पवित्र बाइबल

भजन 120: योनातान की प्रार्थना और परमेश्वर की शांति

**भजन 120: एक विस्तृत कथा**

**प्रारंभ**

एक समय की बात है, जब दूर एक छोटे से गाँव में एक व्यक्ति रहता था जिसका नाम योनातान था। वह परमेश्वर का भक्त था और हमेशा उसकी शरण में रहता था। लेकिन उसके आसपास के लोग झूठ बोलने वाले और कपटी थे। वे उस पर अकारण ही दोष लगाते, उसका मज़ाक उड़ाते और उसे परेशान करते। योनातान का हृदय दुख से भर गया, क्योंकि वह शांति चाहता था, लेकिन उसके चारों ओर केवल झूठ और विवाद था।

**प्रार्थना में पुकार**

एक दिन, जब योनातान अपनी कुटिया में बैठा था, उसने अपने मन की पीड़ा परमेश्वर के सामने रखी। उसने गहरी आह भरते हुए कहा, *”हे प्रभु, संकट के समय मैं तेरी ओर पुकार उठता हूँ, और तू मेरी सुनता है।”* (भजन 120:1) उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, क्योंकि वह जानता था कि परमेश्वर उसकी पुकार सुनने वाला है।

योनातान ने प्रार्थना की, *”हे यहोवा, मुझे झूठ बोलने वालों के हाथ से बचा, और कपट करने वालों से छुड़ा।”* (भजन 120:2) उसके मन में डर था, क्योंकि उसके शत्रु उसे घेरे हुए थे, लेकिन वह विश्वास से भरा हुआ था कि परमेश्वर उसकी रक्षा करेगा।

**झूठों का दंड**

योनातान ने परमेश्वर से विनती की, *”हे धोखेबाज, तुझे क्या मिलेगा? तुझे क्या प्राप्त होगा? तीरों के समान तेज धार वाले बाण और जलते हुए कोयले!”* (भजन 120:3-4) वह जानता था कि परमेश्वर न्यायी है और झूठ बोलने वालों को उनके कर्मों का फल अवश्य मिलेगा।

गाँव के लोगों ने योनातान को धमकाया और उसके विरुद्ध झूठी गवाही दी। एक दिन, जब वे उसे घेरकर उस पर हाथ उठाने लगे, तो अचानक आकाश में बादल गरजने लगे। बिजली चमकी और एक भयानक आँधी उठ खड़ी हुई। लोग डर गए और भागने लगे। योनातान ने देखा कि परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली थी।

**शांति की खोज**

लेकिन योनातान अभी भी दुखी था, क्योंकि वह शांति चाहता था। उसने कहा, *”मैं तो शांति चाहता हूँ, पर जब मैं बोलता हूँ, तो वे युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।”* (भजन 120:7) उसने महसूस किया कि यह गाँव अब उसके रहने का स्थान नहीं रहा। वह एक ऐसी जगह चाहता था जहाँ परमेश्वर की शांति हो।

**नए सफर की शुरुआत**

अगले दिन, योनातान ने अपना थोड़ा सा सामान बाँधा और परमेश्वर के मार्गदर्शन में एक नए स्थान की ओर चल पड़ा। वह जानता था कि परमेश्वर उसे सुरक्षित ले जाएगा। कई दिनों की यात्रा के बाद, वह एक शांत घाटी में पहुँचा, जहाँ भक्ति से भरे लोग रहते थे। वहाँ उसे सच्ची शांति मिली।

**उपसंहार**

योनातान ने महसूस किया कि परमेश्वर ने उसकी पुकार सुन ली थी। उसने भजन 120 के शब्दों को अपने जीवन में सच होते देखा। उसने सीखा कि जब हम संकट में होते हैं, तो परमेश्वर हमारी सुनता है और हमें बचाता है। झूठ और कपट का अंत न्याय से होता है, और परमेश्वर की शांति उन्हें मिलती है जो उसकी खोज करते हैं।

इस प्रकार, योनातान ने अपना जीवन परमेश्वर की सेवा में लगा दिया और उसकी कृपा से शांति और आनंद से रहने लगा।

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