पवित्र बाइबल

अय्यूब की पीड़ा और अडिग विश्वास की प्रेरणादायक कहानी

**कहानी: अय्यूब की पीड़ा और विश्वास**

एक समय की बात है, उज़ देश में अय्यूब नामक एक धर्मी और ईश्वरभक्त व्यक्ति रहता था। वह बहुत धनवान था, उसके पास हज़ारों मवेशी, सेवक और एक सुखी परिवार था। परन्तु एक दिन, शैतान ने उसकी परीक्षा लेने के लिए ईश्वर से अनुमति माँगी। ईश्वर ने अय्यूब की धर्मपरायणता पर भरोसा करते हुए शैतान को उसकी सम्पत्ति, संतान और स्वास्थ्य छीनने की अनुमति दे दी।

अय्यूब ने अपना सब कुछ खो दिया। उसके बच्चे मर गए, उसकी सम्पत्ति लूट ली गई, और अंत में उसके शरीर पर दर्दनाक फोड़े निकल आए। वह राख में बैठकर अपने दुःख को सह रहा था। उसके तीन मित्र—एलीपज, बिलदद और सोफर—उसके पास आए, परन्तु उन्होंने उसे दोष देते हुए कहा कि उसने कोई पाप किया होगा, इसीलिए ईश्वर उसे दण्ड दे रहा है।

अय्यूब के हृदय में पीड़ा भर गई। वह अपने मित्रों से कहने लगा, **”तुम लोग कैसे सांत्वना देने वाले हो! तुम्हारी बातें केवल मेरे दुःख को और बढ़ा रही हैं। यदि मैं तुम्हारी जगह होता, तो तुम्हें शक्ति देने के लिए ईश्वर की महिमा गाता। परन्तु तुम तो मेरे विरुद्ध बोल रहे हो!”**

अय्यूब ने अपनी आँखों से आँसू बहाते हुए कहा, **”मेरी आत्मा थक गई है। मेरा सारा शरीर दर्द से कराह रहा है। यदि मैं न बोलूँ, तो मेरा दुःख कम नहीं होगा। परन्तु यदि मैं अपनी वेदना व्यक्त करूँ, तो क्या मेरा दुःख दूर हो जाएगा?”**

वह ईश्वर की ओर देखते हुए बोला, **”हे परमेश्वर, तूने मुझे निर्दोष होते हुए भी कुचल डाला है। मेरे शत्रु मुझ पर दाँत पीसते हैं, वे मेरे विरुद्ध मुँह खोलकर मेरे गालों पर चोट करते हैं। उन्होंने मुझे घेर लिया है।”**

अय्यूब ने अपने हृदय की पीड़ा को शब्दों में ढालते हुए कहा, **”मैं निर्दोष हूँ, फिर भी मेरा प्राण दुःख से भर गया है। मेरी आँखें रोते-रोते धुंधला गई हैं। मेरे हाथों में कोई अधर्म नहीं, फिर भी मेरी प्रार्थना शुद्ध है।”**

फिर भी, अय्यूब का विश्वास डगमगाया नहीं। वह जानता था कि ईश्वर न्यायी है। उसने कहा, **”पृथ्वी मेरे रक्त से न लिखी जाए! मेरी आवाज़ को कोई न छिपाए! अब भी, देखो, स्वर्ग में मेरा साक्षी है, ऊँचे स्थानों में मेरा गवाह है। मेरे मित्र मुझ पर हँसते हैं, परन्तु मेरी आँखें ईश्वर की ओर रोते-रोते लगी हैं।”**

अय्यूब ने ईश्वर से प्रार्थना की, **”हे परमपिता, मनुष्य का जीवन थोड़े दिन का है। क्या तू उस पर दृष्टि रखेगा? क्या तू उसकी ओर फिरेगा, जैसे कोई मनुष्य अपने मित्र की ओर मुड़ता है? मेरे थोड़े से दिन बीत जाएँगे, और मैं वापस न आऊँगा।”**

अय्यूब की यह पीड़ा उसकी परीक्षा थी। वह जानता था कि ईश्वर उसके साथ है, भले ही अभी उसे समझ नहीं आ रहा कि क्यों यह सब हो रहा है। उसका हृदय टूटा हुआ था, परन्तु उसकी आस्था अडिग बनी रही।

अंत में, अय्यूब ने अपने मित्रों से कहा, **”तुम लोग व्यर्थ ही मुझे दोषी ठहराते हो। मैं जानता हूँ कि मेरा उद्धारकर्ता जीवित है, और वह अंत में इस पृथ्वी पर खड़ा होगा। मेरी त्वचा नष्ट हो जाएगी, परन्तु मैं अपने शरीर में ईश्वर को देखूँगा। मैं उसे अपनी आँखों से देखूँगा, और वह मेरे लिए होगा।”**

इस प्रकार, अय्यूब ने अपनी पीड़ा में भी ईश्वर पर भरोसा रखा। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि धर्मी व्यक्ति के जीवन में भी कठिन परीक्षाएँ आ सकती हैं, परन्तु ईश्वर सब कुछ जानता है और अंत में सत्य की विजय होती है।

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