**अब्राहम का बुलावा: एक विस्तृत कथा (उत्पत्ति 12)**
उर के महानगर में, जहाँ चंदन की सुगंध से हवा महक उठती थी और सूरज की रोशनी में सोने जैसी ईंटों की इमारतें चमकती थीं, वहाँ तेरह के पिता तेरह का परिवार रहता था। लेकिन उनके बेटे अब्राम के जीवन में एक दिन ऐसा आया जो सब कुछ बदल देने वाला था।
एक शांत सुबह, जब आकाश में सुनहरी लालिमा फैली हुई थी और हवा में प्रार्थनाओं की मधुर ध्वनि गूँज रही थी, अब्राम ने एक ऐसी आवाज़ सुनी जो उसके हृदय को छू गई। यह परमेश्वर की वाणी थी—गहरी, प्रेमपूर्ण, और अधिकार से भरी।
**”अब्राम, अपने देश, अपने कुटुम्ब और अपने पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा,”** परमेश्वर ने कहा।
अब्राम का हृदय धड़क उठा। यह आज्ञा साधारण नहीं थी। उसे अपना सुख-चैन, अपनी जड़ें छोड़नी थीं और एक अनजान मार्ग पर चलना था। लेकिन परमेश्वर के वचन में एक वादा भी छिपा था:
**”मैं तुझसे एक बड़ी जाति बनाऊँगा, और तुझे आशीष दूँगा, और तेरा नाम बड़ा करूँगा… और तेरे द्वारा पृथ्वी की सारी जातियाँ आशीष पाएँगी।”**
इन शब्दों ने अब्राम के मन में विश्वास की ज्योति जला दी। उसने अपनी पत्नी सारै, भतीजे लूत, और अपने सभी सेवकों को इकट्ठा किया। उन्होंने अपने ऊँटों और भेड़-बकरियों को लादा और उर की सुरक्षित दीवारों को पीछे छोड़ दिया।
### **हरान में ठहराव**
यात्रा लंबी और कठिन थी। रेगिस्तान की गर्म हवाएँ उनके चेहरों को झुलसा रही थीं, और रातें ठंडी होती थीं। अंततः वे हरान नामक स्थान पर पहुँचे, जहाँ अब्राम के पिता तेरह की मृत्यु हो गई। यहाँ परमेश्वर ने फिर अब्राम से बात की और उसे आगे बढ़ने का निर्देश दिया।
### **कनान की धरती पर पहुँचना**
अब्राम ने फिर यात्रा शुरू की। वह दक्षिण की ओर बढ़ता गया, जब तक कि वह कनान की पवित्र भूमि में नहीं पहुँच गया। यहाँ उसने शकेम नगर के पास मोरे के बड़े पेड़ के पास डेरा डाला। उस समय वह स्थान कनानियों के अधीन था, लेकिन परमेश्वर ने अब्राम को दर्शन दिया और कहा:
**”मैं यह भूमि तेरे वंश को दूँगा।”**
अब्राम ने वहाँ एक वेदी बनाई और परमेश्वर की स्तुति की। यह उसकी आराधना और आज्ञाकारिता का प्रतीक था।
### **अकाल और मिस्र की यात्रा**
कुछ समय बाद, उस देश में भयंकर अकाल पड़ा। भूमि सूख गई, और अन्न का अभाव हो गया। अब्राम ने अपने परिवार के लिए भोजन की तलाश में मिस्र की ओर प्रस्थान किया।
मिस्र की सीमा के पास, अब्राम ने सारै से कहा, **”तू सुन्दरी है। यदि मिस्री तुझे देखकर कहेंगे कि यह उसकी पत्नी है, तो वे मुझे मार डालेंगे और तुझे जीवित रखेंगे। इसलिए कहना कि तू मेरी बहन है।”**
ऐसा ही हुआ। जब वे मिस्र पहुँचे, तो फिरौन के दरबारियों ने सारै की सुंदरता की प्रशंसा की, और उसे फिरौन के महल में ले जाया गया। अब्राम के कारण फिरौन ने उसे भेंटें दीं—भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल, गदहे और सेवक।
लेकिन परमेश्वर ने फिरौन और उसके घराने को भयंकर विपत्तियों से घेर लिया। फिरौन ने समझ लिया कि सारै अब्राम की पत्नी है और उसने अब्राम को बुलवाकर कहा, **”तूने यह क्या किया? तूने मुझे यह क्यों नहीं बताया कि वह तेरी पत्नी है?”**
फिरौन ने उन्हें सब कुछ लौटा दिया और देश से विदा कर दिया। अब्राम, सारै और लूत सब कुछ लेकर कनान लौट आए।
### **परमेश्वर के वादे की पुनः पुष्टि**
अब्राम ने नेगेव से होते हुए बेतेल तक की यात्रा की, जहाँ उसने पहले वेदी बनाई थी। वहाँ उसने फिर परमेश्वर का नाम लिया। उसका विश्वास और गहरा हो गया, क्योंकि वह जानता था कि परमेश्वर उसके साथ है और उसके वंश को यह भूमि देगा।
इस प्रकार, अब्राम का जीवन एक नए उद्देश्य की ओर बढ़ा—वह आशीष का स्रोत बनने वाला था, जिसके द्वारा संसार की सभी जातियाँ धन्य होंगी।
**~ इति ~**
(यह कथा उत्पत्ति 12 के आधार पर विस्तार से लिखी गई है, जिसमें अब्राहम के बुलावे, उसकी यात्रा और विश्वास की परीक्षा का वर्णन किया गया है।)