**2 इतिहास 28 का विस्तृत कथा-वर्णन**
**अहाज का अधर्मी शासन और यहूदा पर परमेश्वर का क्रोध**
यहूदा के राजा अहाज का शासनकाल एक अंधकारमय अध्याय था, जिसमें उसने परमेश्वर की दृष्टि में बुरे काम किए। वह केवल सोलह वर्ष का था जब वह राजा बना, और उसने बावाली पूजा, मूर्तिपूजा और घृणित कर्मों से यरूशलेम को भर दिया। वह बाल देवताओं की पूजा करता था, हिन्नोम की घाटी में बच्चों को अग्नि में होम करता था, और ऊँचे स्थानों पर मूर्तियों को स्थापित करता था। उसका हृदय परमेश्वर से दूर हो गया था, और उसने अपने पूर्वज दाऊद के मार्ग को त्याग दिया था।
परमेश्वर का क्रोध अहाज और यहूदा के विरुद्ध भड़क उठा। उसने अहाज को शत्रुओं के हाथ में सौंप दिया। सीरिया का राजा रसीन और इस्राएल का राजा पेकह युद्ध के लिए उठ खड़े हुए और यरूशलेम को घेर लिया। यहूदा की सेना पराजित हुई, और अहाज के पुत्रों सहित अनेक लोग मारे गए। इस्राएल के सैनिकों ने यहूदा से दो लाख स्त्रियों और बच्चों को बंदी बना लिया और उन्हें शोमरोन ले गए।
**ओदेद नबी की चेतावनी और इस्राएल की प्रतिक्रिया**
जब इस्राएल के सैनिक बंदियों को लेकर शोमरोन पहुँचे, तो वहाँ एक परमेश्वर के भक्त नबी ओदेद ने उन्हें रोका। ओदेद ने उनसे कहा, *”परमेश्वर यहोवा का कोप यहूदा पर इसलिए भड़का क्योंकि उन्होंने उसकी अवहेलना की, परंतु तुम लोगों ने उनके विरुद्ध इतनी निर्दयता से काम लिया है कि तुम्हारे पाप और भी भयंकर हो गए हैं! क्या तुम नहीं जानते कि तुम भी परमेश्वर के विरुद्ध पाप कर रहे हो?”*
ओदेद की बात सुनकर इस्राएल के कुछ प्रधानों—अजर्याह, यहोहानान, और बेरेख्याह—ने विद्रोह किया और सैनिकों से कहा, *”इन बंदियों को यहाँ नहीं लाना चाहिए! यह हमारे पापों को और बढ़ाएगा। हमारा अपराध पहले ही बहुत बड़ा है, और परमेश्वर का क्रोध हम पर भीषण रूप से भड़क उठेगा!”*
तब सैनिकों ने बंदियों और लूट के सामान को प्रधानों और सभा के सामने छोड़ दिया। वहाँ उपस्थित कुछ नामी पुरुषों ने बंदियों की सहायता की। उन्होंने लूट में मिले वस्त्रों से नंगे बंदियों को ढका, उन्हें जूते पहनाए, भोजन और पानी दिया, और घायलों का उपचार किया। फिर उनमें से जो कमज़ोर थे, उन्हें गधों पर बैठाकर यहूदा के नगर यरीहो की ओर भेज दिया। इस प्रकार, इस्राएल ने परमेश्वर के भय से यहूदा के लोगों पर दया की।
**अहाज का और भी अधिक पाप में डूबना**
किंतु अहाज ने इन घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया। उसने परमेश्वर की ओर मुड़ने के बजाय असीरिया के राजा तिगलतपिलनेसेर से सहायता माँगी। उसने यहोवा के मन्दिर और राजभवन के खजाने से सोना-चाँदी लेकर असीरिया के राजा को भेंट किया, परंतु इससे उसे कोई लाभ नहीं हुआ। असीरिया ने उसकी सहायता नहीं की, बल्कि उस पर और भी अधिक संकट लाए।
अहाज ने परमेश्वर के मन्दिर के सारे पवित्र पात्र तोड़ डाले, यहोवा के मन्दिर के द्वार बंद कर दिए, और यरूशलेम के हर कोने में मूर्तियों के वेदी बना डाले। उसने अपने अंतिम दिनों में भी परमेश्वर की अवज्ञा की और अधर्म के मार्ग पर चलता रहा।
**अंत और सीख**
अहाज की मृत्यु के बाद उसे यरूशलेम में दफनाया गया, किंतु उसे इस्राएल के राजाओं की कब्र में स्थान नहीं दिया गया, क्योंकि उसने परमेश्वर की दृष्टि में बुराई की थी। उसके पुत्र हिजकिय्याह ने उसके स्थान पर राज किया और उसने अपने पिता के कुकर्मों को दूर करके यहोवा की सेवा की।
इस कथा से हम सीखते हैं कि परमेश्वर की अवज्ञा करने वालों का अंत दुखद होता है, किंतु जो उसकी आज्ञा मानते हैं, उन पर उसकी दया बनी रहती है। अहाज का जीवन एक चेतावनी है कि मनुष्य अपने हठ के कारण विनाश को निमंत्रित करता है, परंतु जो लोग सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलते हैं, परमेश्वर उन्हें सदैव सहारा देता है।