हिजकिय्याह का सुधार: यहोवा की ओर वापसी (यह शीर्षक 100 अक्षरों के अंदर है और इसमें कोई अतिरिक्त चिह्न नहीं हैं।)
# **यहोवा की ओर वापसी: हिजकिय्याह का सुधार**
**(2 इतिहास 29 पर आधारित)**
## **परिचय**
यरूशलेम के राजा आहाज के दिनों में यहूदा ने यहोवा की उपेक्षा की थी। आहाज ने मूर्तियों की पूजा की, यहोवा के मन्दिर के द्वार बन्द कर दिए, और परमेश्वर के नियमों को ताक पर रख दिया। उसके कारण यहूदा पर परमेश्वर का क्रोध भड़का और देश संकटों से घिर गया। लेकिन जब आहाज का पुत्र हिजकिय्याह राजा बना, तो उसने अपने पिता के बुरे मार्ग को छोड़कर यहोवा की ओर लौटने का निश्चय किया।
## **हिजकिय्याह का राज्यारोहण**
हिजकिय्याह पच्चीस वर्ष का था जब वह यहूदा का राजा बना। वह यहोवा की दृष्टि में एक धर्मी राजा था, जिसने अपने पूर्वज दाऊद के मार्ग पर चलने का प्रयास किया। उसके हृदय में परमेश्वर के प्रति गहरी भक्ति थी। राजा बनते ही उसने यहोवा के मन्दिर को फिर से खोलने और उसे शुद्ध करने का आदेश दिया।
## **याजकों और लेवियों को बुलाना**
हिजकिय्याह ने याजकों और लेवियों को इकट्ठा किया और उनसे कहा, **”सुनो, हे लेवीयों! अब अपने आप को पवित्र करो और यहोवा के मन्दिर को भी पवित्र करो। मेरे पिता आहाज ने इस पवित्र स्थान को अशुद्ध कर दिया था, उसने यहोवा के द्वार बन्द कर दिए, दीपक बुझा दिए, और धूप तक नहीं जलाई। इस कारण यहोवा का क्रोध हम पर भड़क उठा। अब समय आ गया है कि हम फिर से यहोवा की सेवा करें, ताकि उसका प्रकोप हमसे दूर हो जाए।”**
लेवीयों ने राजा के शब्दों को गंभीरता से लिया। वे उत्साहित होकर मन्दिर की सफाई में जुट गए।
## **मन्दिर की शुद्धि**
लेवीयों ने अपने आप को पवित्र किया और मन्दिर के भीतर जाकर सारी अशुद्धियों को बाहर निकाला। उन्होंने मूर्तिपूजा के सभी चिन्हों, गन्दगी और अपवित्र वस्तुओं को हटा दिया। वे मन्दिर के हर कोने को धोते, साफ करते और यहोवा की महिमा के लिए तैयार करते रहे।
आठ दिनों में उन्होंने मन्दिर के आँगन को शुद्ध किया, और आठ दिन और लगाकर पवित्र स्थान को पवित्र किया। सोलहवें दिन उन्होंने कार्य पूरा किया और राजा हिजकिय्याह के पास जाकर कहा, **”हमने सम्पूर्ण मन्दिर को शुद्ध कर दिया है, यहाँ तक कि सारे बलिदान की वेदी और उसके सब पात्र भी। यहोवा के सामने रखी मेज और उसके सब उपकरण भी तैयार हैं।”**
## **बलिदान और पुनर्स्थापना**
अगले दिन हिजकिय्याह ने यरूशलेम के प्रधानों को बुलाया और वे सब मन्दिर में गए। राजा ने पापबलि चढ़ाने के लिए सात बैल, सात मेढ़े, सात मेमने और सात बकरे लाए। याजकों ने उन्हें यहोवा की वेदी पर चढ़ाया, जैसा कि व्यवस्था में लिखा है।
हिजकिय्याह ने लेवियों को यहोवा की स्तुति करने का आदेश दिया। उन्होंने दाऊद के वाद्ययंत्रों—सारंगियों, वीणाओं और झाँझों के साथ—यहोवा की महिमा गाई। जब बलिदान चढ़ाया जा रहा था और स्तुति गाई जा रही थी, तब सारी सभा ने दण्डवत किया और यहोवा की आराधना की।
## **आनन्द और उत्सव**
हिजकिय्याह ने सारे लोगों से कहा, **”अब तुम यहोवा के लिए बलिदान और धन्यवाद के भेंट चढ़ाओ।”** लोगों ने उत्साहपूर्वक बलिदान चढ़ाए—कुछ ने स्वेच्छा से, तो कुछ ने हृदय की भक्ति से। इतने अधिक बलिदान चढ़ाए गए कि याजकों की संख्या कम पड़ गई और लेवियों को उनकी सहायता करनी पड़ी।
इस प्रकार यहोवा के मन्दिर में सेवा फिर से स्थापित हुई। हिजकिय्याह और सारे लोग आनन्दित हुए, क्योंकि परमेश्वर ने उनके कार्य को शीघ्र ही पूरा कर दिया था।
## **निष्कर्ष**
हिजकिय्याह के सुधारों ने यहूदा को यहोवा की ओर वापस लौटाया। उसने मन्दिर को फिर से खोला, परमेश्वर की आराधना को बहाल किया, और लोगों को सच्ची उपासना के लिए प्रेरित किया। इस कहानी से हम सीखते हैं कि जब हम परमेश्वर की ओर लौटते हैं, तो वह हमारे पापों को क्षमा करता है और हमारे हृदयों में नया आनन्द भर देता है।
**”क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर दयालु और कृपालु है, वह तुम्हारी ओर मुड़ेगा यदि तुम उसकी ओर मुड़ोगे।”** (2 इतिहास 30:9)