**एजेकील 31: असीरिया का पतन और परमेश्वर की सर्वोच्चता**
एक समय की बात है, जब परमेश्वर का वचन नबी एजेकील के पास आया। उस समय इज़राइल के लोग बंधुआई में थे, और परमेश्वर उन्हें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाना चाहता था। उसने एजेकील से कहा, “मनुष्य के सन्तान, मिस्र के राजा फिरौन और उसकी प्रजा से कहो—’तू अपने बड़प्पन में किसके समान है?'”
फिर परमेश्वर ने एजेकील को एक दृष्टांत दिखाया, जिसमें उसने असीरिया को एक विशाल देवदार के वृक्ष के रूप में चित्रित किया। उसने कहा, “देख, असीरिया लबानान में एक देवदार का वृक्ष था, जिसकी शाखाएँ सुन्दर थीं, और उसकी छाया घनी थी। उसकी ऊँचाई बहुत अधिक थी, और उसका शिखर बादलों तक पहुँच गया था।”
परमेश्वर ने बताया कि कैसे उस वृक्ष को जल की बहुतायत से पोषण मिलता था। गहरे सोतों ने उसे सींचा, और नदियाँ उसके चारों ओर बहती थीं, जिससे उसकी जड़ें हरियाली से भर गईं। उसकी शाखाएँ इतनी विशाल थीं कि आकाश के सभी पक्षी उसमें घोंसला बनाते थे, और जंगली जानवर उसकी छाया में विश्राम करते थे। उसकी सुन्दरता अद्वितीय थी, और कोई भी वृक्ष उसकी बराबरी नहीं कर सकता था।
लेकिन फिर परमेश्वर ने दिखाया कि कैसे उस वृक्ष का अहंकार उसके पतन का कारण बना। क्योंकि वह अपनी ऊँचाई पर घमण्ड करने लगा और अपने हृदय में कहने लगा, “मैं तो इतना ऊँचा हूँ कि मेरा शिखर बादलों को छूता है। मुझे कोई नहीं गिरा सकता!” लेकिन परमेश्वर ने उसके विरुद्ध न्याय की घोषणा की। उसने कहा, “इसलिए अब मैं, परमेश्वर यहोवा, उसके विरुद्ध हूँ। मैं उसे उसकी ऊँचाई से गिरा दूँगा। विदेशी जातियाँ, जो पृथ्वी के निर्दयी लोग हैं, उसे काट डालेंगी और उसकी शाखाओं को पहाड़ों और घाटियों में फेंक दिया जाएगा।”
परमेश्वर ने आगे कहा कि जब वह वृक्ष गिरेगा, तो सारी पृथ्वी काँप उठेगी। अन्य वृक्ष, जो उसकी छाया में सुरक्षित थे, वे भी डर जाएँगे। जल के सभी प्राणी, पक्षी और जानवर—सभी उसके पतन पर शोक मनाएँगे, क्योंकि वह सबसे महान था, फिर भी वह नष्ट हो गया।
फिर परमेश्वर ने एजेकील से कहा कि वह फिरौन और मिस्र से यही बात कहे: “जैसे असीरिया गिर गया, वैसे ही तू भी गिरेगा। तू अपने बल और महानता पर घमण्ड करता है, परन्तु मैं तुझे नीचे गिरा दूँगा। तेरी मृत्यु उन लोगों के समान होगी जो खतनारहित हैं, जो तलवार से मारे जाते हैं। मैं यहोवा हूँ, मैंने यह कहा है, और मैं यह करूँगा।”
इस प्रकार, परमेश्वर ने दिखाया कि कोई भी राष्ट्र या राजा, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, वह परमेश्वर के सामने नहीं टिक सकता। उसकी सर्वोच्चता सर्वोपरि है, और जो भी अहंकार करता है, उसे नम्र होना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर ही सभी राज्यों का न्यायी है।
**अन्त:** यह कहानी हमें सिखाती है कि घमण्ड और अहंकार मनुष्य को पतन की ओर ले जाते हैं। परमेश्वर महान है, और केवल वही सच्ची महानता प्रदान करता है। जो उसकी आज्ञा मानते हैं, वे स्थिर रहते हैं, परन्तु जो अपने बल पर भरोसा करते हैं, वे अन्त में शर्मिंदा होते हैं।