**एस्तेर की कहानी: राजा की खोज और एक यहूदी कन्या का उदय**
राजा अहश्वेरोश के राज्य के उन दिनों में, जब शूशन नगर की धूमधाम और वैभव चरम पर थी, एक अद्भुत घटना घटी। राजा ने अपनी रानी वशती को अपमानित कर दिया था और उसे पद से हटा दिया था। समय बीतने के साथ, जब राजा का क्रोध शांत हुआ, तो उसके मन में अपनी रानी के बारे में पश्चाताप हुआ। उसके सेवकों और मंत्रियों ने सलाह दी, “महाराज, आपके लिए सुंदर कुंवारी कन्याओं को पूरे राज्य से खोजकर लाया जाए। उनमें से जो आपको सबसे अधिक प्रिय लगे, उसे आप वशती के स्थान पर रानी बना लें।”
यह बात राजा को पसंद आई, और उसने आदेश दिया कि सभी प्रांतों में दूत भेजे जाएँ और हर सुंदर कन्या को शूशन के राजभवन में लाया जाए। उन्हें सौंदर्य और सुगंधित तेलों से सज्जित किया जाए, ताकि राजा के सामने प्रस्तुत किया जा सके।
उसी समय, शूशन नगर में एक यहूदी व्यक्ति रहता था, जिसका नाम मोर्दकै था। वह बिन्यामीन के गोत्र से था और कई वर्ष पहले यरूशलेम से बंधुआई में लाया गया था। मोर्दकै ने अपने चचेरे भाई की पुत्री हदस्सा, जिसे एस्तेर भी कहा जाता था, को पाला था, क्योंकि उसके माता-पिता का देहांत हो चुका था। एस्तेर अत्यंत सुंदर और आकर्षक थी, और मोर्दकै ने उसे अपनी पुत्री के समान प्यार किया।
जब राजा का आदेश पूरे राज्य में फैला, तो अनेक कन्याओं को राजभवन में लाया गया। एस्तेर भी उनमें से एक थी। उसे हेगै नामक राजभवन के रखवाले के हवाले कर दिया गया। हेगै ने एस्तेर को देखते ही प्रसन्न होकर उसे विशेष स्नेह दिया। उसने उसे सुंदर वस्त्र, उत्तम भोजन और सुगंधित तेल दिए। साथ ही, उसने सात विशेष सेविकाएँ नियुक्त कीं, जो एस्तेर की देखभाल करती थीं।
मोर्दकै ने एस्तेर को आदेश दिया था कि वह अपने यहूदी होने का वर्णन किसी से न करे, क्योंकि उस समय यहूदियों के प्रति मन में छिपी द्वेष की भावना थी। एस्तेर ने मोर्दकै की बात मानी और चुपचाप राजभवन के नियमों का पालन करने लगी।
जब प्रत्येक कन्या की बारी आती, तो वह राजा के पास जाती, और उसे रात भर रहकर सुबह दूसरे हरम में भेज दिया जाता, जहाँ शाशगज नामक रखवाला उनकी देखभाल करता। परन्तु जब एस्तेर की बारी आई, तो उसने हेगै द्वारा दिए गए सुझावों के अलावा कुछ भी अतिरिक्त नहीं माँगा। वह सादगी और अनुग्रह से राजा के सामने प्रस्तुत हुई।
राजा अहश्वेरोश ने जब एस्तेर को देखा, तो वह उसके सौंदर्य और विनम्रता से मोहित हो गया। उसने उसे अन्य सभी कन्याओं से अधिक प्रेम किया और उसके सिर पर राजमुकुट धरकर उसे वशती के स्थान पर रानी बना दिया। राजा ने इस अवसर पर एक भव्य भोज का आयोजन किया, जिसमें सभी प्रमुख अधिकारियों और सेवकों को आमंत्रित किया गया। उसने प्रांतों को करों में छूट भी दी और उदारता से उपहार बाँटे।
इस बीच, मोर्दकै प्रतिदिन हरम के आँगन में आकर एस्तेर के कुशलक्षेम के बारे में पूछता रहता। एक दिन, जब वह वहाँ बैठा था, तो उसने दो राजकर्मचारियों, बिगतान और तेरेश को गुस्से में बातें करते सुना। वे राजा अहश्वेरोश को मारने की साजिश रच रहे थे। मोर्दकै ने तुरंत एस्तेर को इसकी सूचना दी, और एस्तेर ने राजा के नाम से यह बात बताई। जब इसकी जाँच की गई, तो साजिश सच पाई गई, और दोनों दुष्टों को फाँसी पर लटका दिया गया। यह घटना राजा के दस्तावेज़ों में दर्ज कर ली गई।
इस प्रकार, एस्तेर ने न केवल राजा का हृदय जीता, बल्कि परमेश्वर की उस योजना का भी हिस्सा बनी, जो भविष्य में यहूदियों के उद्धार के लिए बनाई गई थी। मोर्दकै का धैर्य और एस्तेर की विनम्रता ने उन्हें ऊँचे स्थान पर पहुँचाया, जहाँ से वे परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने वाले थे।
और इस तरह, एक साधारण यहूदी कन्या, जो अनाथ थी, वह शूशन की रानी बन गई—एक ऐसा पद जो उसे परमेश्वर की महान योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार कर रहा था।