**भजन संहिता 123 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “प्रभु की दया की प्रतीक्षा”**
यरूशलेम के पास एक छोटे से गाँव में एक वृद्ध व्यक्ति रहता था, जिसका नाम एलीआकीम था। वह अपने परिवार के साथ एक साधारण जीवन जीता था, परंतु उसका हृदय हमेशा प्रभु के प्रति समर्पित रहता। उसके पास धन-दौलत तो नहीं थी, लेकिन उसकी आँखें सदैव स्वर्ग की ओर उठी रहती थीं, जैसे किसी सेवक की आँखें अपने स्वामी के हाथों की ओर लगी रहती हैं।
एक बार गाँव में भयंकर अकाल पड़ा। बारिश न होने के कारण फसलें नष्ट हो गईं, और लोग भूख से व्याकुल होने लगे। एलीआकीम का परिवार भी दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा था। उसकी पत्नी, शलोमित, ने एक दिन चिंतित होकर पूछा, “हमारे पास खाने को कुछ नहीं बचा। हम अब क्या करेंगे?”
एलीआकीम ने शांति से उत्तर दिया, “हमारी आँखें प्रभु पर लगी हैं, जब तक वह हम पर दया न करे।” वह रोज़ सुबह उठकर पहाड़ी पर जाता और वहाँ बैठकर भजन संहिता 123 को दोहराता:
*”हे स्वर्ग में विराजमान प्रभु, मैं तेरी ओर आँखें उठाता हूँ। जैसे दास की आँखें अपने स्वामी के हाथों पर लगी रहती हैं, और दासी की आँखें अपनी मालकिन के हाथों पर, वैसे ही हमारी आँखें हमारे परमेश्वर पर लगी रहती हैं, जब तक वह हम पर दया न करे।”*
उसका विश्वास अटल था, लेकिन गाँव के कुछ लोग उसकी बातों को मज़ाक समझते थे। एक दिन, उसका पड़ोसी, रहूबीन, जो धनी था, ने उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “एलीआकीम, तुम हर दिन आकाश की ओर देखते हो, परंतु आकाश से तो कुछ गिरता नहीं! क्या तुम्हारा परमेश्वर सुनता भी है?”
एलीआकीम ने धैर्य से उत्तर दिया, “प्रभु का समय सर्वोत्तम है। वह हमारी पुकार को अनसुना नहीं करेगा।”
कुछ दिनों बाद, गाँव में एक अजनबी आया। वह एक व्यापारी था जो दूर देश से आया था और उसके कारवाँ में अनाज और फलों से भरे बहुत से बोरे थे। वह एलीआकीम के घर के सामने से गुज़रा और उसकी दयालु आँखों ने उसे रोक लिया। उसने पूछा, “क्या तुम्हें मदद की आवश्यकता है?”
एलीआकीम ने विनम्रता से कहा, “हाँ, प्रभु ने तुम्हें हमारी सहायता के लिए भेजा है।”
व्यापारी ने न केवल उसके परिवार को भोजन दिया, बल्कि पूरे गाँव में अनाज बाँट दिया। लोग आश्चर्यचकित थे कि कैसे एलीआकीम का विश्वास सच हो गया। रहूबीन ने लज्जित होकर उससे क्षमा माँगी।
एलीआकीम ने गाँव वालों को समझाया, “प्रभु की दया उन पर बरसती है जो उसकी ओर आँखें उठाकर प्रतीक्षा करते हैं। हमें धैर्य रखना चाहिए, क्योंकि उसका समय सही होता है।”
उस दिन के बाद, गाँव के लोगों ने भी प्रभु पर भरोसा रखना सीखा। वे समझ गए कि जैसे एक सेवक अपने स्वामी के हाथों की ओर देखता है, वैसे ही उन्हें भी परमेश्वर की दया की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
**अंत**
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि प्रभु उनकी सुनता है जो उस पर पूर्ण विश्वास रखते हैं। भजन संहिता 123 हमें याद दिलाता है कि हमारी आँखें सदैव परमेश्वर की ओर उठी रहनी चाहिए, क्योंकि वही हमारा सहारा और आशा है।