# न्यायियों 17: एक विस्तृत कहानी
## अध्याय 1: मीकायाह का परिवार और चोरी
एफ्रैम के पहाड़ी प्रदेश में एक व्यक्ति रहता था जिसका नाम मीकायाह था। वह अपनी माँ के साथ एक छोटे से गाँव में निवास करता था। उसकी माँ एक धर्मपरायण स्त्री थी, परंतु उनके घर में धन की कमी नहीं थी। एक दिन, मीकायाह ने अपनी माँ के कक्ष से एक बड़ी रकम—एक हज़ार चाँदी के सिक्के—चुरा लिए। उसकी माँ ने जब यह देखा कि पैसे गायब हैं, तो वह बहुत क्रोधित हुई और उसने शाप देते हुए कहा, **”जिसने भी मेरे पैसे चुराए हैं, यहोवा उसे दण्ड दे!”**
मीकायाह ने जब अपनी माँ के शाप के शब्द सुने, तो उसका हृदय काँप उठा। वह डर गया क्योंकि वह जानता था कि यहोवा का न्याय सच्चा है। वह तुरंत अपनी माँ के पास गया और काँपते हुए बोला, **”माँ, वह पैसा मैंने लिया था। मुझे क्षमा कर दो। यहाँ लो, मैं सब वापस कर रहा हूँ।”**
## अध्याय 2: मूर्ति की स्थापना
मीकायाह की माँ का क्रोध शांत हो गया। उसने अपने बेटे को क्षमा कर दिया, परंतु उसने सोचा कि इस धन का उपयोग कैसे किया जाए। उसने निश्चय किया कि वह इस चाँदी से यहोवा के लिए एक मूर्ति बनवाएगी। उस समय के लोगों में यह आम धारणा थी कि मूर्तियाँ परमेश्वर की उपस्थिति का प्रतीक होती हैं, हालाँकि यह यहोवा के नियम के विरुद्ध था।
मीकायाह की माँ ने चाँदी का एक हिस्सा दिया और एक मूर्तिकार से एक खुदी हुई मूर्ति और एक ढली हुई मूर्ति बनवाई। जब मूर्तियाँ तैयार हो गईं, तो उसने उन्हें अपने घर में स्थापित कर दिया। मीकायाह ने एक छोटा सा मंदिर बनवाया और वहाँ एक एपोद और तराफ़ीम (घरेलू देवताओं की मूर्तियाँ) भी रख दिए। उसने अपने एक बेटे को याजक नियुक्त कर दिया।
## अध्याय 3: एक भटका हुआ याजक
उन दिनों इस्राएल में कोई राजा नहीं था, और हर व्यक्ति अपनी ही दृष्टि में ठीक काम करता था। एक दिन, यहूदा के बेतलेहेम से एक लेवी युवक वहाँ से गुज़रा। वह अपने रहने के स्थान की तलाश में भटक रहा था। जब वह मीकायाह के घर के पास से निकला, तो मीकायाह ने उससे पूछा, **”तुम कहाँ से आए हो?”**
लेवी युवक ने उत्तर दिया, **”मैं यहूदा के बेतलेहेम का रहने वाला हूँ और यहोवा के लिए याजक बनने की तलाश में भटक रहा हूँ।”**
मीकायाह ने सोचा कि यह यहोवा की ओर से एक आशीर्वाद है। उसने लेवी से कहा, **”मेरे साथ रहो और मेरे पिता और याजक बनो। मैं तुम्हें प्रतिवर्ष दस चाँदी के सिक्के, वस्त्र और भोजन दूँगा।”**
लेवी युवक इस प्रस्ताव से सहमत हो गया। वह मीकायाह के घर में रहने लगा और उसके परिवार का याजक बन गया। मीकायाह बहुत प्रसन्न हुआ और बोला, **”अब मैं जानता हूँ कि यहोवा मेरे साथ है, क्योंकि उसने मुझे एक याजक दिया है!”**
## अध्याय 4: गलत धर्म का प्रसार
धीरे-धीरे, मीकायाह का छोटा सा मंदिर प्रसिद्ध होने लगा। आस-पास के लोग वहाँ आकर पूजा करते थे। मीकायाह और उसका परिवार समृद्ध हो गया, परंतु वे यह भूल गए कि यहोवा ने मूर्ति पूजा को सख्त मना किया है। उन्होंने अपने तरीके से परमेश्वर की आराधना करनी शुरू कर दी, जो उसकी आज्ञाओं के विरुद्ध था।
लेवी युवक भी इस गलत धर्म का हिस्सा बन गया। उसने सोचा कि वह यहोवा की सेवा कर रहा है, परंतु वास्तव में वह मनुष्यों की बनाई हुई व्यवस्था का पालन कर रहा था।
## अध्याय 5: न्याय की आहट
इस्राएल के लोगों ने यहोवा की आज्ञाओं को तोड़ दिया था। वे अपने ही मन के अनुसार चल रहे थे। मीकायाह और उसके परिवार की कहानी इस बात का प्रतीक थी कि कैसे लोग परमेश्वर से दूर हो रहे थे। यहोवा ने उन्हें न्याय दिलाने के लिए न्यायियों को भेजा, परंतु लोग बार-बार अपने पापों में लौट आते थे।
इस प्रकार, मीकायाह की कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर की आराधना उसके निर्देशों के अनुसार ही करनी चाहिए, न कि मनमाने तरीकों से। जो लोग अपनी इच्छाओं के अनुसार धर्म का निर्माण करते हैं, वे अंततः पाप के जाल में फँस जाते हैं।
**~ समाप्त ~**