**कहानी: मरियम और हारून की अभिमान की परीक्षा**
**अध्याय 1: परमेश्वर के चुने हुए नबी**
वह समय था जब इस्राएली जंगल में भटक रहे थे, परमेश्वर की महिमा के साये में। मूसा, परमेश्वर का वह विश्वासयोग्य सेवक, जिसके द्वारा यहोवा ने महान चमत्कार दिखाए थे, लोगों का मार्गदर्शन कर रहा था। वह न केवल इस्राएल के नेता थे बल्कि परमेश्वर के मुख से सीधे आज्ञाएँ प्राप्त करते थे। परन्तु, उसी समय, मूसा के अपने ही भाई-बहन—हारून और मरियम—के मन में एक गहरी असंतुष्टि पनपने लगी।
**अध्याय 2: गुप्त शिकायतें**
एक दिन, जब लोग हजेरोत में डेरे डाले हुए थे, मरियम और हारून ने मूसा के विरुद्ध बातें करनी शुरू कीं। मरियम, जो एक भविष्यवक्तिनी थी, और हारून, जो महायाजक था, दोनों ने कहा,
“क्या यहोवा ने केवल मूसा के द्वारा ही बातें की हैं? क्या उसने हमसे भी बातें नहीं कीं?”
उनके शब्दों में ईर्ष्या और घमंड झलक रहा था। वे भूल गए कि मूसा को परमेश्वर ने विशेष रूप से चुना था। वास्तव में, बाइबल कहती है कि मूसा परमेश्वर के साथ “आमने-सामने” बातें करता था, जैसे कोई अपने मित्र से बात करे।
**अध्याय 3: यहोवा का हस्तक्षेप**
परमेश्वर, जो सब कुछ सुनता और जानता है, ने उनकी बातें सुनीं। वह क्रोधित हुआ क्योंकि मूसा उसका सबसे नम्र सेवक था। तब यहोवा ने अचानक मूसा, हारून और मरियम को मिलाप के तम्बू के पास बुलाया।
एक बादल उतरा और यहोवा की उपस्थिति उनके सामने प्रकट हुई। फिर परमेश्वर ने हारून और मरियम से कहा,
“मेरी बात सुनो! यदि तुम में कोई नबी होगा, तो मैं यहोवा दर्शन में उससे बातें करूँगा, या स्वप्न में उससे कहूँगा। परन्तु मेरा सेवक मूसा ऐसा नहीं है। वह मेरे सारे घर में विश्वासयोग्य है। मैं उससे मुखामुख बातें करता हूँ, स्पष्ट रूप से, न कि पहेलियों में। तुम लोगों को मेरे दास मूसा के विरुद्ध बोलने का साहस कैसे हुआ?”
**अध्याय 4: मरियम का दण्ड**
यहोवा का क्रोध भड़क उठा और जैसे ही वह बादल ऊपर उठा, मरियम के शरीर पर कोढ़ का भयानक दाग उभर आया। उसका त्वचा सफेद बर्फ की तरह हो गया। हारून ने जब उसे देखा, तो वह डर से काँप उठा।
उसने मूसा से विनती की, “हे मेरे प्रभु, हमने मूर्खता की है। कृपया हमारे पाप को क्षमा कर। मरियम को यह भयानक दण्ड न मिले!”
**अध्याय 5: मूसा की दया और मरियम की शुद्धता**
मूसा, जो नम्र और दयालु था, ने तुरंत यहोवा से प्रार्थना की:
“हे परमेश्वर, कृपया उसे चंगा कर!”
यहोवा ने मूसा की प्रार्थना सुनी, परन्तु उसने मरियम को सात दिन तक शिविर के बाहर रहने का दण्ड दिया। उसे अपनी लज्जा और पश्चाताप का समय मिला। इस्राएल की सारी मंडली उसके लौटने तक आगे नहीं बढ़ी।
**अध्याय 6: सबक**
इस घटना के बाद, सभी इस्राएलियों ने सीखा कि परमेश्वर के चुने हुए नबी के विरुद्ध बोलना कितना गंभीर पाप है। मरियम और हारून को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने विनम्रता से परमेश्वर की इच्छा स्वीकार की।
और इस प्रकार, परमेश्वर ने अपने लोगों को यह सिखाया कि अभिमान और ईर्ष्या मनुष्य को पतन की ओर ले जाती है, परन्तु विनम्रता और आज्ञाकारिता आशीष का मार्ग है।
**समाप्त।**