**ईसा 58: सच्चा उपवास और परमेश्वर की इच्छा**
प्राचीन समय में, यरूशलेम नगर में एक समुदाय रहता था जो बाहरी तौर पर धार्मिक दिखता था, लेकिन उनके हृदय परमेश्वर से दूर हो चुके थे। लोग उपवास रखते, प्रार्थना करते, और यहोवा के सामने अपनी धार्मिकता का दिखावा करते, परन्तु उनके कर्मों में प्रेम और न्याय का अभाव था।
एक दिन, परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ता यशायाह के द्वारा उन लोगों को एक सशक्त संदेश दिया। यशायाह ने लोगों को एकत्रित होकर सुना:
**”यहोवा यों कहता है: तुम लोग ऊँचे स्वर में रो-रोकर मेरा ध्यान खींचते हो, तुम उपवास रखते हो और अपने आप को दुःख देते हो, परन्तु क्या तुम सच में जानते हो कि मैं किस प्रकार का उपवास चाहता हूँ?”**
लोग चुपचाप सुनने लगे। यशायाह ने आगे कहा:
**”क्या यह वह उपवास है जिसे मैं चुनता हूँ? क्या मनुष्य का अपने प्राण को दुःख देना ही मेरी इच्छा है? क्या तुम सिर झुकाकर सींकल के समान लेटना और टाट ओढ़ना ही उपवास समझते हो? क्या तुम इसेी को यहोवा का प्रिय दिन कहते हो?”**
भीड़ में से कुछ लोगों के मन में प्रश्न उठा। वे समझ नहीं पा रहे थे कि परमेश्वर क्या चाहता है। तब यशायाह ने उन्हें समझाया:
**”नहीं! यह वह उपवास है जिसे मैं चाहता हूँ—अन्याय की बेड़ियाँ तोड़ दो, जुए की रस्सियाँ खोल दो, उत्पीड़ितों को स्वतंत्र करो, और हर प्रकार का जुआ तोड़ डालो। भूखे को अपनी रोटी दे दो, बेघर को अपने घर में स्थान दो, नंगे को वस्त्र पहनाओ, और अपने भाई-बहनों की सहायता करो।”**
लोगों के चेहरों पर आश्चर्य छा गया। कुछ लोगों को एहसास हुआ कि उनकी धार्मिकता खोखली थी। वे मंदिर में तो भक्ति दिखाते थे, लेकिन गरीबों और पीड़ितों की उपेक्षा करते थे।
यशायाह ने आगे कहा:
**”यदि तुम ऐसा करोगे, तो तुम्हारा प्रकाश पूर्व के सूर्य की भाँति चमकेगा। तुम्हारा अंधकार मध्याह्न के समान उज्ज्वल हो जाएगा। यहोवा तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा, तुम्हारी सारी आवश्यकताओं को पूरा करेगा, और तुम जीवन के जल से सिंचित हो जाओगे। तुम खंडहरों को फिर से बनाओगे, और पीढ़ियों से टूटी हुई नींवों को स्थापित करोगे। तुम्हें ‘मरम्मत करने वाला’ और ‘लोगों के जीवन को सुधारने वाला’ कहा जाएगा।”**
भीड़ में से एक बूढ़े व्यक्ति ने पूछा, **”लेकिन हमारे पापों का क्या होगा? क्या परमेश्वर हमें क्षमा करेगा?”**
यशायाह ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया:
**”यदि तुम बुराई छोड़कर सच्चे मन से परमेश्वर की आज्ञा मानोगे, तो तुम्हारा प्रकाश अंधकार में चमकेगा, और तुम्हारा अंधेरा दोपहर के समान उजाला हो जाएगा। यहोवा तुम्हारा मार्गदर्शक बनेगा, तुम्हारी आत्मा को तृप्त करेगा, और तुम सदा के निवास स्थान के अधिकारी बनोगे।”**
उस दिन के बाद, कई लोगों ने अपने जीवन बदल दिए। उन्होंने गरीबों की मदद करनी शुरू की, अन्याय के विरुद्ध खड़े हुए, और सच्चे मन से परमेश्वर की सेवा की। धीरे-धीरे, यरूशलेम में आशीषें बरसने लगीं, और लोगों ने अनुभव किया कि सच्चा उपवास केवल भूखे रहना नहीं, बल्कि दूसरों की भूख मिटाना है।
**और इस प्रकार, यशायाह के शब्दों ने लोगों को सिखाया कि परमेश्वर की इच्छा धार्मिक दिखावे में नहीं, बल्कि प्रेम, न्याय और दया के कार्यों में है।**