पवित्र बाइबल

रकाबी लोगों की वफादारी और परमेश्वर की शिक्षा

**यिर्मयाह 35: रकाबी लोगों की वफादारी**

यहूदा के राजा यहोयाकीम के दिनों में, जब बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम को घेर लिया था, तब परमेश्वर का वचन यिर्मयाह नबी के पास आया। यहोवा ने उससे कहा, “यिर्मयाह, रकाबी लोगों के पास जा और उन्हें मेरे भवन में ले आ। फिर उनके सामने दाखरस के प्याले रखकर उन्हें पीने को कह।”

यिर्मयाह ने ठीक वैसा ही किया। वह यहोनादाब के वंशज रकाबी लोगों के पास गया, जो यरूशलेम के फाटकों के पास रहते थे। उसने उन्हें यहोवा के मंदिर में ले जाकर एक कक्ष में बैठाया, जहाँ परमेश्वर के भक्त लोग अक्सर इकट्ठा होते थे। वहाँ उसने उनके सामने मदिरा से भरे प्याले रख दिए और कहा, “इसे पी लो।”

किंतु रकाबी लोगों ने साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “हम दाखरस नहीं पीते। हमारे पूर्वज यहोनादाब ने हमें आज्ञा दी थी कि हम और हमारी सभी पीढ़ियाँ कभी भी दाखरस न पिएँ। हम न तो दाखरस पीते हैं, न ही अपने लिए अंगूर की बारी लगाते हैं, और न ही अनाज बोते हैं। हम सदा तंबूओं में रहते हैं और अपने पूर्वजों की सभी आज्ञाओं का पालन करते हैं।”

यिर्मयाह ने उनकी बात सुनी, तब यहोवा ने उससे फिर कहा, “सारे यहूदा और यरूशलेम के निवासियों से कह कि तुम लोगों ने मेरी बात नहीं मानी। देखो, रकाबी लोग अपने पूर्वज की आज्ञा का पालन करते हैं, जबकि मैंने तुम्हें बार-बार समझाया, किंतु तुमने मेरी नहीं सुनी। मैंने अपने दास नबियों को भेजकर तुम्हें चेतावनी दी कि बुराई छोड़कर मेरी आज्ञाओं का पालन करो, किंतु तुम नहीं माने। इसलिए अब मैं यहूदा और यरूशलेम पर वह सब विपत्ति लाऊँगा, जिसकी मैंने चेतावनी दी थी।”

फिर यिर्मयाह ने रकाबी लोगों से कहा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यह कहता है: ‘क्योंकि तुमने अपने पूर्वज यहोनादाब की आज्ञा मानी और उसकी सभी शिक्षाओं का पालन किया, इसलिए यहोनादाब के वंश में कभी कोई व्यक्ति नहीं मरेगा जो मेरी सेवा में खड़ा न हो।'”

इस प्रकार, परमेश्वर ने रकाबी लोगों की वफादारी को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया, ताकि यहूदा के लोग समझ सकें कि उन्होंने कैसे अपने प्रभु की आज्ञाओं को नज़रअंदाज़ किया था। यिर्मयाह के माध्यम से परमेश्वर ने दिखाया कि जो लोग सांसारिक आज्ञाओं का पालन कर सकते हैं, वे उसकी आज्ञाओं को क्यों नहीं मानते? इस तरह, यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्यता और आज्ञाकारिता ही सच्ची भक्ति है।

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