**यहेज्केल 41: मन्दिर का विस्तृत वर्णन**
पवित्र आत्मा की प्रेरणा से यहेज्केल नबी को एक अद्भुत दर्शन दिखाया गया। वह आत्मिक रूप में एक ऊँचे पहाड़ पर खड़े थे, जहाँ से उन्हें एक भव्य और पवित्र मन्दिर का दर्शन हुआ। यह मन्दिर इतना विशाल और पवित्र था कि उसकी महिमा से यहेज्केल का हृदय भय और आदर से भर गया।
### **मुख्य भवन का माप**
दिव्य दूत ने यहेज्केल को मन्दिर के मुख्य भवन की ओर ले जाकर उसका माप लेना शुरू किया। मुख्य भवन की चौड़ाई छः हाथ थी, और उसकी दीवारें मोटी और सुदृढ़ थीं। दूत ने बताया कि यह स्थान परमपवित्र है, जहाँ परमेश्वर की महिमा निवास करती है।
### **पवित्र स्थान और अति पवित्र स्थान**
मन्दिर के भीतर दो मुख्य भाग थे: पवित्र स्थान और अति पवित्र स्थान। पवित्र स्थान की लम्बाई चालीस हाथ थी, और चौड़ाई बीस हाथ थी। इसके बाद अति पवित्र स्थान आता था, जो बीस हाथ लम्बा और बीस हाथ चौड़ा था। इस स्थान की दीवारें सोने से मढ़ी हुई थीं, और वहाँ परमेश्वर की उपस्थिति का प्रकाश चमक रहा था।
### **दीवारों पर की गई नक्काशी**
यहेज्केल ने देखा कि मन्दिर की भीतरी दीवारों पर सुन्दर नक्काशी की गई थी। वहाँ केरूबों और खजूर के पेड़ों की आकृतियाँ बनी हुई थीं। केरूबों के दो-दो मुख थे—एक मनुष्य का और दूसरा सिंह का। ये आकृतियाँ परमेश्वर की महिमा और उसकी सृष्टि की विविधता को प्रकट करती थीं। खजूर के पेड़ जीवन और समृद्धि का प्रतीक थे, जो यह दिखाते थे कि परमेश्वर अपने लोगों को आशीष देता है।
### **मन्दिर के कक्ष और गलियारे**
मन्दिर के चारों ओर तीन मंजिलों वाले कक्ष बने हुए थे, जो पुजारियों के लिए थे। हर मंजिल पर कक्षों की संख्या अलग-अलग थी। नीचे की मंजिल पर चौड़े कक्ष थे, बीच वाली पर थोड़े संकरे, और सबसे ऊपर वाली मंजिल पर सबसे संकरे कक्ष थे। इन कक्षों में पवित्र वस्तुओं को रखा जाता था, और पुजारी यहाँ प्रार्थना और सेवा कार्य करते थे।
### **मन्दिर की लकड़ी की मेज**
मन्दिर के भीतर एक विशाल लकड़ी की मेज थी, जिस पर भेंट की रोटी रखी जाती थी। यह मेज अति पवित्र थी, और केवल पुजारी ही इसे छू सकते थे। यहेज्केल ने देखा कि मेज के चारों ओर सुन्दर नक्काशी की गई थी, जो परमेश्वर की उदारता और प्रावधान को दर्शाती थी।
### **मन्दिर के द्वार और उनकी सजावट**
मन्दिर के सभी द्वार सनौवर की लकड़ी के बने हुए थे और उन पर सुनहरी पट्टिकाएँ लगी हुई थीं। हर द्वार पर केरूबों और खजूर के पेड़ों की आकृतियाँ उकेरी गई थीं। ये द्वार इतने भव्य थे कि यहेज्केल उनकी सुन्दरता देखकर दंग रह गए।
### **यहेज्केल की प्रतिक्रिया**
इस पवित्र दर्शन को देखकर यहेज्केल ने परमेश्वर की स्तुति की। उन्होंने समझ लिया कि यह मन्दिर केवल एक भवन नहीं, बल्कि परमेश्वर और उसके लोगों के बीच संबंध का प्रतीक है। परमेश्वर चाहता है कि उसका निवास स्थान पवित्र रहे, और उसके लोग उसकी आराधना सच्चे मन से करें।
इस दर्शन के अंत में, यहेज्केल के हृदय में एक गहरी शांति और आशा भर गई। उन्होंने जान लिया कि परमेश्वर अपने वादों को पूरा करेगा और एक दिन अपने लोगों को पूरी तरह से पवित्र करके अपने साथ रखेगा।
**॥ इति शुभम् ॥**