**ईश्वर की दया और न्याय: यशायाह 57 की कहानी**
प्राचीन काल में, यहूदा के लोगों ने ईश्वर के मार्ग को छोड़कर अपने हृदयों को कठोर बना लिया था। वे मूर्तियों की पूजा करने लगे, अन्याय और पाप में डूब गए। परमेश्वर ने अपने भविष्यद्वक्ता यशायाह के माध्यम से उन्हें चेतावनी दी, किंतु उन्होंने नहीं सुना। यशायाह 57 में, परमेश्वर ने अपने लोगों के पापों को उजागर किया, परंतु साथ ही उन्हें पश्चाताप और आशीष का मार्ग भी दिखाया।
### **पाप की गहराई**
यरूशलेम की गलियों में पाप फैल चुका था। लोग चुपके से घाटियों और गुफाओं में जाते, वहाँ झाड़ियों के नीचे मूर्तियों की पूजा करते। वे मृतकों की आत्माओं को पुकारते, टोना-टोटका करते, और झूठे देवताओं के सामने घुटने टेकते। उनके हृदय में परमेश्वर का भय नहीं रहा, केवल लालसा और अहंकार भर गया था।
भविष्यद्वक्ता यशायाह ने देखा कि कैसे धर्म के ठेकेदार भी पाखंडी बन चुके थे। वे बाहर से धर्मी दिखते, पर अंदर से लालच और कपट से भरे हुए थे। उन्होंने विधवाओं और अनाथों का शोषण किया, गरीबों को दबाया, और न्याय को मोल ले लिया। परमेश्वर ने कहा, *”तुम लोगों ने मेरी व्यवस्था को ताक पर रख दिया है। तुम मूक मूर्तियों के पीछे भागते हो, जो न तो सुन सकती हैं और न ही बचा सकती हैं!”*
### **ईश्वर का क्रोध और चेतावनी**
परमेश्वर का कोप भड़क उठा। उसने यशायाह के माध्यम से घोषणा की, *”जिस पाप में तुम डूबे हो, उसी में तुम्हारा अंत होगा! तुमने जिन मूर्तियों को चुना है, वे तुम्हें क्या दे सकती हैं? जब संकट आएगा, तो वे तुम्हारी रक्षा नहीं करेंगी!”*
परमेश्वर ने उनके झूठे विश्वास को उजागर किया। वे पेड़ों के नीचे बलिदान चढ़ाते, पहाड़ों पर जाकर अनैतिक कर्म करते, और सोचते कि उनका धन और बल उन्हें बचा लेगा। किंतु परमेश्वर ने कहा, *”तुम्हारे पापों ने तुम्हें मुझसे दूर कर दिया है। तुम्हारी चालाकी और धूर्तता तुम्हारे विरुद्ध गवाही देगी!”*
### **दया का निमंत्रण**
किंतु परमेश्वर केवल क्रोध ही नहीं, बल्कि दया से भरा हुआ है। उसने पश्चाताप का मार्ग खोला और कहा, *”मैं उसके साथ हूँ जो टूटे हृदय से मेरे पास आता है। मैं नम्र लोगों को उठाऊँगा और उनके हृदयों को शांति दूँगा।”*
उसने वादा किया, *”यदि तुम मुझ पर भरोसा रखोगे और अपने पापों से फिरोगे, तो मैं तुम्हें चंगा करूँगा, तुम्हारी आत्मा को शांति दूँगा। मैं तुम्हें नया जीवन दूँगा और तुम्हारे घावों पर मरहम लगाऊँगा।”*
### **न्याय और आशा का संतुलन**
यशायाह 57 में परमेश्वर का संदेश स्पष्ट था—पाप का परिणाम न्याय है, किंतु पश्चाताप का परिणाम अनुग्रह। वह दुष्टों को दंड देगा, किंतु दीन-हीनों को सम्हालेगा। अंत में, परमेश्वर ने कहा, *”शांति, शांति दूर के और निकट के को! मैं उन्हें अच्छा करूँगा। परन्तु दुष्टों को कभी शांति नहीं मिलेगी।”*
इस प्रकार, यशायाह 57 हमें सिखाता है कि परमेश्वर पवित्र है और पाप से घृणा करता है, किंतु वह उन सभी को गले लगाता है जो सच्चे मन से उसकी ओर लौटते हैं। उसकी दया अनंत है, और उसका न्याय निष्पक्ष। हमारा कर्तव्य है कि हम उसके मार्ग पर चलें और उसकी शरण में आश्रय लें।