पवित्र बाइबल

एज्रा 3: यरूशलेम में वेदी का पुनर्निर्माण और आराधना की पुनर्स्थापना

**एज्रा अध्याय 3: यरूशलेम में वेदी का निर्माण और परमेश्वर की आराधना की पुनर्स्थापना**

वर्षों की बंधुआई के बाद, जब परमेश्वर ने फारस के राजा कुरुश के हृदय को छुआ और उसने इस्राएलियों को यरूशलेम लौटने की आज्ञा दी, तब परमेश्वर के लोगों ने अपनी मातृभूमि की ओर कदम बढ़ाए। यहूदा और बिन्यामीन के गोत्रों के लोग, साथ ही याजक, लेवीय और अन्य भक्त लोग, बाबेल से चलकर यहूदा के देश में आए। उनके हृदय में एक ही लालसा थी—यरूशलेम को फिर से बसाना और परमेश्वर के मंदिर को फिर से खड़ा करना।

**वेदी का पुनर्निर्माण**

सातवें महीने में, जब इस्राएली यरूशलेम और आसपास के नगरों में बस गए, तब वे एकजुट होकर यहोशू (येशूआ) और योयाकीम जैसे याजकों तथा जरुब्बाबेल और उनके भाइयों के नेतृत्व में इकट्ठे हुए। उन्होंने परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने का निश्चय किया। सबसे पहले, उन्होंने परमेश्वर के सामने बलिदान चढ़ाने के लिए वेदी का निर्माण किया।

यह कोई साधारण वेदी नहीं थी—यह वही स्थान था जहाँ पहले परमेश्वर का मंदिर खड़ा था, जिसे बाबेल के लोगों ने नष्ट कर दिया था। इस्राएलियों ने ध्यान से पत्थरों को चुनकर, उन्हें एक दूसरे पर रखा, और मूसा की व्यवस्था के अनुसार होमबलि चढ़ाने के लिए वेदी तैयार की। हालाँकि मंदिर अभी खंडहर था, परन्तु उन्होंने विश्वास से परमेश्वर की आराधना शुरू कर दी।

**पहला बलिदान और पर्व का उत्सव**

वेदी के पूरा होते ही, याजकों ने शोफार (मेंढ़े के सींग) फूँके और लेवीयों ने ढोल और वीणा के साथ परमेश्वर की स्तुति की। सुबह और शाम के बलिदान फिर से शुरू हुए, जैसा कि परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी थी। धूप की सुगंध आकाश में फैलने लगी, और लोगों के हृदय आनंद से भर गए।

फिर सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन, उन्होंने झोपड़ियों का पर्व (सुक्कोत) मनाया। इस्राएलियों ने जैतून, खजूर और अन्य पेड़ों की डालियों से झोपड़ियाँ बनाईं और सात दिन तक उत्सव मनाया। यह वही पर्व था जिसे उनके पूर्वज मिस्र से छुटकारे के बाद मनाते थे। अब, बाबेल की बंधुआई से छूटकर, वे फिर से इस पवित्र उत्सव को मना रहे थे।

**मंदिर की नींव रखी जाती है**

इसके बाद, लोगों ने मंदिर के निर्माण की तैयारी शुरू की। उन्होंने पत्थर काटने वालों और बढ़ईयों को काम पर लगाया, और सीदोनियों और तूरियों से देवदार के लकड़ी के गट्ठर मँगवाए, जैसा कि कुरुश राजा ने आज्ञा दी थी।

दूसरे वर्ष के दूसरे महीने में, जरुब्बाबेल और यहोशू (येशूआ) ने याजकों और लेवीयों के साथ मिलकर मंदिर की नींव रखी। याजकों ने अपने वस्त्र पहने और तुरहियाँ बजाईं, जबकि लेवीयों ने दाऊद के वाद्य यंत्रों से परमेश्वर की स्तुति की। जब नींव का पत्थर रखा गया, तो सभी लोग जयजयकार करने लगे:

**”वह अच्छा है! उसकी करुणा इस्राएल पर सदा बनी रहे!”**

बूढ़े लोग, जिन्होंने पहले मंदिर को देखा था, रोने लगे। वे सुलेमान के भव्य मंदिर की महिमा को याद करके दुःखी हुए, जो अब धूल में मिल चुका था। परन्तु युवाओं की आवाज़ें आनंद से गूँज रही थीं। इस प्रकार, आँसू और हर्ष की मिली-जुली ध्वनि आकाश में उठी, और दूर तक सुनाई देती रही।

**निष्कर्ष**

इस प्रकार, इस्राएलियों ने अपनी आराधना और विश्वास को पुनर्जीवित किया। वेदी का निर्माण और मंदिर की नींव रखना केवल पत्थरों और लकड़ी का काम नहीं था—यह परमेश्वर के प्रति उनकी निष्ठा और आशा का प्रतीक था। भले ही चुनौतियाँ अभी बाकी थीं, परन्तु उन्होंने विश्वास किया कि परमेश्वर उनके साथ है और वह उनके कार्य को पूरा करेगा।

और इस प्रकार, यरूशलेम में फिर से परमेश्वर का नाम महिमान्वित हुआ।

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