष

**याकूब का पनुएल में संघर्ष और आशीष**

उस रात याकूब अकेला था। वह अपने परिवार, सेवकों, और सारी सम्पत्ति को आगे भेज चुका था, ताकि वह शांति से प्रार्थना कर सके। उसका मन भारी था, क्योंकि वह अपने भाई एसाव से मिलने जा रहा था—वही एसाव जिससे उसने बहुत पहले अपने जन्मrights और आशीष छीन ली थी। अब वह चार सौ सशस्त्र पुरुषों के साथ आ रहा था, और याकूब डर गया था। क्या एसाव उससे बदला लेगा? क्या उसके परिवार को नुकसान पहुँचेगा?

याकूब ने यबोक नदी के किनारे डेरा डाला। रात का अंधकार घिर आया था, और हवा में एक अजीब सी शांति थी। वह जानता था कि परमेश्वर ने उससे वादा किया था कि वह उसकी रक्षा करेगा और उसे आशीष देगा, लेकिन उसका डर अभी भी मन में कुलबुला रहा था। तभी अचानक, एक अज्ञात पुरुष उसके सामने प्रकट हुआ। वह कोई साधारण मनुष्य नहीं था—उसकी आँखों में एक दिव्य तेज था, और उसके हाव-भाव में एक अलौकिक शक्ति झलक रही थी।

याकूब ने उस व्यक्ति को पहचान लिया—यह कोई स्वर्गदूत था, शायद स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधि! वह उससे लड़ने लगा। रात भर वे दोनों जमकर संघर्ष करते रहे। याकूब ने अपनी पूरी ताकत लगा दी, लेकिन वह अजनबी उससे कहीं अधिक शक्तिशाली था। जैसे ही भोर होने लगी, उस दिव्य पुरुष ने याकूब के कूल्हे की हड्डी को छूकर उसे जकड़ दिया, और याकूब की चाल लंगड़ी हो गई। लेकिन याकूब हार मानने वाला नहीं था। उसने उस पुरुष को जोर से पकड़ लिया और कहा, “जब तक तू मुझे आशीष नहीं देगा, मैं तुझे जाने नहीं दूँगा!”

उस पुरुष ने पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
याकूब ने उत्तर दिया, “मेरा नाम याकूब है।” (याकूब का अर्थ है “धोखेबाज” या “पकड़ने वाला।”)
तब उस दिव्य पुरुष ने कहा, “अब से तुम्हारा नाम याकूब नहीं, बल्कि इस्राएल होगा, क्योंकि तुमने परमेश्वर और मनुष्यों के साथ संघर्ष किया और विजयी हुए।”

याकूब ने पूछा, “कृपया मुझे अपना नाम बताइए।”
लेकिन उसने उत्तर दिया, “तुम मेरा नाम क्यों पूछते हो?” और फिर भी उसने उसे आशीष दी।

याकूब ने उस स्थान का नाम “पनुएल” (अर्थात “परमेश्वर का मुख”) रखा, क्योंकि उसने कहा, “मैंने परमेश्वर को आमने-सामने देखा है, और फिर भी मेरा प्राण बच गया।” जैसे ही सूरज निकला, वह उस स्थान से लंगड़ाता हुआ चला गया। उसकी जाँघ की नस सिकुड़ गई थी, और इस्राएल के लोग आज तक इस कारण जाँघ की नस नहीं खाते।

यह घटना याकूब के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। अब वह वही पुराना याकूब नहीं रहा जो धोखे से आशीष पाना चाहता था। उसकी लड़ाई ने उसे बदल दिया था। अब वह इस्राएल था—एक ऐसा व्यक्ति जिसने परमेश्वर के साथ संघर्ष किया और उसकी कृपा पाई। उसका डर अब विश्वास में बदल चुका था, और वह जानता था कि परमेश्वर उसके साथ है।

जब उसने आगे बढ़कर एसाव से मुलाकात की, तो उसने देखा कि परमेश्वर ने उसके भाई के हृदय को बदल दिया था। एसाव ने उसे गले लगाया, और दोनों भाइयों के बीच मेल-मिलाप हो गया। याकूब ने महसूस किया कि परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली थी। पनुएल की उस रात ने उसे सिखाया कि सच्ची आशीष संघर्ष और समर्पण के बाद ही मिलती है, और परमेश्वर की कृपा ही उसे पूर्ण बनाती है।

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