# **एजेकील 9: न्याय की मुहर और यरूशलेम का विनाश**
पवित्र शहर यरूशलेम में पाप अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था। लोगों ने परमेश्वर की व्यवस्था को ताक पर रख दिया था, मूर्तियों की पूजा करने लगे थे, और अन्याय तथा हिंसा से नगर भर गया था। भविष्यद्वक्ता एजेकील परमेश्वर के सामने खड़े थे, जब उन्होंने एक अद्भुत और भयानक दर्शन देखा।
एजेकील ने देखा कि स्वर्ग के द्वार खुल गए, और परमेश्वर की महिमा प्रकट हुई। उसकी आवाज गर्जन के समान गूंजी, और उसने छः भयंकर दूतों को बुलाया, जिनके हाथों में विनाश के हथियार थे। वे सभी यरूशलेम के ऊपरी द्वार के पास खड़े थे, जहाँ पापियों का न्याय होना था।
तभी एजेकील ने एक सातवें व्यक्ति को देखा, जो सफेद वस्त्र पहने हुए था और उसकी कमर पर लेखनी की दावात (स्याही की कलम) बँधी हुई थी। यह व्यक्ति पवित्र और निर्मल था, और उसका कार्य भिन्न था। परमेश्वर ने उससे कहा, **”यरूशलेम के बीच में से होकर जा, और उन सब के माथे पर चिन्ह लगा दे जो इस नगर के भीतर किए जा रहे घृणित कामों से दुखी होकर कराह रहे हैं।”**
यह चिन्ह “ताव” (ת) था, जो हिब्रू वर्णमाला में अंतिम अक्षर है और प्राचीन समय में न्याय या मुहर का प्रतीक माना जाता था। जिनके माथे पर यह चिन्ह था, वे परमेश्वर के प्रति सच्चे और पश्चातापी थे। उन्हें विनाश से बचा लिया जाएगा।
लेकिन बाकी लोगों के लिए कोई दया नहीं थी। परमेश्वर ने छः दूतों को आज्ञा दी, **”बूढ़े, जवान, कुंवारी, बालक, स्त्रियों सब को मार डालो, परन्तु जिस किसी के माथे पर चिन्ह हो, उसके पास से न जाना। मेरे पवित्र स्थान से आरम्भ करो।”**
और फिर विनाश आरम्भ हुआ।
दूतों ने मन्दिर से शुरुआत की, जहाँ पुरोहितों ने मूर्तिपूजा को बढ़ावा दिया था। वेदी के पास खड़े बुजुर्गों को पहले मारा गया, फिर नगर की गलियों में भागते युवाओं को। कोई भाग नहीं सका, क्योंकि परमेश्वर का क्रोध सब पर छा गया था। रोते हुए बच्चे, डरी हुई स्त्रियाँ, सभी न्याय के सामने निर्बल थे। केवल वे ही बचे जिनके माथे पर ताव का चिन्ह था।
एजेकील ने यह भयानक दृश्य देखकर परमेश्वर से प्रार्थना की, **”हे प्रभु, क्या तू समस्त इस्राएल को नष्ट कर देगा?”**
लेकिन परमेश्वर ने उत्तर दिया, **”इस्राएल और यहूदा का अधर्म बहुत बढ़ गया है। उन्होंने नगर को हिंसा से भर दिया है और कहते हैं कि यहोवा ने हमें छोड़ दिया है। इसलिए मैं उन पर दया नहीं करूँगा। जैसा उन्होंने किया है, वैसा ही उन पर होगा।”**
और जब तक अंतिम दण्ड नहीं मिला, विनाश रुका नहीं। नगर की गलियाँ लाशों से पट गईं, और मन्दिर का पवित्र स्थान अपवित्र हो गया।
एजेकील विलाप करते रहे, क्योंकि उन्होंने देखा कि परमेश्वर का न्याय निष्कपट और भयानक है। लेकिन उन्होंने यह भी सीखा कि परमेश्वर उन्हें अवश्य बचाता है जो उसके प्रति वफादार हैं। जिन्होंने पाप से घृणा की और सच्चे मन से पश्चाताप किया, उन पर दया हुई।
इस प्रकार, यरूशलेम का विनाश एक चेतावनी बन गया कि परमेश्वर पाप को सहन नहीं करेगा, लेकिन वह अपने लोगों को जानता है और उनकी रक्षा करता है।