**यिर्मयाह 16: एक विस्तृत कथा**
उस समय यहोवा का वचन यिर्मयाह के पास पहुँचा। यहूदा के पापों के कारण परमेश्वर का क्रोध भड़क उठा था, और अब वह उन्हें दण्ड देने वाला था। यिर्मयाह को एक अजीब आज्ञा मिली: “तू इस देश में न तो विवाह करना और न ही पुत्र-पुत्रियों को जन्म देना।” यह आज्ञा सुनकर यिर्मयाह के मन में प्रश्न उठे, परन्तु उसने परमेश्वर की इच्छा को समझा। यह एक चेतावनी थी कि आने वाले दिनों में यहूदा के लोगों के बच्चे भूख, महामारी और तलवार से मर जाएँगे।
यिर्मयाह ने देखा कि यरूशलेम की गलियों में लोग मूर्तियों के सामने झुक रहे थे। उनके हाथों में अशुद्ध बलिदान थे, और उनके होंठों पर झूठी प्रार्थनाएँ थीं। परमेश्वर ने उससे कहा, “मैं तुम्हारे पूर्वजों को इस देश से निकाल लाया था, परन्तु तुम ने मेरी आज्ञाओं को तोड़ दिया है। इसलिए मैं तुम्हें इस देश से निकाल दूँगा और तुम्हें ऐसी जगह ले जाऊँगा जहाँ तुम न तो मुझे जानोगे और न ही मेरी सेवा करोगे।”
एक दिन, यिर्मयाह शहर के बाहर एक शोक सभा में गया। वहाँ लोग मृतकों के लिए विलाप कर रहे थे, परन्तु परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी, “तू उनके साथ न बैठना, न उनके लिए रोना और न ही उन्हें सांत्वना देना।” यिर्मयाह ने समझा कि परमेश्वर का न्याय इतना कठोर होगा कि लोगों को दफनाने वाला भी नहीं बचेगा। मृतकों का शव खेतों में पड़ा रहेगा, और कोई उन्हें दफनाने नहीं आएगा।
फिर यिर्मयाह ने एक विवाह भोज में जाने का विचार किया, परन्तु परमेश्वर ने उसे रोक दिया। “इस देश में न तो विवाह के गीत सुनाई देंगे और न ही आनन्द की आवाज़।” यहूदा के लोगों ने परमेश्वर को छोड़कर अन्य देवताओं की उपासना की थी, इसलिए उनका आनन्द शोक में बदल जाएगा।
यिर्मयाह के हृदय में दुःख था, परन्तु उसने परमेश्वर की इच्छा को स्वीकार किया। लोगों ने उससे पूछा, “हमारे विरुद्ध यहोवा ने क्यों ऐसा निर्णय लिया?” यिर्मयाह ने उत्तर दिया, “तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे छोड़ दिया और झूठे देवताओं के पीछे चले गए। तुमने उनसे भी बुरे काम किए हैं। इसलिए परमेश्वर तुम्हें इस देश से निकालेगा, और तुम परदेश में दास बनोगे।”
परन्तु परमेश्वर की दया अन्त तक बनी रहती है। उसने यिर्मयाह के द्वारा एक आशा की किरण भी दिखाई: “देख, वे दिन आते हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के बंधुओं को फिर से इकट्ठा करूँगा और उन्हें उनकी भूमि पर ले आऊँगा।” यद्यपि अब दण्ड का समय था, परन्तु परमेश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा को नहीं भुलाया था।
यिर्मयाह ने लोगों को चेतावनी दी, परन्तु उन्होंने उसकी बात नहीं सुनी। वे अपने पापों में डटे रहे, और अन्त में बाबुल की सेना ने यरूशलेम को घेर लिया। शहर में भुखमरी फैली, लोग मरने लगे, और अन्ततः मन्दिर नष्ट हो गया। यिर्मयाह का हृदय टूट गया, परन्तु वह जानता था कि परमेश्वर का वचन सत्य है।
इस कथा से हम सीखते हैं कि पाप का परिणाम दुःखदायी होता है, परन्तु परमेश्वर की दया और प्रतिज्ञाएँ सदैव बनी रहती हैं। जो उसकी आज्ञा मानते हैं, वे अन्त में उसकी महिमा देखेंगे।