**ईश्वर का विश्वासयोग्य सेवक**
यहूदा के इतिहास के एक अंधकारमय समय में, जब बाबुल के अत्याचारों ने यरूशलेम को तहस-नहस कर दिया था और परमेश्वर के लोगों को बंधुआई में धकेल दिया गया था, तब भविष्यद्वक्ता यशायाह ने एक ऐसा संदेश सुनाया जो न केवल उस समय के लोगों के लिए सांत्वना था, बल्कि आने वाले मसीह की एक झलक भी दिखाता था। यशायाह 50 के वचनों में परमेश्वर ने अपने सेवक के द्वारा एक गहरी और मार्मिक कहानी प्रकट की।
### **परमेश्वर का प्रश्न: क्या तुमने मुझे त्याग दिया?**
यशायाह ने लिखा, *”यहोवा यों कहता है: ‘जहाँ तुम्हारी माता की पत्रविच्छेदी की लिखावट है, जिससे मैंने उसे तुम्हारे विषय में त्याग दिया? या किस ऋणी को मैंने तुम्हें बेच दिया? देखो, तुम अपने ही अधर्म के कारण बेचे गए, और तुम्हारी माता के अपराधों के कारण तुम्हें त्याग दिया गया!'”* (यशायाह 50:1)
यहूदा की बंधुआई उनके अपने पापों का परिणाम थी। परमेश्वर ने उन्हें नहीं छोड़ा था, बल्कि उनके विद्रोह ने उन्हें दूर कर दिया था। फिर भी, उसी अध्याय में परमेश्वर ने एक ऐसे सेवक का वर्णन किया जो उनकी जगह दुःख उठाएगा और उन्हें छुड़ाएगा।
### **विश्वासयोग्य सेवक की आत्मकथा**
यशायाह ने उस सेवक के शब्दों को लिखा: *”प्रभु यहोवा ने मुझे शिक्षा देने वाली जीभ दी है, कि मैं थके हुए को जानकर अपने वचन से सम्भालूँ। वह प्रात:काल मुझे जगाता है, वह मेरा कान जगाता है कि मैं शिष्य के समान सुनूँ।”* (यशायाह 50:4)
वह सेवक, जिसे बाद में नए नियम में यीशु मसीह के रूप में पहचाना गया, सदैव परमेश्वर की आवाज सुनने के लिए तैयार रहता था। वह न केवल सुनता था, बल्कि उसकी शिक्षाओं से लोगों को सांत्वना देता था। उसकी वाणी में सत्य का बल था, और वह हर सुबह परमेश्वर के साथ संगति करके अपने मिशन के लिए तैयार होता था।
### **अवज्ञा की कीमत: अपमान और पीड़ा**
लेकिन उस सेवक का मार्ग कठिन था। यशायाह ने आगे लिखा: *”मैंने अपनी पीठ उनको दी, जो मुझे मारते थे, और अपने गाल उनको, जो मेरी दाढ़ी नोचते थे। मैंने अपना मुँह उनके थूक से नहीं छिपाया।”* (यशायाह 50:6)
यह भविष्यवाणी स्पष्ट रूप से यीशु मसीह के दुःखभोग की ओर इशारा करती है। जब यहूदा के धर्मगुरुओं और रोमी सैनिकों ने उसे पकड़ा, तो उन्होंने उसके गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी दाढ़ी नोची, और उस पर थूका। यीशु ने किसी प्रतिरोध के बिना सब कुछ सहा, क्योंकि वह जानता था कि यह उसके पिता की इच्छा है।
### **अटल विश्वास: परमेश्वर की सहायता**
फिर भी, उस सेवक का हृदय डगमगाया नहीं। यशायाह ने उसके शब्दों को इस तरह लिखा: *”प्रभु यहोवा मेरी सहायता करेगा; इसलिए मैं लज्जित नहीं होऊँगा। इसलिए मैंने अपना मुँह चकमक पत्थर के समान कठोर बना लिया, और मैं जानता हूँ कि मैं लज्जित नहीं होऊँगा।”* (यशायाह 50:7)
यीशु ने क्रूस पर जाते समय भी परमेश्वर पर भरोसा नहीं छोड़ा। उसने अपने शत्रुओं के सामने भी दृढ़ता दिखाई, क्योंकि वह जानता था कि उसका बलिदान मानवजाति के उद्धार के लिए आवश्यक था।
### **चुनौती: कौन है जो परमेश्वर पर भरोसा रखता है?**
अध्याय के अंत में, यशायाह ने एक चुनौती दी: *”तुम में से कौन यहोवा का भय मानता है? कौन उसके दास की बात सुनता है? जो अंधकार में चलता है और जिसके पास कोई प्रकाश नहीं, वह यहोवा के नाम पर भरोसा रखे और अपने परमेश्वर पर सहारा दे।”* (यशायाह 50:10)
यह संदेश आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है। जैसे उस सेवक ने अंधकार में भी परमेश्वर पर भरोसा रखा, वैसे ही हमें भी अपने जीवन के कठिन समय में उस पर विश्वास करना चाहिए।
### **निष्कर्ष: प्रकाश की ओर बढ़ते हुए**
यशायाह 50 की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि परमेश्वर का सेवक हमारे पापों का बोझ उठाने आया था। उसने अपमान सहा, पीड़ा झेली, लेकिन अंततः उसने विजय प्राप्त की। और जो कोई भी उस पर विश्वास करता है, वह अंधकार से निकलकर अनन्त ज्योति में प्रवेश करेगा।
*”जो आग जलाकर अपने लिए प्रकाश करता है, वह इसी बोझ से दब जाए। तुम लोग परमेश्वर के हाथ में जलोगे, और बहुत पीड़ा उठाओगे।”* (यशायाह 50:11)
लेकिन जो परमेश्वर के सेवक के पीछे चलता है, उसके लिए एक नया भविष्य तैयार है—एक भविष्य जहाँ दुःख और रोना नहीं होगा, केवल अनन्त आनन्द होगा।