**प्रेम का गीत: अध्याय 5 की कहानी**
एक शांत रात्रि थी, जब यरूशलेम की गलियाँ मौन थीं और चाँदनी आँगन में बिखरी हुई थी। सुलैमान की प्रेयसी, शूलमीती, अपने शयनकक्ष में विश्राम कर रही थी। वह अपने प्रियतम की प्रतीक्षा में थी, जिसके हृदय में उसके प्रति अगाध प्रेम था। तभी उसने मधुर आवाज़ सुनी—
**”मेरी बहन, मेरी प्रिये, मेरी कबूतरी, मेरी निष्कलंक! मेरे लिए द्वार खोल, क्योंकि मेरा सिर ओस से भीग गया है, मेरे केश रात की नमी से तर हैं।”**
शूलमीती ने अपने प्रियतम की आवाज़ पहचान ली। उसका हृदय धड़कने लगा, परंतु वह आलस के वशीभूत हो गई। **”मैंने अपना वस्त्र उतार दिया है, अब फिर कैसे पहनूँ? मैंने अपने पैर धो लिए हैं, अब उन्हें फिर कैसे मैली करूँ?”**
किंतु जब उसने अपने प्रियतम का हाथ द्वार की कुंडी पर महसूस किया, तो उसका हृदय विह्वल हो उठा। वह तुरंत उठी और द्वार खोलने के लिए दौड़ी। उसके हाथों में सुगंधित इत्र लगा था, और उसकी उँगलियाँ द्वार की कुंडी पर मीठी खनखनाहट के साथ पड़ीं। परंतु जब उसने द्वार खोला, तो वहाँ उसका प्रियतम नहीं था—वह जा चुका था।
उसका हृदय टूट गया। वह उसे ढूँढने निकल पड़ी, परंतु नगर के पहरेदारों ने उसे देखा और उस पर कठोर हो गए। उन्होंने उसका घूँघट छीन लिया और उसे घायल कर दिया। वह रोते हुए यरूशलेम की बेटियों से गिड़गिड़ाने लगी—
**”मैं तुम्हें वचन देती हूँ, हे यरूशलेम की बेटियों! यदि तुम्हें मेरा प्रियतम मिले, तो उससे कहना कि मैं प्रेम के कारण बीमार हूँ।”**
यरूशलेम की बेटियों ने पूछा, **”तुम्हारा प्रियतम औरों से किस प्रकार श्रेष्ठ है, हे स्त्रियों में सर्वसुन्दरी? तुम हमें बताओ कि हम उसे क्यों ढूँढें?”**
तब शूलमीती ने अपने प्रियतम का वर्णन करते हुए कहा—
**”मेरा प्रियतम गोरा और रक्तिम है, वह दस हज़ारों में अद्वितीय है। उसका सिर शुद्ध सोने जैसा है, उसके केश घने और कौए के पंखों सदृश काल