**भजन संहिता 27 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “प्रभु मेरा प्रकाश और मेरी रक्षा”**
एक समय की बात है, यरूशलेम के पास एक छोटे से गाँव में दाऊद नाम का एक युवक रहता था। वह अपने माता-पिता के साथ एक साधारण जीवन जीता था, परन्तु उसके हृदय में परमेश्वर के प्रति गहरी भक्ति थी। दाऊद प्रतिदिन सुबह उठकर परमेश्वर की स्तुति करता और उसके वचनों पर मनन करता। उसका विश्वास अटल था, क्योंकि वह जानता था कि परमेश्वर ही उसकी शक्ति और शरणस्थान है।
एक दिन, गाँव के आसपास के क्षेत्र में एक भयानक युद्ध छिड़ गया। शत्रु सेना ने गाँवों पर हमला करना शुरू कर दिया, और लोगों में भय फैल गया। कई लोग भागने लगे, परन्तु दाऊद ने अपने मन में शांति बनाए रखी। वह भजन संहिता 27 के वचनों को दोहराता रहा: **”यहोवा मेरा प्रकाश और मेरा उद्धार है, मैं किस से डरूँ? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ है, मैं किसका भय खाऊँ?”**
जब शत्रु सेना गाँव के निकट पहुँची, तो दाऊद के मित्रों ने उसे भागने के लिए कहा। परन्तु दाऊद ने उत्तर दिया, **”मैं भागूँगा नहीं, क्योंकि मेरा परमेश्वर मेरे साथ है। यदि मेरे शत्रु मेरे विरुद्ध युद्ध करने आएँ, तो भी मैं विश्वास रखूँगा कि परमेश्वर मुझे सुरक्षित रखेगा।”**
उस रात, दाऊद ने प्रार्थना की और परमेश्वर से विनती करते हुए कहा, **”हे यहोवा, मैं तेरे मन्दिर में रहकर तेरी सुन्दरता को देखना चाहता हूँ। मुझे अपने सत्य मार्ग पर चलने दो और मेरी रक्षा करो।”**
अगले दिन, एक अद्भुत घटना घटी। शत्रु सेना अचानक आपस में ही लड़ने लगी। भ्रम और अंधकार में उलझकर वे एक-दूसरे को ही हानि पहुँचाने लगे। गाँव वालों ने देखा कि बिना किसी युद्ध के ही शत्रु भाग खड़े हुए। दाऊद ने आकाश की ओर देखकर परमेश्वर का धन्यवाद दिया, क्योंकि वह जानता था कि यह परमेश्वर की ही करूणा थी जिसने उनकी रक्षा की।
कुछ समय बाद, दाऊद के विश्वास की परीक्षा फिर हुई। कुछ दुष्ट लोगों ने उसके विरुद्ध झूठे आरोप लगाए और उसे मारने की योजना बनाई। वे उसके पीछे पड़ गए और उसे धोखा देने का प्रयास किया। परन्तु दाऊद ने फिर से भजन 27 के वचनों को स्मरण किया: **”जब दुष्ट मेरे विरुद्ध आकर मुझे खाने के लिए टूट पड़े, तब भी मैं निडर रहूँगा।”**
एक दिन, जब वे दाऊद को पकड़ने आए, तो अचानक राजा के सैनिक वहाँ आ पहुँचे। उन दुष्टों के काले कारनामों का पता चल चुका था, और उन्हें दण्डित किया गया। दाऊद एक बार फिर बच गया। उसने महसूस किया कि परमेश्वर सचमुच उसके साथ है और उसकी प्रार्थनाएँ सुनता है।
अंत में, दाऊद ने सारे गाँव को इकट्ठा किया और उनसे कहा, **”हे लोगो, परमेश्वर पर भरोसा रखो। वही हमारा प्रकाश और रक्षक है। यदि हमारे माता-पिता भी हमें छोड़ दें, तो भी यहोवा हमें ग्रहण करेगा। धैर्य रखो और उसकी बाट जोहो, क्योंकि वह सच्चा और विश्वासयोग्य है।”**
इस प्रकार, दाऊद का जीवन परमेश्वर की महिमा का प्रमाण बन गया। उसने सिखाया कि जो कोई भी यहोवा पर भरोसा रखता है, वह कभी निराश नहीं होगा, क्योंकि **”यहोवा अच्छा है, और उसकी करूणा अनन्तकाल तक रहती है।”**
**समाप्त।**