**एक न्यायी व्यवस्था की स्थापना**
मिद्यान के विशाल और धूल भरे मरुस्थल में, यित्रो नामक एक बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ पुरोहित रहता था। वह मूसा का ससुर था और परमेश्वर के प्रति गहरी श्रद्धा रखता था। एक दिन, जब उसने सुना कि मूसा इस्राएलियों को मिस्र की दासता से छुड़ाकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा की हुई भूमि की ओर ले जा रहा है, तो उसका हृदय आनंद से भर गया। उसने सोचा, “मैं अपने दामाद और उसके लोगों से मिलूँ और उनके साथ परमेश्वर की महिमा का गुणगान करूँ।”
यित्रो ने मूसा की पत्नी सिप्पोरा और उनके दोनों पुत्रों—गेरशोम और एलीएजेर—को साथ लिया और इस्राएलियों के शिविर की ओर चल पड़ा। रास्ते में वे विशाल चट्टानों और रेगिस्तानी झाड़ियों से गुजरे, जहाँ कभी-कभी परमेश्वर की उपस्थिति का एहसास होता था। जब वे शिविर के निकट पहुँचे, तो मूसा को सूचना मिली कि उसका ससुर उससे मिलने आ रहा है। मूसा उसे लेने स्वयं बाहर गया। दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और प्रेमपूर्वक अभिवादन किया।
मूसा ने यित्रो को अपने तम्बू में ले जाकर आदर सहित बैठाया। फिर उसने यहोवा द्वारा इस्राएल के लिए किए गए सभी अद्भुत कार्यों—मिस्रियों पर आए दस विपत्तियों, लाल समुद्र के फटने, और रेगिस्तान में मन्ना और बटेर के प्रावधान के बारे में विस्तार से बताया। यित्रो ने ध्यान से सुना और परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहा, “धन्य है यहोवा, जिसने तुम्हें मिस्रियों और फिरौन के हाथ से छुड़ाया! अब मैं जान गया कि यहोवा सभी देवताओं से बड़ा है!”
अगले दिन, यित्रो ने देखा कि मूसा सुबह से शाम तक लोगों के झगड़ों का निपटारा करने में व्यस्त रहता था। लोग लंबी कतारों में खड़े रहते, अपने मामलों को लेकर मूसा के पास आते। यह देखकर यित्रो ने मूसा से पूछा, “तुम यह क्या कर रहे हो? क्यों तुम अकेले ही सभी लोगों के न्याय का भार उठा रहे हो?”
मूसा ने उत्तर दिया, “लोग परमेश्वर से न्याय चाहते हैं। जब उनके बीच कोई विवाद होता है, तो वे मेरे पास आते हैं, और मैं उनके मामलों को सुलझाता हूँ। मैं उन्हें परमेश्वर के विधान और उपदेशों से अवगत कराता हूँ।”
यित्रो ने सिर हिलाते हुए कहा, “तुम्हारा यह तरीका ठीक नहीं है। तुम और तुम्हारे लोग दोनों ही थक जाएँगे। यह कार्य तुम्हारे लिए बहुत भारी है; तुम इसे अकेले नहीं कर सकते।”
फिर यित्रो ने एक बुद्धिमान सलाह दी: “तुम्हें ऐसे योग्य पुरुषों को चुनना चाहिए जो परमेश्वर से डरते हों, सत्यनिष्ठ हों और लालच से दूर रहते हों। उन्हें हजारों, सैकड़ों, पचासों और दसों के प्रधान बनाकर छोटे-छोटे समूहों में बाँट दो। वे साधारण मामलों का निपटारा स्वयं करें, और केवल कठिन विवाद तुम्हारे पास आएँ। इस तरह तुम्हारा बोझ हल्का होगा, और लोग भी शांति से रहेंगे।”
मूसा ने अपने ससुर की बात मानी और उसकी सलाह के अनुसार कार्य किया। उसने इस्राएल के सभी गोत्रों से बुद्धिमान और न्यायप्रिय पुरुषों को चुना और उन्हें लोगों पर अधिकारी नियुक्त किया। छोटे मामलों का निर्णय वे स्वयं करते, और केवल गंभीर विवाद मूसा के पास पहुँचते। इस प्रकार, न्याय की व्यवस्था सुचारू रूप से चलने लगी, और मूसा को भी विश्राम मिला।
कुछ दिनों बाद, यित्रो ने मूसा को आशीर्वाद दिया और अपने देश लौट गया। परमेश्वर की इस व्यवस्था से इस्राएली संगठित और अनुशासित हो गए, और वे अपनी यात्रा में और भी दृढ़ता से आगे बढ़ने लगे।
इस प्रकार, परमेश्वर ने मूसा और उसके लोगों के लिए एक न्यायपूर्ण प्रणाली स्थापित की, जिससे उनका जीवन व्यवस्थित हुआ और वे अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सके।