**एकांत की गहराई से: भजन संहिता 88 की कहानी**
प्राचीन काल में, यरूशलेम से दूर एक छोटे से गाँव में हेमान नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह लेवी वंश से था और परमेश्वर की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर चुका था। हेमान गहरी आध्यात्मिक समझ रखता था और अक्सर भजन लिखता था, जो परमेश्वर की महिमा और मनुष्य की पुकार को व्यक्त करते थे। लेकिन एक समय ऐसा आया जब हेमान के जीवन में अंधकार छा गया।
एक रात, हेमान अपनी कोठरी में अकेले बैठा था। चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था, केवल दीपक की लौ हिलोरें ले रही थी। उसका मन भारी था, मानो कोई अदृश्य बोझ उसे दबा रहा हो। वह ज़ोर-ज़ोर से परमेश्वर को पुकारने लगा:
**”हे मेरे परमेश्वर, मेरे उद्धारकर्ता, मैं दिन-रात तेरे सामने रोता हूँ! मेरी प्रार्थना तेरे पास पहुँचे, अपना कान लगाकर मेरी पुकार सुन!”**
लेकिन उसे लगा जैसे उसकी आवाज़ खालीपन में खो गई है। उसकी आत्मा में एक गहरी पीड़ा थी, जैसे मृत्यु की छाया उसे घेर रही हो। वह फिर बोला:
**”मेरा प्राण संकट से भर गया है, मेरा जीवन अधोलोक के निकट पहुँच गया है। मैं उन लोगों के समान हो गया हूँ जिनकी कोई सुध नहीं लेता, जैसे मारे गए लोग जो कब्र में पड़े हैं।”**
हेमान को लगा जैसे परमेश्वर ने उसे भुला दिया है। उसके मित्र और परिवार भी उससे दूर हो गए थे, मानो उसकी पीड़ा उनके लिए असहनीय हो। वह अकेला था, एक ऐसी निराशा में फँसा हुआ जिसमें कोई रोशनी नज़र नहीं आती थी।
कई दिन बीत गए, पर हेमान की स्थिति जस की तस बनी रही। वह प्रतिदिन मंदिर जाता, परमेश्वर के सामने हाथ फैलाता, पर उसे कोई उत्तर नहीं मिलता। एक दिन, जब वह विशेष रूप से टूटा हुआ महसूस कर रहा था, तो उसने अपने हृदय की सारी वेदना परमेश्वर के सामने उंडेल दी:
**”तेरा प्रकोप मुझ पर भारी पड़ा है, तूने मुझे सब तरफ से घेर लिया है। तूने मेरे जान-पहचान के लोगों को मुझसे दूर कर दिया है, मैं उनके लिए घृणा का पात्र बन गया हूँ।”**
हेमान की आँखों से आँसू बह रहे थे। उसे लगा जैसे वह एक गहरे गड्ढे में गिर गया है, जहाँ से निकलने का कोई रास्ता नहीं है। फिर भी, उसने अपनी प्रार्थना जारी रखी। वह जानता था कि चाहे उसे कोई उत्तर न मिले, परमेश्वर उसकी पुकार सुन रहा है।
अंत में, हेमान ने अपने भजन को इन शब्दों के साथ समाप्त किया:
**”हे यहोवा, तूने मेरे प्राणों को पुराने समय से ही दुःख दिया है। मैं तेरे भय से मरा जाता हूँ। तेरा क्रोध मुझ पर बह गया है, तेरे आतंक ने मुझे नष्ट कर दिया है। तूने मेरे प्रियजनों और मित्रों को मुझसे दूर कर दिया है, मेरा एकमात्र साथी अंधकार है।”**
इस भजन के माध्यम से हेमान ने उस गहन निराशा को व्यक्त किया जो कभी-कभी मनुष्य के हृदय को घेर लेती है। यह एक ऐसी पुकार थी जो विश्वास के बिना शून्यता में खो सकती थी, लेकिन हेमान ने अपनी पीड़ा को परमेश्वर के सामने रखा—यह स्वीकार करते हुए कि वह अकेला नहीं है, भले ही वह ऐसा महसूस करता हो।
भजन संहिता 88 की यह कहानी हमें सिखाती है कि विश्वास की यात्रा में अंधकार के क्षण भी आते हैं, परन्तु इन क्षणों में भी परमेश्वर की उपस्थिति हमें थामे रहती है। हेमान की तरह, हम भी अपनी पीड़ा को उसके सामने रख सकते हैं, यह जानते हुए कि वह हमारी हर आह सुनता है।