**विलापगीत 3: एक आशा की किरण**
यरूशलेम नगर ध्वस्त हो चुका था। बाबुल की सेना ने उसे जलाकर राख कर दिया था। मंदिर, जो परमेश्वर की महिमा का प्रतीक था, अब मलबे का ढेर बन चुका था। लोगों को बंदी बना लिया गया था, और जो बचे थे, वे भूख और पीड़ा से कराह रहे थे। ऐसे ही एक दिन, एक व्यक्ति, जिसका नाम एलीआजर था, शहर के खंडहरों के बीच बैठा हुआ था। उसका मन टूट चुका था, और उसकी आँखों से आँसू नहीं, बल्कि विलाप बह रहा था।
एलीआजर ने अपने हाथों को आकाश की ओर उठाया और चिल्लाया, *”हे यहोवा! तूने मुझे अंधकार में डाल दिया है। तेरे कोप के तीर मेरे हृदय को बींध रहे हैं। मैं शांति और सुख को ढूँढ़ता हूँ, परन्तु केवल क्लेश ही मेरा साथी बन गया है!”* उसकी पीड़ा विलापगीत 3 के शब्दों की तरह थी—*”मैं उस पुरुष का दुःख देखता हूँ जो परमेश्वर के राजदंड के द्वारा दण्डित हुआ है।”*
वह उन दिनों को याद करता था जब यरूशलेम समृद्ध था, जब लोग मंदिर में आनन्द से गीत गाते थे। किन्तु अब सब कुछ समाप्त हो चुका था। उसका मन प्रश्नों से भर गया—*”क्या परमेश्वर ने हमें सदा के लिए त्याग दिया है? क्या उसकी करुणा सदा के लिए समाप्त हो गई है?”*
तभी, उसकी दृष्टि एक छोटे से पौधे पर पड़ी, जो उन खंडहरों के बीच उग आया था। वह पौधा कंक्रीट की दरारों से निकलकर सूर्य के प्रकाश की ओर बढ़ रहा था। उसने देखा कि उसकी पत्तियाँ हरी थीं, जैसे जीवन का संकेत दे रही हों। एलीआजर का हृदय विचलित हुआ। उसे विलापगीत 3:22-23 की वचन याद आई—*”यहोवा की करुणा कभी समाप्त नहीं होती, उसकी दया कभी खत्म नहीं होती। वह प्रतिदिन नई होती है। उसकी विश्वासयोग्यता महान है!”*
एक पल में, उसकी आत्मा में आशा का दीपक जल उठा। उसने महसूस किया कि परमेश्वर का प्रेम उसके लिए अभी भी वहीं था, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों। वह समझ गया कि परमेश्वर का कोप अल्पकालिक है, परन्तु उसकी करुणा अनन्तकाल तक बनी रहती है।
धीरे-धीरे, एलीआजर ने अपने विलाप को प्रार्थना में बदल दिया। उसने कहा, *”हे प्रभु, तू धर्मी है, और मैं तेरे न्याय को स्वीकार करता हूँ। परन्तु मैं तेरी करुणा पर भरोसा रखता हूँ। मुझे सिखा कि मैं धैर्य से तेरी प्रतीक्षा करूँ, क्योंकि तू अवश्य ही मेरा उद्धार करेगा!”*
कुछ समय बाद, एलीआजर ने अपने साथी बंधुओं को इकट्ठा किया और उन्हें विलापगीत 3 की आशा के वचन सुनाए। उसने कहा, *”भाइयो, हमारा वर्तमान कष्ट स्थायी नहीं है। परमेश्वर हमारे साथ है, और वह हमें फिर से उठाएगा। हमें अपने हृदयों को उसके सामने नम करना चाहिए और उसकी इच्छा की प्रतीक्षा करनी चाहिए।”*
और फिर, समय आने पर, परमेश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। बाबुल का अत्याचार समाप्त हुआ, और यहूदियों को अपने देश लौटने का अवसर मिला। एलीआजर ने देखा कि परमेश्वर की योजना सदैव सही होती है। उसकी ताड़ना प्रेम से भरी थी, और उसकी बहाली महिमामय थी।
इस प्रकार, विलापगीत 3 ने एलीआजर को सिखाया कि *”यहोवा अच्छा है उनके लिए जो उसकी बाट जोहते हैं, उसके लिए जो उसे खोजते हैं।”* (विलापगीत 3:25)। और इस आशा के साथ, वह नए यरूशलेम के पुनर्निर्माण में सहभागी बना, यह जानकर कि परमेश्वर की विश्वासयोग्यता सदैव बनी रहती है।