पवित्र बाइबल

यूसुफ की चाल और बिन्यामीन की परीक्षा

**यूसुफ का प्याला और बिन्यामीन की परीक्षा**

(उत्पत्ति 44)

मिस्र के देश में यूसुफ, जो अब प्रधानमंत्री था, अपने भाइयों की परीक्षा ले रहा था। उसने अपने भाइयों को अनाज देकर कनान देश वापस भेज दिया था, परन्तु उसने बिन्यामीन को अपने पास रोक लिया था। उसके मन में एक गहरी योजना थी—वह जानना चाहता था कि क्या उसके भाइयों का हृदय बदल गया है, क्या वे अब भी ईर्ष्या और धोखे से भरे हुए हैं या फिर उनमें प्रेम और संयम आ गया है।

### **यूसुफ की चाल**

यूसुफ ने अपने सेवक को आज्ञा दी, “इन पुरुषों के अनाज के बोरों में जितना अनाज भर सकते हो भर दो, और हर एक का रुपया भी उसके बोरे के मुंह में रख देना। परन्तु जो कनानी दासी का पुत्र है, उसके बोरे में मेरा चाँदी का प्याला भी रख देना।” सेवक ने वैसा ही किया। भोर होते ही भाइयों ने अपने गधों पर अनाज के बोरे लादे और शहर से चल पड़े।

कुछ ही दूर जाने पर यूसुफ ने अपने सेवक से कहा, “उठो और उन पुरुषों का पीछा करो। जब तुम उन्हें पकड़ लो, तो कहना—’तुमने बुराई के बदले भलाई क्यों की? तुमने मेरे स्वामी का प्याला क्यों चुराया? यह वही प्याला है जिससे वह भविष्य देखता है। तुमने बहुत बुरा काम किया है!'”

### **भाइयों की घबराहट**

सेवक ने भाइयों को जल्दी से जाकर रोक लिया और यूसुफ के शब्दों को दोहराया। भाइयों के चेहरे पीले पड़ गए। वे बोले, “हमारे स्वामी ऐसी बात क्यों कहते हैं? हम तो ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते! अगर हम में से किसी के पास तुम्हारे स्वामी का प्याला मिला, तो वह मर जाए, और हम भी तुम्हारे दास बन जाएँ।”

सेवक ने कहा, “ठीक है, जैसा तुम कहते हो। जिसके पास प्याला मिलेगा, वही मेरा दास होगा, बाकी निर्दोष होंगे।”

हर एक ने अपना-अपना बोरा खोला। सेवक ने बड़े भाई से लेकर सबसे छोटे बिन्यामीन तक के बोरे की तलाशी ली। जब बिन्यामीन के बोरे की जाँच की गई, तो वहाँ से चाँदी का प्याला निकला!

### **दुःख और पश्चाताप**

भाइयों ने अपने कपड़े फाड़ डाले। वे सब दुःखी होकर शहर वापस लौटे। यहूदा अपने भाइयों के आगे-आगे चल रहा था। वह जानता था कि अगर बिन्यामीन वापस नहीं लौटा, तो उनके पिता याकूब का हृदय टूट जाएगा।

जब वे यूसुफ के सामने पहुँचे, तो यहूदा ने कहा, “हम क्या कहें, हमारे स्वामी? हम कैसे अपनी निर्दोषिता सिद्ध करें? परमेश्वर ने हमारे अधर्म को उजागर कर दिया है। अब हम सब आपके दास हैं।”

यूसुफ ने कहा, “नहीं, ऐसा नहीं होगा। जिसके पास प्याला मिला है, वही मेरा दास होगा। बाकी लोग शांति से अपने पिता के पास लौट जाओ।”

### **यहूदा की करुण याचना**

यहूदा आगे बढ़ा और यूसुफ से विनती करने लगा, “हे मेरे स्वामी, कृपया मुझे कुछ कहने दीजिए। हमारे पिता बहुत वृद्ध हैं, और यह लड़का उनके बुढ़ापे की आशा है। जब हमने कहा कि हम उसे आपके पास लाएँगे, तो हमारे पिता ने कहा था—’तुम जानते हो कि मेरी पत्नी राहेल ने मुझे केवल दो पुत्र दिए। एक तो मेरे पास से जा चुका, और अगर इसका भी कुछ हो गया, तो मैं शोक से मर जाऊँगा।’ अब, अगर यह लड़का मेरे साथ नहीं लौटा, तो हमारे पिता का प्राण निकल जाएगा। कृपया मुझे इस लड़के के बदले में अपना दास बना लीजिए। मैं यहाँ रहूँगा, परन्तु इसे अपने पिता के पास जाने दीजिए।”

यहूदा के शब्दों में पश्चाताप और प्रेम झलक रहा था। वह अपने भाई बिन्यामीन के लिए अपना सब कुछ त्यागने को तैयार था। यह वही यहूदा था जिसने कभी यूसुफ को गुलाम बेचने का सुझाव दिया था, परन्तु अब उसका हृदय बदल चुका था।

यूसुफ ने देखा कि उसके भाई अब स्वार्थी नहीं रहे। वे एक-दूसरे से प्रेम करते थे और अपने पिता की चिंता करते थे। उसका हृदय भर आया। अब वह और अधिक अपने आप को छिपाए नहीं रख सका…

(कहानी आगे उत्पत्ति 45 में जारी रहती है, जहाँ यूसुफ अपने भाइयों को अपनी पहचान बताता है।)

**सीख:**
1. **परमेश्वर की योजना** – यूसुफ के जीवन में परमेश्वर की एक बड़ी योजना थी। उसके भाइयों ने उसे बेचा, परन्तु परमेश्वर ने उसे मिस्र में ऊँचा उठाया ताकि वह अपने परिवार और अनेक लोगों की जान बचा सके।
2. **पश्चाताप और क्षमा** – यहूदा का हृदय परिवर्तन हुआ और उसने अपने भाई के लिए बलिदान देने की इच्छा दिखाई। यह दर्शाता है कि सच्चा पश्चाताप कार्यों से दिखाई देता है।
3. **भाईचारे का प्रेम** – यूसुफ ने अपने भाइयों को परखा, और अंत में उन्हें क्षमा किया। इसी तरह परमेश्वर भी हमारे हृदय को जाँचता है और सच्चे पश्चाताप पर हमें क्षमा करता है।

इस कहानी से हम सीखते हैं कि परमेश्वर हर परिस्थिति में कार्य करता है और बुराई को भी भलाई में बदल देता है।

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