पवित्र बाइबल

तीमुथियुस 2: सभी के लिए प्रार्थना और शांति की शिक्षा (कैरेक्टर काउंट: 59)

**1 तीमुथियुस 2 पर आधारित बाइबल कथा: सभी के लिए प्रार्थना और शांति**

एक समय की बात है, जब प्रेरित पौलुस ने अपने युवा शिष्य तीमुथियुस को एक पत्र लिखा। वह पत्र केवल शब्दों का संग्रह नहीं था, बल्कि उसमें परमेश्वर की गहरी इच्छा छिपी थी—एक ऐसी इच्छा जो सभी मनुष्यों के उद्धार और शांति की कामना से भरी थी। पौलुस ने तीमुथियुस को स्मरण दिलाया कि मसीह की कलीसिया का कर्तव्य है कि वह सभी लोगों के लिए प्रार्थना करे, चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग या स्थिति के हों।

### **प्रार्थना का महत्व**

पौलुस ने लिखा, *”सबसे पहले मैं यह आज्ञा देता हूँ कि सब मनुष्यों के लिए बिनती, प्रार्थना, निवेदन और धन्यवाद किए जाएँ।”* उसने समझाया कि प्रार्थना केवल एक धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि परमेश्वर के सामने एक पवित्र कर्तव्य है। राजाओं और सभी उच्च अधिकारियों के लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि वे धर्म और न्याय के साथ शासन करें और मसीहियों को शांति से जीवन बिताने का अवसर मिले।

तीमुथियुस ने उन शब्दों को गहराई से सुना। उसने अपनी कलीसिया को इकट्ठा किया और उन्हें समझाया कि प्रार्थना के बिना मनुष्य का हृदय परमेश्वर से जुड़ नहीं सकता। उसने लोगों से कहा, *”जब हम प्रार्थना करते हैं, तो हम न केवल अपनी आवश्यकताओं को परमेश्वर के सामने रखते हैं, बल्कि उसकी इच्छा को अपने जीवन में पूरा होते देखने की लालसा भी व्यक्त करते हैं।”*

### **एक ही मध्यस्थ: यीशु मसीह**

पौलुस ने तीमुथियुस को यह भी सिखाया कि परमेश्वर और मनुष्य के बीच केवल एक ही मध्यस्थ है—यीशु मसीह, जिसने अपने आप को सबके छुटकारे के लिए बलिदान कर दिया। *”क्योंकि परमेश्वर एक ही है, और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात् मसीह यीशु जो मनुष्य है।”*

तीमुथियुस ने इस सत्य को अपने उपदेशों में बार-बार दोहराया। उसने लोगों को समझाया कि यीशु ही वह मार्ग है जो मनुष्य को परमेश्वर तक पहुँचाता है। कोई भी धर्मगुरु, कोई भी पुण्य कर्म, या कोई भी मानवीय प्रयास मनुष्य को बचा नहीं सकता—केवल यीशु का बलिदान ही सच्चा मोक्ष प्रदान करता है।

### **स्त्रियों की भूमिका और सज्जनता**

पौलुस ने तीमुथियुस को स्त्रियों के विषय में भी शिक्षा दी। उसने लिखा कि स्त्रियों को संयम और शालीनता के साथ रहना चाहिए। उन्हें बाहरी आडंबरों—जैसे बाल गूँथने, सोने-चाँदी के गहनों, या कीमती वस्त्रों—से अधिक महत्व आंतरिक सुन्दरता को देना चाहिए, जो पवित्रता और भले कामों से प्रकट होती है।

*”स्त्रियाँ संयम के साथ लज्जा और संयम से अपने आप को सुसज्जित करें; न कि बाल गूँथने, सोने, मोतियों, या बहुमूल्य वस्त्रों से, पर भले कामों से।”*

तीमुथियुस ने इस शिक्षा को अपनी कलीसिया में लागू किया। उसने स्त्रियों को प्रोत्साहित किया कि वे विश्वास और प्रेम में दृढ़ बनें, और शांति से शिक्षा ग्रहण करें। उसने उन्हें यह भी सिखाया कि आदम पहले बनाया गया, फिर हव्वा, और यह कि पाप संसार में हव्वा के भ्रमित होने के कारण आया, परन्तु स्त्रियाँ यदि विश्वास, प्रेम और पवित्रता में बनी रहें, तो वे उद्धार प्राप्त करेंगी।

### **शिक्षा का महत्व**

अंत में, पौलुस ने तीमुथियुस को याद दिलाया कि उसे सत्य की शिक्षा दृढ़ता से थामे रहना है। कलीसिया में शिक्षा का उद्देश्य लोगों को परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन जीने में मदद करना है, न कि बहस-विवाद में उलझाना।

इस प्रकार, तीमुथियुस ने पौलुस की शिक्षाओं को अपने जीवन और सेवकाई में उतारा। उसने लोगों को प्रार्थना करने, यीशु में विश्वास रखने, और पवित्र जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। और इस तरह, कलीसिया में शांति और एकता बनी रही, क्योंकि सभी ने परमेश्वर के वचन को अपने जीवन का आधार बनाया।

**समाप्त।**

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