पवित्र बाइबल

पौलुस की चेतावनी और अनुग्रह का संदेश

**1 तीमुथियुस 1 पर आधारित बाइबल कथा**

**शीर्षक: “पौलुस की चेतावनी और अनुग्रह का संदेश”**

एफिसुस की गलियों में हवा धीरे-धीरे बह रही थी। सूरज की किरणें मंदिरों और घरों की दीवारों पर पड़कर चमक रही थीं, लेकिन उस शहर में आध्यात्मिक अंधकार फैला हुआ था। वहाँ कुछ झूठे शिक्षक उठ खड़े हुए थे, जो व्यर्थ की बातों और अंतहीन वंशावलियों में उलझे हुए थे। उनकी शिक्षाएँ सत्य से दूर थीं और मसीह की सुसमाचार की शुद्धता को विकृत कर रही थीं।

ऐसे समय में, पौलुस प्रेरित ने अपने प्रिय पुत्र तीमुथियुस को एक पत्र लिखा। वह जानता था कि तीमुथियुस युवा है, परन्तु उसके पास वह आत्मिक परिपक्वता थी जो उसे इस चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए सक्षम बनाती थी। पौलुस ने अपनी लेखनी उठाई और शब्दों को कागज पर उतारना शुरू किया:

*”पौलुस की ओर से, जो हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर और हमारी आशा मसीह यीशु की आज्ञा से मसीह यीशु का प्रेरित है, तीमुथियुस के नाम, जो विश्वास में मेरा सच्चा पुत्र है: अनुग्रह, दया और शान्ति हमारे पिता परमेश्वर और मसीह यीशु हमारे प्रभु की ओर से तुझे मिले।”*

पौलुस ने अपने शब्दों में प्यार और आत्मीयता भर दी, लेकिन उसका स्वर गंभीर था। वह चाहता था कि तीमुथियुस एफिसुस में उन झूठे शिक्षकों को रोके, जो व्यर्थ की बहसों में लगे हुए थे। उसने लिखा:

*”जैसा मैंने तुझे समझाया था कि तू एफिसुस में ठहरकर कुछ लोगों को आज्ञा दे कि वे भिन्न-भिन्न शिक्षाएँ न दें, न ही उन कथनों और अंतहीन वंशावलियों पर ध्यान लगाएँ, जिनसे विवाद ही उत्पन्न होते हैं, न कि परमेश्वर की वह योजना जो विश्वास से पूरी होती है।”*

पौलुस के मन में उन लोगों के प्रति चिंता थी जो सुसमाचार को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे थे। वे लोग व्यवस्था के बारे में बड़े-बड़े दावे करते थे, परन्तु उसके सच्चे अर्थ को नहीं समझते थे। पौलुस ने स्पष्ट किया:

*”व्यवस्था का उद्देश्य धर्मी के लिए नहीं, बल्कि अधर्मियों और निरंकुशों, भक्तिहीनों और पापियों, अपवित्रों और अशुद्धों के लिए है।”*

उसने कुछ उदाहरण देते हुए लिखा कि व्यवस्था उनके लिए है जो पिता-माता की हत्या करते हैं, हत्यारे हैं, व्यभिचारी हैं, समलैंगिक पाप में लिप्त हैं, गुलामों के चोर हैं, झूठे हैं और अन्यायी हैं। यह सुनकर तीमुथियुस के मन में एक सिहरन दौड़ गई। उसे समझ आया कि व्यवस्था पाप को उजागर करने के लिए है, न कि धर्मी को दण्ड देने के लिए।

परन्तु पौलुस ने अपने शब्दों में केवल न्याय का भय नहीं, बल्कि अनुग्रह की महिमा भी भरी थी। उसने अपने स्वयं के जीवन का उदाहरण दिया:

*”मैं पहले ईश्वर निन्दक, सताने वाला और हिंसक था। परन्तु मुझ पर दया हुई, क्योंकि मैंने अविश्वास की अवस्था में यह सब किया। और हमारे प्रभु का अनुग्रह मसीह यीशु में विश्वास और प्रेम के साथ बहुतायत से हुआ।”*

पौलुस के हृदय में गर्व के लिए कोई स्थान नहीं था। वह जानता था कि उसका परिवर्तन केवल परमेश्वर के अनुग्रह से हुआ था। उसने लिखा:

*”यह बात विश्वास के योग्य है, और हर एक को इसे स्वीकार करना चाहिए, कि मसीह यीशु पापियों का उद्धार करने के लिए इस जगत में आया, जिनमें से मैं सबसे बड़ा हूँ। परन्तु इसीलिए मुझ पर दया हुई, ताकि मसीह यीशु मुझ में अपनी सारी सहनशीलता दिखाए।”*

अपने पत्र के अंत में, पौलुस ने तीमुथियुस को प्रोत्साहित किया:

*”हे मेरे पुत्र तीमुथियुस, तू उन भविष्यद्वाणियों के अनुसार जो तेरे विषय में पहले हुई थीं, अच्छी लड़ाई लड़। विश्वास और अच्छे विवेक को थामे रह। कुछ लोगों ने इसी को ठुकरा दिया है और विश्वास के विषय में नाविक की तरह डूब गए हैं।”*

पौलुस ने दो लोगों, हुमिनयुस और सिकन्दर का नाम लिया, जिन्होंने सत्य को त्याग दिया था। उसने तीमुथियुस को चेतावनी दी कि वह सतर्क रहे।

जब तीमुथियुस ने यह पत्र पढ़ा, तो उसका हृदय गर्म हो उठा। उसे पौलुस के शब्दों में परमेश्वर का प्रेम और सच्चाई दिखाई दी। उसने निश्चय किया कि वह एफिसुस में सुसमाचार की शुद्धता की रक्षा करेगा और अनुग्रह के इस संदेश को बिना किसी डर के सुनाता रहेगा।

और इस प्रकार, पौलुस का यह पत्र न केवल तीमुथियुस के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक मार्गदर्शक बन गया, जो हमें सिखाता है कि व्यवस्था का सही उद्देश्य क्या है और परमेश्वर का अनुग्रह कितना महान है।

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