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विश्वास की जीत: दाऊद की प्रार्थना और भजन 56 (Note: The title is under 100 characters in Hindi, symbols and quotes removed as requested.)

**भजन संहिता 56 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**

**शीर्षक: “विश्वास की परीक्षा: दाऊद की प्रार्थना”**

फिलिस्तीन के गत शहर में एक अंधेरी रात थी। हवा में डर और अनिश्चितता का भाव था। दाऊद, इस्राएल के भविष्य का राजा, अब अपने ही लोगों से छिपता फिर रहा था। राजा शाऊल का क्रोध उसके पीछे पड़ा था, और अब वह शत्रुओं के बीच—फिलिस्तीनियों के बीच—शरण लेने को मजबूर था। गत के लोगों ने जब पहचान लिया कि यह वही दाऊद है जिसने गोलियत का वध किया था, तो उनके हृदय में डर और घृणा भर गई।

दाऊद को पकड़ लिया गया। फिलिस्तीनियों के सैनिकों ने उसे घेर लिया, उस पर हँसे, और उसे मारने की धमकी दी। उनकी आँखों में हिंसा चमक रही थी, और उनके शब्द तलवारों की तरह चुभते थे। दाऊद का हृदय भय से काँप उठा। उसने अपने चारों ओर देखा—कोई मित्र नहीं, कोई सहायक नहीं, केवल शत्रु ही शत्रु।

परंतु फिर भी, उसकी आत्मा ने परमेश्वर को याद किया। उसने अपने मन में कहा, *”जब मैं डरता हूँ, तो मैं तुझ पर भरोसा रखूँगा।”* (भजन 56:3) उसने फिलिस्तीनियों के राजा अखीश के सामने अपनी बुद्धिमत्ता दिखाई और अपने प्राण बचाए, परंतु उसका हृदय अभी भी परमेश्वर की ओर उठ रहा था।

एकांत में बैठकर, दाऊद ने परमेश्वर से प्रार्थना की: *”हे परमेश्वर, मेरे शत्रु मुझे रौंदना चाहते हैं। वे दिन भर मेरे विरुद्ध षड्यंत्र रचते हैं, मेरे कदमों पर नजर रखते हैं।”* (भजन 56:5-6) उसकी आँखों से आँसू बह निकले। उसे लगा जैसे वह एक गहरी खाई में गिर गया हो, जहाँ से निकलने का कोई रास्ता नहीं।

परंतु तभी उसके मन में परमेश्वर का वचन जाग उठा: *”तू मेरे आँसुओं को गिन लेता है। क्या वे तेरी पुस्तक में दर्ज नहीं?”* (भजन 56:8) यह सोचकर दाऊद का हृदय शांत हुआ। उसे एहसास हुआ कि परमेश्वर उसके साथ है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।

अगले दिन, दाऊद ने फिलिस्तीनियों के बीच अपनी चतुराई से काम लिया। वह उनके संदेह से बच निकला और अंततः सुरक्षित इस्राएल की भूमि पर लौट आया। जंगलों और पहाड़ियों से गुजरते हुए, उसने एक नया भजन गाया: *”परमेश्वर के वचन पर मेरा भरोसा है, मैं मनुष्य से नहीं डरूँगा। वे मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं?”* (भजन 56:10-11)

दाऊद ने अपने मन में प्रतिज्ञा की कि वह परमेश्वर के प्रति अपनी मन्नतें पूरी करेगा। उसने कहा, *”हे परमेश्वर, तूने मेरे प्राणों को मृत्यु से बचाया है, तू मेरे पैरों को ठोकर खाने से रोकेगा, ताकि मैं जीवित रहकर तेरे सामने चल सकूँ।”* (भजन 56:13)

और इस प्रकार, दाऊद ने अपने भय पर विजय पाई। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि चाहे शत्रु कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, परमेश्वर उन सबसे बड़ा है। जो उस पर भरोसा रखता है, उसे कभी लज्जित नहीं होना पड़ता।

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