**यिर्मयाह 13: एक प्रतीकात्मक कार्य और परमेश्वर का संदेश**
यहूदा के राज्य के अंतिम दिनों में, जब यरूशलेम के लोगों ने परमेश्वर की आज्ञाओं को तुच्छ जानकर मूर्तिपूजा और अधर्म में डूब गए थे, तब परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह को एक असामान्य आज्ञा दी। एक दिन, जब यिर्मयाह प्रार्थना में लीन थे, तो यहोवा का वचन उनके पास आया:
**”जा, एक सनी का कमरबन्द खरीद कर अपनी कमर पर बाँध, परन्तु उसे पानी में न डुबाना।”**
यिर्मयाह ने ठीक वैसा ही किया जैसा परमेश्वर ने आज्ञा दी थी। उन्होंने बाजार से एक मजबूत, नया सनी का कमरबन्द खरीदा और उसे अपनी कमर पर बाँध लिया। वह कमरबन्द सुन्दर और मजबूत था, जैसे परमेश्वर ने इज़राइल को अपने साथ घनिष्ठता से बाँध रखा था। कुछ दिनों तक यिर्मयाह ने उसे पहने रखा, और लोगों ने उन्हें उस अजीब वस्त्र के साथ देखा। कुछ ने पूछा भी, “हे भविष्यद्वक्ता, यह कमरबन्द क्यों पहने हो?” परन्तु यिर्मयाह ने कोई उत्तर नहीं दिया, क्योंकि समय आने पर परमेश्वर स्वयं उसका अर्थ प्रकट करने वाला था।
कुछ समय बाद, यहोवा का वचन फिर यिर्मयाह के पास आया:
**”उस कमरबन्द को लेकर फरात नदी के पास जा, और वहाँ उसे एक चट्टान की दरार में छिपा आ।”**
यिर्मयाह ने बिना किसी प्रश्न के आज्ञा का पालन किया। वह यरूशलेम से दूर, फरात नदी के तट तक गए—एक लम्बी और कठिन यात्रा। वहाँ पहुँचकर उन्होंने कमरबन्द को एक चट्टान के नीचे दबा दिया। उस स्थान पर नमी और कीचड़ था, परन्तु यिर्मयाह ने ठीक वैसा ही किया जैसा परमेश्वर ने कहा था।
कई दिनों के बाद, परमेश्वर ने यिर्मयाह को फिर आज्ञा दी:
**”जा कर उस कमरबन्द को वहाँ से ले आ जहाँ तूने उसे छिपाया था।”**
यिर्मयाह वापस फरात नदी गए और चट्टान के पास पहुँचे। जब उन्होंने कमरबन्द को निकाला, तो देखा कि वह पूरी तरह से खराब हो चुका था। नमी और गंदगी ने उसे बेकार कर दिया था—वह फटा हुआ, गन्दा और पहनने लायक नहीं रह गया था। तब परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा:
**”इसी प्रकार मैं यहूदा के घमण्ड और यरूशलेम के बड़े अभिमान को नष्ट कर दूँगा। यह दुष्ट लोग, जिन्होंने मेरी आज्ञाओं को नहीं माना और दूसरे देवताओं के पीछे चले, वे इस कमरबन्द की तरह बेकार हो जाएँगे। जैसे यह कमरबन्द अब किसी काम का नहीं, वैसे ही ये लोग मेरी दृष्टि में निकम्मे हो जाएँगे।”**
यिर्मयाह ने लोगों को यह संदेश सुनाया, परन्तु उन्होंने चेतावनी को अनसुना कर दिया। परमेश्वर ने आगे कहा:
**”मैं उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ में दे दूँगा, और वे बन्दी बना लिए जाएँगे। क्योंकि उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी, और अपने हठीले मन के अनुसार चले।”**
यिर्मयाह ने लोगों को समझाया कि यदि वे पश्चाताप करें और परमेश्वर की ओर लौटें, तो शायद वह उन पर दया करे। परन्तु लोगों ने उनकी बातों को ठट्ठों में उड़ा दिया।
अंत में, परमेश्वर ने एक अंतिम चेतावनी दी:
**”यदि तुम नहीं सुनोगे, तो मैं तुम्हें इस देश से उखाड़ फेंकूँगा, और तुम्हारे शत्रु तुम्हें दास बना लेंगे। तुम्हारा अभिमान और पाप ही तुम्हारे विनाश का कारण बनेगा।”**
यिर्मयाह का हृदय दुखी था, क्योंकि वह जानता था कि परमेश्वर का न्याय निकट है। उसने लोगों से विनती की, परन्तु उनके कान बहरे हो चुके थे। और इस प्रकार, यहूदा का विनाश निश्चित हो गया, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की चेतावनी को अनदेखा कर दिया था।
**सीख:**
यिर्मयाह 13 की यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर के साथ हमारा घनिष्ठ सम्बन्ध ही हमारी सुरक्षा और आशीष का स्रोत है। यदि हम उसकी आज्ञाओं को त्याग देते हैं और अहंकार में जीते हैं, तो हम उस कमरबन्द की तरह बेकार हो जाते हैं जो फटकर नष्ट हो गया। परमेश्वर चाहता है कि हम उसकी ओर लौटें, नम्र बनें, और उसकी इच्छा के अनुसार चलें।