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प्रेम का गीत: शुलमीथ और उसके प्रियतम की कथा

**प्रेम का गीत 2: एक विस्तृत कथा**

वसंत ऋतु का समय था। सारी सृष्टि प्रभु की महिमा से भरी हुई थी। पेड़ों पर नए पत्ते खिल रहे थे, फूलों की सुगंध हवा में तैर रही थी, और पक्षी मधुर स्वर में गा रहे थे। ऐसे ही एक दिन, शुलमीथ यरूशलेम के पास एक बाग़ में बैठी हुई थी। वह प्रभु के प्रेम में डूबी हुई थी, और उसका हृदय उसके प्रियतम की याद से भरा हुआ था।

उसने अपने आप से कहा, *”मैं शरोन की गुलाबी कली हूँ, और घाटी के सुंदर फूलों में से एक हूँ।”* उसका प्रियतम, जो कि प्रभु की छवि था, उसके लिए सबसे सुंदर और अनमोल था। वह उसकी आवाज़ पहचानती थी, जैसे भेड़ें अपने चरवाहे की आवाज़ पहचानती हैं।

तभी उसने दूर से एक परिचित स्वर सुना। उसका प्रियतम आ रहा था, पहाड़ियों को लाँघता हुआ, टीलों को पार करता हुआ। वह उसकी ओर दौड़ा, और खड़े होकर उसकी ओर देखने लगा। उसने खिड़की से झाँककर देखा, और उसका हृदय धड़कने लगा।

उसका प्रियतम उससे बोला, *”उठो, मेरी प्रिये, मेरी सुंदरता, और चलो। देखो, सर्दी बीत चुकी है, बारिश का मौसम जा चुका है। धरती पर फूल खिल गए हैं, गाने का समय आ गया है, और कबूतर का स्वर हमारे देश में सुनाई दे रहा है। अंजीर के पेड़ों में मीठे फल लग गए हैं, और अंगूर की बेलें खुशबू फैला रही हैं। उठो, मेरी प्रिये, मेरी सुंदरता, और चलो।”*

शुलमीथ का हृदय प्रेम से भर उठा। वह जानती थी कि यह केवल एक मनुष्य का प्रेम नहीं था, बल्कि प्रभु का प्रेम था जो उसके प्राणों को छू रहा था। वह उसके साथ चलने को तैयार हो गई, क्योंकि वह जानती थी कि उसका प्रियतम उसे कभी धोखा नहीं देगा।

वे दोनों बाग़ में टहलने लगे। हर तरफ़ हरियाली थी, और प्रकृति उनके प्रेम का गवाह बन रही थी। शुलमीथ ने देखा कि उसका प्रियतम उसकी रक्षा करता है, जैसे एक बेल अपने फलों की रक्षा करती है। वह उसकी छाया में बैठ गई, और उसके फल ने उसके मुँह को मीठा कर दिया।

तभी उसके प्रियतम ने उससे कहा, *”मेरी प्रिये बाग़ की हरिणी के समान है, वह इतनी कोमल और सुंदर है। देखो, वह दीवार के पीछे से झाँक रही है, खिड़की से देख रही है।”* शुलमीथ ने महसूस किया कि उसका प्रियतम उसकी हर छोटी-बड़ी बात को समझता है। वह उसके विचारों को भी पढ़ लेता है, जैसे प्रभु अपने बच्चों के मन की गहराई तक जानता है।

अचानक, उसका प्रियतम उससे बोला, *”मेरी प्रिये, आओ, हम मैदानों की ओर चलें, गाँवों में ठहरें। हम सुबह जल्दी अंगूर के बाग़ों में चलेंगे, देखेंगे कि क्या बेलें फलने लगी हैं, क्या अंगूर खिलने लगे हैं, क्या अनार की कलियाँ खिली हैं। वहाँ मैं तुम्हें अपना प्रेम दिखाऊँगा।”*

शुलमीथ ने सहमति में सिर हिलाया। वह जानती थी कि यह प्रेम केवल इस जीवन तक सीमित नहीं था, बल्कि अनंतकाल तक चलने वाला था। वह उसके साथ चल पड़ी, क्योंकि उसका विश्वास था कि प्रभु उसे कभी नहीं छोड़ेगा।

और इस तरह, शुलमीथ और उसका प्रियतम एक साथ चलते रहे, प्रकृति के बीच, प्रभु के प्रेम का अनुभव करते हुए। यह प्रेम केवल शारीरिक नहीं था, बल्कि आत्मिक था—एक ऐसा प्रेम जो सृष्टिकर्ता और सृष्टि के बीच था, और जो हमेशा के लिए अटूट था।

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