होशे 14: प्रभु की करुणा और इस्राएल की वापसी की कहानी (Note: The title is within 100 characters, symbols like asterisks and quotes are removed, and it captures the essence of the story.)
# होशे 14: प्रभु की करुणा और इस्राएल की वापसी
## अध्याय 1: पतन और पश्चाताप
उत्तरी इस्राएल के पहाड़ों और घाटियों में एक गहरा अंधकार छाया हुआ था। प्रभु के भविष्यवक्ता होशे ने देखा कि कैसे लोगों ने असीरिया के देवताओं की पूजा करके अपने सच्चे परमेश्वर को त्याग दिया था। मूर्तियों के सामने झुकते हुए लोगों के हृदय कठोर हो चुके थे, और उनकी आत्माएँ पाप के बोझ तले दबी हुई थीं।
एक दिन, होशे ने प्रभु का वचन सुना: *”हे इस्राएल, तू अपने परमेश्वर के विरुद्ध पाप करके गिर गया है। तूने असीरिया के राजा से सहायता माँगी, मूर्तियों के सामने घुटने टेके, परन्तु मैं तुझे बचाने को तैयार हूँ।”*
होशे ने लोगों को संबोधित किया: *”प्रभु यह कहता है—’हे इस्राएल, अपने पापों को पहचान और मेरे पास लौट आ। मुझसे कहो, ‘हमारे सारे पापों को क्षमा कर, और हमें ग्रहण कर। हम तेरे सिवा किसी और की आशा नहीं रखेंगे, क्योंकि अनाथ का पिता तू ही है।'”*
## अध्याय 2: प्रभु का प्रेमभरा आमंत्रण
प्रभु की आवाज़ में कोप नहीं, बल्कि करुणा थी। वह चिल्ला रहा था जैसे कोई पिता अपने भटके हुए बच्चे को बुलाता है: *”मैं उनका विश्वासघात दूर कर दूँगा, उनसे पूरी तरह प्रेम करूँगा, क्योंकि मेरा क्रोध उनसे दूर हो गया है। मैं इस्राएल के लिए ओस की तरह हूँ; वह कमल के फूल की तरह खिल उठेगा और लेबनान की वृक्षों की तरह जड़ें जमाएगा।”*
लोगों के हृदय टूटने लगे। कुछ ने अपनी मूर्तियाँ फेंक दीं, कुछ ने प्रार्थना में सिर झुकाया। एक बूढ़ा व्यक्ति, जिसने सालों तक बाल देवता की पूजा की थी, रोते हुए बोला: *”हमने मूर्खता की है! प्रभु ही हमारा उद्धारकर्ता है!”*
## अध्याय 3: नवीकरण का वादा
प्रभु ने होशे से कहा: *”मैं उन्हें फिर से अपने पास लाऊँगा। मैं उनके हृदय को नया कर दूँगा, और वे अब और दुष्टता नहीं करेंगे। मैं उनकी सारी बंधुआई तोड़ दूँगा और उन्हें स्वतंत्र कर दूँगा।”*
धीरे-धीरे, इस्राएल में परिवर्तन आने लगा। जहाँ कभी मूर्तिपूजा के उत्सव होते थे, वहाँ अब प्रभु के नाम की स्तुतिगान गूँजने लगी। खेतों में अनाज फलने-फूलने लगा, और लोगों के चेहरों पर शांति छा गई।
होशे ने प्रभु के वचनों को लिखा: *”जो समझदार हैं, वे इन बातों को जान लें। जो धर्मी हैं, वे इन्हें समझें। क्योंकि प्रभु के मार्ग सीधे हैं, और धर्मी लोग उन पर चलेंगे, परन्तु अपराधी उनमें ठोकर खाएँगे।”*
## अध्याय 4: अनुग्रह की विजय
समय बीतता गया, और इस्राएल ने देखा कि प्रभु का वादा सच हुआ। उनकी भूमि फिर से हरी-भरी हो गई, उनके शत्रु शांत हो गए। लोगों ने स्वीकार किया: *”प्रभु ही हमारा परमेश्वर है, और उसके सिवा कोई उद्धारकर्ता नहीं।”*
होशे ने अंत में यह घोषणा की: *”प्रभु की बुद्धि अद्भुत है, उसकी योजनाएँ महान हैं। जो उसकी शरण लेते हैं, वे कभी लज्जित नहीं होंगे!”*
और इस्राएल ने फिर से प्रभु की ओर देखा, उसकी करुणा में आश्रय पाया, और उसकी महिमा गाने लगा।
**॥ शुभम् ॥**