पवित्र बाइबल

धन नहीं परमेश्वर से मिली सच्ची शांति (Note: The title is 49 characters long, within the 100-character limit, and removes symbols/quotes as requested.)

**एक अर्थपूर्ण कहानी: व्यर्थता के बीच ईश्वर की खोज**

एक समय की बात है, यरूशलेम के पास एक धनी व्यक्ति रहता था, जिसका नाम मल्कीयाह था। वह बहुत सम्पन्न था—उसके पास सोने-चाँदी के भंडार, विशाल खेत, और सेवकों की एक बड़ी संख्या थी। राजा सुलैमान के समय में उसकी गिनती सबसे धनवान लोगों में होती थी। परन्तु मल्कीयाह के हृदय में एक गहरी पीड़ा थी। उसके पास सब कुछ था, फिर भी वह संतुष्ट नहीं था।

एकलेसियास्टेस 6 के वचन उसके जीवन पर सटीक बैठते थे: *”मनुष्य के पास धन, सम्पत्ति और प्रतिष्ठा हो, और उसका मन उन सब चीज़ों से तृप्त भी हो, परन्तु यदि ईश्वर उसे उनका आनन्द लेने की सामर्थ्य न दे, तो सब कुछ व्यर्थ है।”*

एक दिन, मल्कीयाह अपने बाग़ में टहल रहा था। फलों से लदे पेड़, सुन्दर फूल, और झरने की मधुर ध्वनि—सब कुछ उसके पास था, पर उसका मन खालीपन से भरा था। तभी उसकी नज़र एक वृद्ध संत पर पड़ी, जो नगर से गुज़र रहा था। संत का नाम एलीमेलेक था, और वह परमेश्वर के वचन का उपदेशक था।

मल्कीयाह ने उसे अपने घर आमंत्रित किया और अपनी व्यथा सुनाई: *”मेरे पास सब कुछ है, फिर भी मैं खुश नहीं हूँ। मेरे बच्चे मेरी उपेक्षा करते हैं, मेरे मित्र केवल मेरे धन के लिए मेरे पास आते हैं। मैं जीवन का अर्थ खो चुका हूँ।”*

एलीमेलेक ने धीरे से कहा, *”पुत्र, क्या तुमने कभी सोचा है कि यह सब धन और सम्पत्ति किसने तुम्हें दी? परमेश्वर ने तुम्हें आशीष दी है, परन्तु तुम उसके साथ सम्बंध बनाना भूल गए। जब तक तुम उसकी उपस्थिति में जीवन नहीं जीओगे, सब कुछ व्यर्थ है।”*

मल्कीयाह ने पूछा, *”तो मैं क्या करूँ?”*

संत ने उत्तर दिया, *”सबसे पहले, परमेश्वर के सामने नम्र हो। उसे धन्यवाद दो कि उसने तुम्हें इतना कुछ दिया है। फिर, उन लोगों की सहायता करो जो वास्तव में ज़रूरतमंद हैं। धन का उपयोग दूसरों के भले के लिए करो, न कि केवल अपने सुख के लिए।”*

मल्कीयाह ने संत की बात मानी। उसने गरीबों को अनाज बाँटना शुरू किया, अनाथों की सहायता की, और परमेश्वर से प्रार्थना करने लगा। धीरे-धीरे, उसका हृदय परिवर्तित होने लगा। उसे वह शांति मिली जो उसके पास सारा धन होने पर भी नहीं थी।

एक दिन, जब वह अपने खेतों में घूम रहा था, तो उसने देखा कि एक गरीब किसान अपने परिवार के साथ प्रार्थना कर रहा है। उनके पास केवल थोड़ी सी रोटी थी, परन्तु वे खुश थे। मल्कीयाह ने महसूस किया कि सच्चा आनन्द धन में नहीं, बल्कि परमेश्वर के साथ सम्बंध में है।

उस दिन से, मल्कीयाह ने अपना जीवन बदल दिया। उसने अपने धन को दूसरों की भलाई के लिए उपयोग किया और परमेश्वर की सेवा में लग गया। उसकी कहानी यरूशलेम में फैल गई, और लोगों ने सीखा कि *”जीवन का वास्तविक अर्थ परमेश्वर को जानने और उसकी इच्छा में चलने में है।”*

**सीख:**
एकलेसियास्टेस 6 हमें याद दिलाता है कि बिना परमेश्वर के, सारा धन और सुख व्यर्थ है। सच्ची संतुष्टि उसके साथ चलने में है, क्योंकि वही हमारे जीवन को अर्थ देता है।

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *