पवित्र बाइबल

सुलैमान और शुलम्मीत का पवित्र प्रेम गीत

**श्रेष्ठगीत 1: प्रेम और आत्मीय योग**

एक सुंदर वसंत की सुबह थी। सूर्य की स्वर्णिम किरणें पहाड़ियों पर बिखर रही थीं, और हवा में फूलों की मधुर सुगंध फैली हुई थी। सुलैमान, इस्राएल का बुद्धिमान राजा, अपने उद्यान में टहल रहा था। उसका हृदय प्रेम और भक्ति से परिपूर्ण था, क्योंकि उसकी आत्मा परमेश्वर के प्रति समर्पित थी। तभी उसने एक कोमल आवाज़ सुनी—एक युवती, जो उसकी प्रेयसी थी, उससे मिलने आई थी।

वह युवती, जिसका नाम शुलम्मीत था, अपने प्रेमी सुलैमान के लिए व्याकुल थी। उसके गाल लज्जा और प्रेम से लाल हो रहे थे, और उसकी आँखों में अनंत स्नेह झलक रहा था। वह धीरे से बोली,

*”तुम्हारा प्रेम मुझे मदिरा से भी अधिक मधुर लगता है! तुम्हारे तेल की सुगंध सबसे उत्तम है; तुम्हारा नाम ही इतना प्यारा है कि युवतियाँ तुम्हें प्यार करती हैं।”*

शुलम्मीत ने अपने हृदय की गहराई से ये शब्द कहे। वह जानती थी कि सुलैमान का प्रेम केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक भी था—यह परमेश्वर और उसकी प्रजा के बीच के प्रेम का प्रतीक था।

सुलैमान ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा और कहा, *”तुम सुंदर हो, मेरी प्रिये! हाँ, तुम सुंदर हो! तुम्हारी आँखें कबूतरों जैसी कोमल हैं।”*

शुलम्मीत ने अपने आप को सांवला देखकर कहा, *”मैं काली हूँ, परन्तु सुंदर हूँ, हे यरूशलेम की बेटियो! मैं केदार के तंबुओं के समान काली हूँ, पर सुलैमान के पर्दों जैसी सुंदर। मुझे मत देखो कि मैं सांवली हूँ, सूर्य ने मुझे झुलसा दिया है।”*

उसने अपनी सादगी और विनम्रता दिखाई, पर सुलैमान ने उसके हृदय की शुद्धता को पहचाना। वह जानता था कि सच्चा प्रेम बाहरी रूप से नहीं, बल्कि हृदय की गहराई से आता है।

शुलम्मीत ने पूछा, *”हे प्रिय, बताओ तुम अपनी भेड़ों को कहाँ चराते हो? दोपहर के समय तुम उन्हें कहाँ आराम देते हो? मैं तुम्हारे पास आना चाहती हूँ, पर अन्य चरवाहों के सामने लज्जित न होऊँ।”*

सुलैमान ने उत्तर दिया, *”हे मेरी सुंदर प्रिये, यदि तुम नहीं जानतीं, तो भेड़ों के रास्ते पर चलो और मेरी बकरियों के बच्चों को चरा।”*

उसने उसे अपने साथ चलने के लिए आमंत्रित किया, जैसे परमेश्वर अपने लोगों को अपनी शरण में बुलाता है। शुलम्मीत ने महसूस किया कि सुलैमान का प्रेम उसके लिए सुरक्षा और शांति का स्रोत था।

फिर सुलैमान ने उसकी सुंदरता की तुलना फिरौन के रथों से की, जो सोने और मोतियों से सजे होते हैं। *”तुम्हारे गाल आभूषणों से सुशोभित हैं, तुम्हारी गर्दन मोतियों के हार से सुंदर है। हम तुम्हारे लिए सोने के आभूषण चांदी के मनकों से बनाएँगे।”*

शुलम्मीत ने प्रसन्न होकर कहा, *”जब तक राजा अपने आसन पर विराजमान था, मेरी इत्र की सुगंध ने उसे मोह लिया। मेरा प्रिय मेरे लिए मेरे हृदय के बीच एक सुगंधित पोटली है, जो सदा मेरे पास रहती है।”*

इस प्रकार, उनका प्रेमगीत परमेश्वर और उसकी प्रजा के बीच के पवित्र प्रेम को दर्शाता था। शुलम्मीत का हृदय सुलैमान के प्रति समर्पित था, जैसे मनुष्य का हृदय परमेश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए।

यह गीत हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम शुद्ध, विनम्र और समर्पित होता है। जैसे सुलैमान और शुलम्मीत एक-दूसरे के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे, वैसे ही हमें भी परमेश्वर के प्रेम में बने रहना चाहिए।

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